वाजपेयी-आडवाणी की राह पर मोदी ?

पीएम की दौड़ में नरेन्द्र मोदी जिस तेजी से सरदार पटेल को हथियाने में लगे हैं, उसने पहली बार यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि कहीं वाजपेयी और आडवाणी की राह पर ही तो मोदी नहीं चल पड़े हैं। क्योंकि जिस धर्मनिरपेक्षता को वैचारिक स्तर पर सरदार पटेल ने रखा उससे आरएसएस ने कभी इत्तेफाक नहीं किया। और संघ ने राष्ट्रवाद की जो परिभाषा गढ़ी उससे बिलकुल अलग सरदार पटेल का राष्ट्रवाद था। पटेल ने भारत के इतिहास को स्वर्णिम बनाने में सम्राट अशोक के बराबर ही मुगल सम्राट अकबर को भी मान्यता दी। और विभाजन के बाद जब दंगों को लेकर देश जल रहा था जब कई सभाओ में सरदार पटेल ने मुस्लिमो को यह कहकर चेताया कि जिन्हें पाकिस्तान जाना है, वह अब भी जा सकते है। लेकिन जब आप भारत में है तो फिर देश की अखंडता और संप्रभुता से खिलवाड करने नहीं दिया जायेगा। लेकिन साथ ही मुस्लिमों को यह भरोसा भी दिलाया कि हिन्दुओ के बराबर ही मुस्लिमों को भी अधिकार मिलेंगे। और इसमे सरकार कोई कोताही नहीं बरतेगी। ध्यान दे तो मोदी बेहद बारीकी से उसी राह को पकड़ना चाह रहे हैं जिस राह पर अटल बिहारी वाजपेयी पीएम बनते ही चल पड़े थे। पीएम बनने के बाद वाजपेयी ने संघ के मुद्दों पर कभी ध्यान नहीं दिया। आडवाणी ने जिन्ना के जरीये धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा पहना। और नरेन्द्र मोदी जब से पीएम पद के उम्मीदवार बने हैं, उन्होंने मंदिर मुद्दे को कभी नहीं उठाया। मंदिर से पहले शौचालय का मुद्दा उठाया। बुर्का और टोपी के साथ मुस्लिमों को रैली का खुला आमंत्रण भेजा। और अब सरदार पटेल की धर्मनिरपेक्षता की खुली वकालत कर दी। जाहिर है यह रास्ता संघ के स्वयंसेवक का नहीं हो सकता। तो क्या मोदी पीएम की दौड़ के लिये संघ का रास्ता छोड़ खुद को स्टेटसमैन के तौर पर रखना चाहते हैं। यानी मोदी सरदार पटेल के जरीये जो लकीर खींच रहे हैं, वह संघ को फुसलाती भी है और संघ को एक वक्त के बाद झिड़कने के संकेत भी देती है। लेकिन आरएसएस इस हकीकत को समझ रहा है कि मोदी इस वक्त सबसे लोकप्रिय स्वयंसेवक हैं तो सत्ता संघ के हाथ आ सकती है और मोदी इस सच को समझते हैं कि सत्ता पाने के लिये संघ का साथ जरुरी है। तो मोदी घालमेल की सियासी बिसात बिछा कर पहले राउंड में कांग्रेस के पांसे से ही कांग्रेस को घेरना चाह रहे हैं। जिससे संघ भी खुश रहे और उनकी छवि भी धर्मनिरपेक्ष बने।

 

ऐसा नही है कि मोदी ने पटेल के उन पत्रों को नहीं पढ़ा होगा, जो महात्मा गांधी की हत्या के बाद लिखे गये। पटेल ने महात्मा गांधी की हत्या के बाद कहा था ,मेरे दिमाग में कोई शंका नहीं है कि हिन्दू महासभा के कद्दरवादी गुट ही इस सजिश में सामिल हैं। फिर कहा संघ की पहल सरकार और राज्य के लिये खतरा है। और यह भी कहा कि संघ के नेताओं के भाषण जहरीले होते हैं। उन्हीं के जहर का परिणाम है कि महात्मा गांधी की हत्या हुई। इतिहास के पन्नों को पलटने पर तब के सरसंघ चालक गुरु गोलवरकर के जवाब भी सामने आते हैं, जिसमें वह राष्ट्रवाद का जिक्र करते हैं।

 

लेकिन पहली बार नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को घेरेते हुये जो सवाल खड़ा किया उससे आरएसएस खुश हो सकता है क्योंकि मोदी ने सरदार पटेल की धर्मनिरपेक्षता को सोमनाथ मंदिर से यह कहकर जोड़ा कि “देश को सरदार पटेल वाला सेक्युलरिज़्म चाहिए. सोमनाथ का मंदिर बनाते हुए उनका सेक्युलरिज़्म आड़े नहीं आया.” मोदी ने अपने भाषण में बार-बार जाति, क्षेत्र समेत तमाम तरह की एकता का जिक्र कर संघ के स्वयंसेवक से इतर अपने लिये एक राजनीतिक बिसात बिछाने की कोशिश जरुर की। जिससे यह ना लगे कि मोदी संघ के एजेडे पर है और मैसेज यही जाये कि पटेल के आसरे उनका कद भी गुजरात से बाहर बढ़ रहा है।