आजकल नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के बीच होड़ लगी हुई है। वे दोनों एक से बढ़ कर एक बयान दे रहे हैं। लगता है, पक्ष और विपक्ष के नेताओं में कोई खास अंतर नहीं रह गया है। दोनों एक ही स्तर पर पहुंच गए हैं। दोनों की शिकायतें एक-जैसी हो गई हैं। आइने में दोनों चेहरे एक-जैसे दिखाई पड़ने लगे हैं। राहुल कहते हैं कि मुझे संसद में बोलने का मौका ही नहीं दिया जाता और अगर दिया जाए तो भूकंप आ जाएगा। वाह, वाह, क्या बात है !
पिछले दस-बारह साल में क्या उन्हें एक बार भी मौका नहीं मिला? नहीं, नहीं, मौके तो कई बार मिले लेकिन भूकंप लाना तो दूर, वे कांग्रेस के मुंह पर बैठी मक्खियां भी नहीं उड़ा सके। फिर भी यह संभव है कि नोटबंदी पर शायद वे जबर्दस्त भाषण दे डालें ! दे डालें मतलब, पढ़ डालें। लेकिन किसका लिखा, वे पढ़ेंगे, यह पता नहीं और जो लिखा हुआ उन्हें दिया जाएगा, उसे वे ठीक से पढ़ पाएंगे या नहीं? पढ़ने के पहले वे उसे समझ भी पाएंगे या नहीं? नोटबंदी पर बोलते-बोलते वे कहीं नाकेबंदी पर न बोलने लग जाएं। उनके भाषण से भूकंप जरुर हो जाएगा लेकिन वह होगा, ठहाकों का भूकंप।
राहुल को संसद में बोलने से किसने रोका है? यदि मनमोहनसिंह बोल सकते हैं तो राहुल को कौन रोक सकता है? राहुल तो उनके नेता हैं। राहुल ने तो एक बार चौड़े में उनको भी डांट दिया था। विपक्ष के नेता को आम जनता के दुख-दर्द की चुभन हो तो वह संसद में दहाड़ भी सकता है लेकिन उसे तो हाथी की टांग खींचनी है और उसमें चींटी की टांग खींचने का भी माद्दा नहीं है।
इधर हमारे नरेंद्र मोदी ने राहुल को भी मात कर दिया है। वे प्रधानमंत्री हैं और लोकसभा में स्पष्ट बहुमत के नेता हैं। घोर अनुशासित पार्टी भाजपा के मुखिया हैं। लोकसभा की अध्यक्षा उन्हीं की पार्टी में रही हैं। वे स्वभाव से बहुत नरम और शिष्ट हैं। क्या वे मोदी को बोलने से मना करेंगी? कतई नहीं। लेकिन मोदी खुद बोलने से कतरा रहे हैं। घबरा रहे हैं। डर रहे हैं। उन्हें डर है कि भूकंप आ जाएगा। शायद इसी भूकंप की बात राहुल ने कही हो।
राहुल के बोलने पर कोई चिड़िया भी उड़े या न उड़े लेकिन मोदी के बोलने पर लोकसभा तो हिल ही जाएगी, क्योंकि मोदी ने मुंह खोला नहीं कि उनके कानों में विरोधी तेजाब उंडेलने की कोशिश करेंगे। सारा सदन अखाड़े में बदल जाएगा। आम सभाओं में अभी तो ऐसी नौबत शुरु नहीं हुई है। ट्रकों और बसों में भरकर लाए गए लोग चुपचाप मोदीजी के डॉयलाग सुनते रहते हैं। तालियां भी बजा देते हैं। लेकिन 30 दिसंबर के बाद क्या होगा? क्या मोदीजी डिजिटल हो जाएंगें? वे स्काइप और यू ट्यूब पर ही अपनी सभाएं निपटा देंगे? लेकिन अफसोस कि 125 करोड़ लोगों के नेता की बात 10-15 करोड़ लोग तक ही पहुंच पाएगी। संतोष की बात यह है कि वे संसद में बोलते तो मुश्किल से 500 लोग ही उनको सुनते, डिजिटल में कुछेक करोड़ लोग तो उन्हें सुनेंगे ही !