मध्यप्रदेश में हुआ व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) का घोटाला कोई मामूली घोटाला नहीं है। शायद यह देश का सबसे बड़ा घोटाला सिद्ध हो। इससे संबंधित जो मौतें हो रही हैं, यदि उनका सीधा संबंध इस घोटाले के साथ पाया गया तो आप मान लीजिए कि यह दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला माना जाएगा। यदि इसकी जांच में देरी हुई या हेरा-फेरी हुई तो शिवराजसिंह चौहान की सरकार तो जाएगी ही जाएगी, नरेंद्र मोदी भी कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे। हालांकि इसमें नरेंद्र मोदी का दूर-दूर तक कोई हाथ होने का प्रश्न ही नहीं उठता और चौहान भी सीना ठोककर बार-बार कह रहे हैं कि सांच को आंच क्या? मैं तो जांच सख्ती से करवा रहा हूं।
यह ठीक है कि म.प्र. के उच्च न्यायालय ने विशेष जांच कमेटी बिठा दी है। इसके पहले विशेष टास्क फोर्स भी जांच कर रही थी लेकिन समझ में नहीं आ रहा है कि इस घोटाले से संबंधित 47 लोगों की मृत्यु कैसे हो गई। इतने लोग पिछले दो-तीन वर्षों में मर कैसे गए? इनमें से ज्यादातर लोग जवान और अधेड़ हैं! क्या यह शुद्ध संयोग है? यदि नहीं तो क्या यह दुनिया का बहुत बड़ा आश्चर्य नहीं है कि 47 लोग मर गए और अभी तक एक भी मृत्यु का सुराग नहीं मिला कि यह किसने करवाई? इसके पीछे कौन है? यदि कोई नेता अकेला यह साजिश कर रहा है तो उसे वह अब तक कैसे छुपा पा रहा है? एक आश्चर्य और है! सरकारी नौकरियों की परीक्षा में लाखों उम्मीदवारों के साथ यह धांधली हुई है और इसमें एक भी नौकरशाह का नाम नहीं उछला। क्या नौकरशाहों की मिलीभगत के बिना इतनी बड़ी धांधली कोई अकेला मुख्यमंत्री या शिक्षा-मंत्री कर सकता है? शिक्षा मंत्री जेल में हैं और नौकरशाह मौज कर रहे हैं। इससे भी बड़ा अजूबा यह है कि जिन गरीब और मध्यम वर्ग के छात्रों ने नौकरी की परीक्षा में पास होने के लिए रिश्वतें दी थीं, वे जेल में हैं और जिन नेताओं और नौकरशाहों ने लाखों रुपए रिश्वतें खाई हैं, वे मजे कर रहे हैं। रिश्वत देनेवाले लड़के और लड़कियां शर्म के मारे आत्महत्या कर रहे हैं और इसलिए भी कर रहे हैं कि जांच के दौरान पुलिसवाले अब उनसे और ज्यादा रिश्वत मांग रहे हैं। म.प्र. सरकार ने सैकड़ों लोगों को जेल में बंद कर दिया है और वह जांच भी करवा रही है लेकिन आम आदमी का भरोसा उस पर से उठ चुका है। ऐसे में बेहतर यही होगा कि सारी जांच या तो केंद्रीय अनवेषण ब्यूरो करे या सर्वोच्च न्यायालय करवाए।