अमेरिका की फोर्ड कम्पनी हिमाचल प्रदेश में देवताओं की घाटी कुल्लु मनाली में स्की विलेज की स्थापना करना चाहती है और राजा वीरभद्र सिंह जी की यह पुरानी इच्छा है कि फोर्ड तम्पनी की यह आकांक्षा हर हालत में पूरी की जाये ।जब वे पिछली बार मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने इस प्रकल्प को , हिमाचल प्रदेश में विदेशी निवेश के नाम पर स्वीकार किया था । लेकिन यह विदेशी निवेश क़ुल्लु घाटी के अनेक देवताओं को निर्वासित करने वाला था और लोगों की रोटी रोज़ी छीनने वाला था , इसलिये लोगों ने इस प्रकल्प का प्राणपन से विरोध किया और इस विरोध के कारण चुनावों में राजा जी को स्वयं ही मुख्यमंत्री की गाडी से उतर कर क पर आना पडा ।यह लडाई अमेरिका की फ़ोर्ड कम्पनी बनाम हिमाचल की जनता व देवताओं की लड़ाई बन गई थी और इसमें हिमाचल की जनता और कुल्लु घाटी के स्थानीय देवता जीत गये थे । नई सरकार ने हिमाचल के लोगों की इच्छा का सम्मान करते हुये इस प्रकल्प को त्याग दिया । लेकिन फोर्ड कम्पनी इतनी जल्दी हार कैसे मान सकती थी ? बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की यही खूबी है । वे दूसरे देशों में जाकर , वहां की व्यवस्था के भीतर घुस कर और उसका अपने पक्ष में प्रयोग कर अपने व्यवसायिक हितों की रक्षा करती हैं । फोर्ड कम्पनी ने भी इतने साल यही किया । अब राजा जी की सवारी फिर से निकली है , तो साथ साथ ही स्की विलेज बनाने वाली कम्पनी की फ़ोर्ड भी फिर से चलने लगी है । वैसे तो राजा साहिब कह सकते हैं कि इस धन्धे में उनका कोई हाथ नहीं है । पूर्व सरकार द्वारा दिये गये कारण बताओ नोटिस के खिलाफ कम्पनी ने हिमाचल उच्च न्यायालय में केस डाल रखा था । जनवरी २०१२ में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश राजीव शर्मा ने वह कारण बताओ नोटिस निरस्त कर दिया । सरकार ने उस आदेश के खिलाफ स्पेशल लीव पिटीशन डाल दी । लेकिन सरकार बदलने के बाद ‘राजा जी की सरकार’ ने कुछ नहीं किया , केवल स्पेशल लीव पिटीशन वापिस लेने का फ़ैसला कर लिया । उसके बाद राजा जी को कुछ करने की ज़रुरत ही नहीं , जो कुछ करना है कम्पनी को ही करना है और कम्पनी ने वह करना शुरु कर दिया है । स्की विलेज के नाम पर भारत तिब्बत सीमा पर विदेशियों द्वारा एक नया नगर बसाने की तैयारियाँ फिर से शुरु हो गई हैं ।
हिमालयी स्की विलेज के नाम से पाँच हज़ार करोड़ रुपये का नया शहर हेनरी फ़ोर्ड का पोता बसायेगा ।इस प्रकल्प के लिये हिमाचल प्रदेश फ़ोर्ड कम्पनी को ११५ एकड़ भूमि मुहैया करवायेगी । गाँवों के लोग भूमि के इस अधिग्रहण का विरोध कर रहे हैं । सरकार का मानना है कि पर्यटन के क्षेत्र में पहली बार इतना बडा विदेशी निवेश हो रहा है । इसे वह क़ुल्लु निवासियों का सौभाग्य मान रही है और अपनी पीठ थपथपा रही है । क़ुल्लु निवासियों का सौभाग्य जागेगा कि नहीं , यह तो समय ही बतायेगा लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि इस सौदेबाज़ी से ‘अन्दर के कुछ लोगों ‘ का भाग्य अवश्य जाग जायेगा । इस नये नगर में होटल होंगे जो एक साथ सात सौ लोगों की खातिरदारी कर सकेंगे ।