भारत उत्सवों का देश है, भारत ज्ञान का देश है, भारत कोतुहल का देश है, भारत साधना का देश है और ये भारत ही है जो मंगल गान का देश है। शारदीय नौ-रात्र चल रहे हैं। सर्दी आने के पूर्व उत्सव धर्मी भारत में नौरात्र आते हैं तो चारो ओर शक्ति आराधना का दृष्य देखने को मिलता है। मां के जयकारे के साथ कन्या पूजन, जगह-जगह भण्डारे, गरीबों को दान देने की जैसे एक परंपरा साक्षात हो उठती है। किंतु इस वाह्य कर्मकाण्ड का आंतरिक पक्ष भी है जो हम सभी को जरूर जानना चाहिए।
आखिर, शक्ति आराधना क्या है ? हम सर्दी शुरू होने के पूर्व ही इसे क्यों करते हैं ? आज तक हमें वही बातें पता हैं जो परपंरागत रूप से हमें बताई गई हैं, यथा-आश्विन मास में शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से प्रारम्भ होकर नौ दिन तक चलने वाला नवरात्र शारदीय नवरात्र कहलाता है। इन दिनों मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना की जाती है। देशभर में स्थापित माता के सभी 51 पीठों पर भक्त विशेष रुप से मां दुर्गा के दर्शनों के लिये पहुंचते हैं। इन दिनों को तंत्र, मंत्र और यंत्र के लिए शुभ माना जाता है। यह भी कहा जाता है कि कुंडली में बैठे ग्रहों की दशा, महादशा चलने पर अथवा किसी ग्रह की बुरी दृष्टि को अपने लिए शांति में बदलने को लेकर यदि नवरात्रों में मंत्र साधना की जाए जो सफलता अवश्य मिलती है। इतना ही नहीं इन दिनों में मंत्र जाप का भी विशेष महत्व है।
हिन्दुओं की धार्मिक मान्यता यह भी कहती है कि गृ्हस्थों को माता की आराधना करने का लाभ उनकी अपनी आन्तरिक शक्तियों के जाग्रण के रूप में मिलता है। मां अपनी साधना का फल जरूर देती है। लेकिन इसके पीछे का एक सत्य यह भी है जिसे कि सभी को जानना चाहिए, वस्तुत: वर्षा ऋतु के बाद जब सर्दी आने को होती है, उसी समय शारदीय नवरात्र आते हैं। वर्षा ऋतु के दौरान मनुष्य के शरीर में अनेक परिवर्तन होते हैं। क्योंकि इस समय में कभी तेज गर्मी पड़ती है तो कभी पानी बरसने लगता है और कभी-कभी ये पानी इतना बरस जाता है कि लगने लगता है कि सर्दी आ गई है। धूप ठीक से खिलती नहीं तो कभी बहुत तेज धूप निकलती है।
वस्तुत: इसका शरीर पर प्रभाव यह होता है कि वह अपने को स्थिर रखने के लिए, स्वस्थ रहने के लिए लगातार वातावरण से संघर्ष करता है। जिसके कारण शरीर में वात, पित्त, कफ का संतुलन बिगड़ जाता है। देखा जाए तो शरीर के इस बिगड़े हुए असंतुलन को फिर से संतुलन में लाना ही नवरात्रों का अहम कार्य है। इन नौ दिनों में उपवास करने पर शरीर शुद्धी को प्राप्त करता है यानि कि कहें, शरीर में वात, पित्त और कफ का बिगड़ा असंतुलन ठीक होने लगता है। एक तरह से शरीर सर्दियों में ज्यादा ऊर्जा ग्रहण करने के लिए तैयार होने लगता है। देखा जाए तो ज्यादा ऊर्जा में शक्ति निहित है। जब हम मन, शरीर और वाणी से ऊर्जावान बनते हैं तो शक्ति आराधना स्वत: ही फलीभूत हो जाती है।
दूसरा इसका सकारात्मक पक्ष यह है कि इन नौ दिनों के साथ रात्रि को भी जोड़ा गया है। यहां सहज प्रश्न उठ खड़ा होता है कि भारतीय मनीषियों ने आखिर क्यों नव के साथ रात्रि को जोड़कर नवरात्रि शब्द के प्रचलन को व्यवहारिक किया ? इसका सीधा उत्तर यह है कि रात्रि अपनी शांति के लिए जानी जाती है। दिन के कोलाहल एवं भागदौड़ के बीच आत्म-विश्लेषण कर पाना हर किसी के लिए संभव नहीं। किंतु रात्रि के शांत वातावरण में स्वयं पर दृष्टि डालना उतना ही सरल एवं सहज है। नव-रात्र हर किसी को आत्म चिंतन का अवसर देते हैं। यही कारण है कि हिन्दू संस्कृति में अधिकांश पर्व और त्यौहार रात्रि में मनाने का महत्व है, उदाहरण स्वरूप दिपावली, होलिका दहन, दशहरा, शिवरात्रि जैसे पर्वों को देखा जा सकता है।
आज विज्ञान भी इस बात को स्वीकार्य करता है कि रात्रि का वक्त पूर्ण शान्ति लिए होता है, जिसमें कि चित्त को स्थिर करना आसान है। प्रकृति के अनेक अवरोध स्वत: ही समाप्त हो जाते है। शान्त वातावरण में अपने बारे में किया गया चिंतन हो या भविष्य की बनाई गई योजना सभी का लाभ मनुष्यों को मिलता है। फिर यह समय संधिकाल भी है, क्यों कि वर्षा ऋतु की समाप्ति के साथ सर्दी का आगमन हो रहा होता है। वैज्ञानिक सिद्धान्त यह भी बताते हैं कि दिन कि सूर्य किरणों, वातावरण में अधिक कोलाहल के कारण भी चित्त स्थिर करने में अधिक कठिनाई होती है, जबकि रात्रि के साथ ऐसा बिल्कुल नहीं है। वास्तव में देखा जाए तो इसीलिए ही भारतीय मनीषियों ने ऋतु के परिवर्तन का प्रभाव लोगों को अधिक प्रभावित न करे, इस बात को ध्यान में रखते हुए प्राचीन काल से ही शारदीय नौ रात्र के दौरान उपवास का विधान किया था जोकि आज भी सतत जारी है।