मूर्ख या मूर्ख के समान व्यवहार करने वाले व्यक्ति, समूह, संगठन या देश के लिए विनम्र, नम्रता, अनुरोध का कोई मायना नहीं होता। सठ व्यक्ति हमेशा ऐसे लोगों को कायर, बुजदिल, कमजोर ओैर सिर्फ दया का पात्र मात्र समझता है इससे ज्यादा कुछ नहीं, रहा सवाल कुटिलता का तो कुटिल के साथ प्रेम ही घातक होता है। प्रीति तो बहुत दूर की कोड़ी है।
पाकिस्तान अलगाववाद एवं धर्म मजहब की राजनीति करने वालों के लिए एक अच्छा उदाहरण और सबक हो सकता है जो कुछ कट्टरपंथियों के चलते मात्र मजहब के ही आधार पर 14 अगस्त 1947 को भारत से अपनी और अपनी रिया की बेहतरी का तर्क देते हुए एक स्वतंत्र देश के रूप स्थापित हो गया। आज पाक के लिए वही मजहबी कट्टरपंथियों नेे पाक को न केवल विश्व के सामने चौराहा पर खड़ा कर दिया बल्कि आज उसकी छवि केवल झूठे और अविश्वासनीय देश के रूप में ही है। अब उसे अपना अस्तित्व बचाने के लिए भी देर सवेर प्रायास करना पड़ेगा। आज पाक किसी मोहल्ले के मवाली से ज्यादा नहीं हैं। जो न केवल खुद अशांत है, संस्कारहीन, संस्कृतिविहीन है बल्कि अपनी ओछी हरकतों से पडा़ैसी देश भारत को भी परेशान करने का आये दिन प्रयास करता रहता है।
इन 65 वर्षों में यह देखने में आया है कि भारत ने विराट हृद्य का परिचय दे जब-जब दोस्ती, अमन चैन का हाथ बढाया तब-तब पाक ने न केवल विश्वासघात किया बल्कि उसे डसा भी। भारत की जनता तो पाक के इस रवैये से पहले ही ऊब चुकी थी लेकिन 8 जनवरी को पाक के सैनिकों ने जम्मू कश्मीर के मेंढर सेक्टर में भारतीय सीमा में घुस 13वीं राजपुताना रायफल्स के दो रणवांकुरों लांस नायक हेमराज सिंह (मथुरा उ.प्र.) एवं लांस नायक सुधाकर सिंह (सीधी म.प्र.) पर हमला बोल बर्बरतापूर्वक उनका गला रेत न केवल शव को क्षत-विक्षत किया बल्कि हमारे सैनिक सुधाकर सिंह का सिर भी काट अपने साथ ले गए। सैनिकों के साथ इस तरह का बर्बरता एवं अमानवीय व्यवहार न केवल अस्वीकार्य है बल्कि अंतर्राष्ट्रीय संहिता का भी घोर उल्लंघन है। हालांकि कारगिल युद्ध के समय भी भारतीय सेना के केप्टन सौरभ कालिया के साथ भी अंग-यंग का कृत्य पहले पाक कर चुका है। लेकिन भारत की आन-बान शान का प्रतीक भारतीय सैनिक का सिर भारत की सीमा में घुसकर काट के ले जाने की घटना शायद पहली शर्मनाक घटना हो? पाक की इस नापाक, नीच हरकत पर क्यों न भारतीयों का खून उबले? पाक यही नहीं रूका बल्कि किसी छिछोरे की तरह तत्काल दौड़ थाने अर्थात् संयुक्त राष्ट्र में शिकायत करने भी पहुंच गया हालांकि भारत ने किसी तीसरे की मध्यस्थता को एक सिरे से खारिज किया?
2003 से लागू संघर्ष विराम के बावजूद भी पाक की ओर से सीमा पर घुसपैठ, फायरिंग, भडकाने वाली कार्यवाही लगातार जारी है। 2009 में 28 बार फायरिंग हुई, 2010 में 44 बार, 2011 में 51 बार और 2012 में 71 बार फायरिंग कर चुका है।
उल्टा चोर कोतवाल को डांटे की तर्ज पर भारत के निर्यात व्यापार पर रोक लगाते हुए सीमा से पाकिस्तान जाने वाले टमाटर से भरे ट्रकों को भी रोक दिया।
हालांकि भारत ने पाक से बेहतर संबंधों के लिए अपनी उदार वीजा नीति बनाई, मोस्ट फेवर्ड नेशनल बना, आपसी कारोबार दोनों देशों के बीच 2012 में तीन अरब डालकर तक पहुंचाया, क्रिकेट खेल को भी दोनों के मध्य सौहार्द बढाने के लिए बढावा दिया लेकिन नतीजा सिफर ही रहा।
एक अंग्रेजी अखबार के अनुसार भारतीय जवानों की नृशंस हत्या की साजिश में लश्कर ए तैयबा का चीफ आतंकी हाफिज सईद का भी हाथ रहा है। इसके पूर्व भी मुम्बई ताज होटल हमले का मास्टर माइंड भी यही था।
यदि सीमा पर घटी बर्बर घटना पाक सैनिक और उनके आतंकी का गठजोड का परिणाम है तो भारत कब आतंकवाद के मामले में अमेरिका का अनुसरण करेगा? जिसने खूंखार आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को पाक में ही घुसकर न केवल मार गिराया बल्कि उसके शव को लेकर भी समुद्र में ही दफना दिया। हालांकि इस घटना के बाद भी पाक ने किसी मोहल्ले के छिछोरे की तरह अमेरिका को खूब गालियां दी। चूंकि उसकी सीमा ही यही थी?
अब पाक अपनी नापाक हरकतों से अपने ही चक्रव्यूह में फसता नजर आ रहा है फिर बात चाहे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रधानमंत्री राजा परवेज अशरफ की गिरफ्तारी का फरमान हो या बलूचिस्तान की सरकार का बर्खास्त होता हो या ताहिर उल कादिरी का जन आंदोलन हो या सेना- आतंकियों का गठजोड़ हो।
अब समय आ गया है भारत को अपना सिर (कश्मीर) बचाने के लिए अपनी नीति, विदेश नीति, कूटनीति एवं अन्य नीतियों में आवश्यक बदलाव कर स्पष्टता एवं दृढता को दिखाना होगा। बहुत हुआ चूहा, बिल्ली का खेल अब स्पष्ट हो ही जाना चाहिए। कौन दोस्त, कौन दोस्ती के लायक और कौन दुश्मन। किसे बचाना है, किसे मारना है बिलकुल स्पष्ट होना चाहिए।
माना भारत बड़ा है, बडप्पन भी दिखाना चाहिए और वह दिखा भी रहा है लेकिन दुश्मन को भी अब स्पष्ट समझ लेना चाहिए हमारे धैर्य को, सहनशीलता को कमजोरी में न ले। 1971 में तो केवल बांग्लादेश ही बनाया था अब न जाने क्या-क्या बनायेंगे। कुछ नहीं कहा जा सकता।