मौल होंगे , जहाँ देशी विदेशी पर्यटक खरीददारी कर सकेंगे । नगर की अपनी स्थायी आज़ादी के अतिरिक्त यह नगर ४५०० पर्यटकों की एक साथ खातिरदारी कर सकेगा । नगर में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के सभा भवन बनेंगे । गर्मी सर्दी की खेलों की व्यवस्था की जायेगी । हिमालय की ढलानों का प्रयोगसाहसिक खेलों के लिये कियाजायेगा । मंनोरंजन और ऐश का ऐसा कोई साधन नहीं होगा , विदेशी पर्यटकों के लिये जिसकी व्यवस्था यह कम्पनी नहीं करेगी ।हिमाचल सरकार ने कम्पनी को हिमालय के सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्षेत्र चुन कर उसका सर्वेक्षण करने की अनुमति पहले ही दे रखी है ।
इस प्रकल्प को लेकर अनेक आपत्तियाँ हैं । सबसे पहली आपत्ति तो सुरक्षा को लेकर है । दुनिया का ऐसा कोई देश नहीं है , जो अपनी संवेदनशील सीमा पर विदेशियों को नज़दीक़ भी फटकने देता हो । लेकिन यह भारत ही है , जो चीन के साथ लगती अपनी सीमा पर एक विदेशी कम्पनी को पूरे का पूरा एक शहर बनाने की ही अनुमति दे रहा है । इससे पहले भी सरकार ने ठियोग हाटकोटी रोहडू सड़क के निर्माण का ठेका एक चीनी कम्पनी को दे दिया था । कम्पनी की रुचि शायद यह ८१ किलोमीटर सड़क बनाने में कम थी और सुरक्षा की दृष्टि से अति संवेदनशील क्षेत्र के नक़्शे बनाने में ज़्यादा थी । उसने अपना काम पूरा करके सड़क बनाने का काम अधूरा छोड़ दिया । अब चीन से ख़तरे वाले क्षेत्र में फिर एक विदेशी कम्पनी को ही न्यौता दिया जा रहा है । इतना ही नहीं , यह विदेशी कम्पनी भी अपने इस प्रकल्प के लिये अड़ी हुई है । आख़िर इसका क्या कारण है ? क्या फ़ोर्ड कम्पनी इस प्रकल्प से पैसा कमाने के उद्देश्य से ही पिछले कई साल से कोर्ट कचहरियों के चक्कर काट रही है और राजनीतिज्ञयों को पटाने की कोशिश कर रही है ? फिर आख़िर कम्पनी इस प्रकल्प के लिये भारत चीन सीमा के इस क्षेत्र में ही अपना शहर बनाने पर क्यों अड़ी हुई है ? पर्यटन और मुनाफ़े की दृष्टि से तो और अनेक स्थान हिमालय में तलाशें जा सकते हैं ? इसे तो कोई नहीं मानेगा कि फ़ोर्ड कम्पनी का दारोमदार इसी प्रकल्प पर टिका हुआ है । वीरभद्र सिंह को सुरक्षा की दृष्टि से भी इस प्रकल्प पर पुनः विचार करना चाहिये ।
फ़ोर्ड कम्पनी ने इस नये नगर को लेकर अपने जितने पत्ते अभी खोले हैं , उससे केवल वह दृश्य सामने आता है , जो कम्पनी हमें दिखाना चाहती है । बुद्धिमत्ता इसमें होती है कि वह भी देख लिया जाये जो कम्पनी छिपाना चाहती है । कम्पनी का कहना है कि इससे स्थानीय लोगों को रोज़गार मिलेगा । अपनी ज़मीन और घर से उखड़कर यहाँ के लोग भला कम्पनी से क्या रोज़गार प्राप्त कर सकेंगे ? जिस शहर की अधिकांश आबादी , चाहे वह फलोटिंग आबादी ही क्यों न हो , विदेशी मूल की होगी और जिनकी टहल सेवा के लिये पाँच सितारा होटलों और निवास स्थानों की व्यवस्था की जायेगी , वहाँ अपने घरबार से उजाड़े हुये स्थानीय लोगों को उनके बर्तन धोने का काम ही मिल सकता है या फिर गोरे साहिबों की सवारी के पीछे भागने का । बैसे तो पहले ही क़ुल्लु घाटी में आने वाले ‘फ़ोर्ड ‘ के इन विदेशी पर्यटकों ने चरस गाँजा और दूसरे नशों की जो संस्कृति फैला दी है , उसे से स्थानीय निवासियों की नींद हराम रहती है । अब जब इन विदेशियों का एक पूरा नगर ही बस जायेगा तो क्या गुल खिलेगा , इसका अन्दाज़ा लगाया जा सकता है । हाँ इस नये नगर का एक लाभ ज़रुर हो सकता है । मनाली में जो पाँच छह सौ देसी होटल ढाबे खुले हुये हैं और जिनसे सचमुच स्थानीय लोगों को रोज़गार मिलता है , वे ज़रुर फ़ोर्ड की इस मार से उजड़ जायेंगे । अलबत्ता ये उजड़े हुये लोग , जो पहले अपनी ज़मीनों और अपने होटल ढावों के मालिक थे , अब विदेशी साहिबों के होटलों में मज़दूरी का काम बख़ूबी कर सकेंगे । वैसे फ़ोर्ड कम्पनी जो देसी लोगों को काम देने का जो वायदा कर रही है , उसमें भी दम है । इस नये नगर का निर्माण करने के लिये जो कम्पनी बनाई गई है , उसने कार्य निष्पादन के लिये मोटी तनख़्वाह देकर जो कुछ लोग रखें होंगे , उनमें से ज़रुर कुछ लोग किसी प्रभावशाली राजनीतिज्ञ के रिश्तेदार या फिर किसी बड़े पद पर बैठे किसी आई ए एस अधिकारी का बेटा , या दसवीं फ़ेल दामाद हो सकता है । हो सकता है कुछ ऐसे लोग भी हों जिन्होंने बड़ी सरकारी नौकरी छोड़ नई कम्पनी के जन सम्पर्क का पद सम्भाल लिया हो । ऐसे लोगों को रोज़गार ज़रुर मिला होगा । लेकिन अब हिमाचल के लोग भी इतना तो जान ही गयें हैं कि यह वास्तव में रोज़गार नहीं होता बल्कि दलाली करवाने का , बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का नया आधुनिक तकनीक है । कम्पनी को अपने पदाधिकारियों एवं उच्च कर्मचारियों की सूची सार्वजनिक कर देनी चाहिये , ताकि यदि ये क़यास भी हैं , तब भी धुँध छँट जाये ।
इस नये नगर के निर्माण से जुड़ी कुछ और बातें चौंकाती हैं । पिछले सात आठ साल से , जब से इस नये विदेशी नगर के निर्माण की चर्चा शुरु हुई है , क़ुल्लु घाटी में चर्च की गतिविधियों में अचानक तेज़ी आ गई है । विदेशियों के आने की आहट सुन कर कहीं यह सब तो नहीं हो रहा । कहीं हिमाचल के सीमान्त को भी उत्तर पूर्व बनाने की तैयारी तो नहीं चल रही । वैसे इसे हमारी त्रासदी ही कहना चाहिये कि देश को चलाने के लिये हमें इटली से किसी को बुलाना पड़ता है , चंडीगढ़ बनाने के लिये फ़्रांस से ल कारबूजिये को निमंत्रण देना पड़ता है और अब ऐसा वक़्त आ गया है कि क़ुल्लु घाटी में एक नया नगर बसाने के लिये एक विदेशी कम्पनी ख़ुद ही हमारे दरवाज़े पर पहुँच गई है और हम उसके स्वागत के लिये अपने लोगों को ही नहीं बल्कि अपने देवी देवताओं को भी उजाड़ने के काम में लग गये हैं । राजा लोग विदेशियों के नगर बसाने का स्वागत करें , यह फिर भी समझ में आता है , लेकिन जनता भला चुप क्यों बैठेगी ?