मोदी की अमेरिका यात्रा से भारत को मिली कई सफलाएं
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त अधिवेशन में तालियों की गड़गड़ाहट के बीच भारत-अमेरिका संबंध, अर्थव्यवस्था, आतंकवाद, व्यापार, शांति, सुरक्षा सहित कई मुद्दों पर अपनी बात रखी। भारत की जनता ने भी अमेरिका में मोदी के स्वागत और भाषण की जमकर सराहना की है। इधर हम सब सो गए और उधर मोदी जी अमेरिका से मैक्सिको रवाना हो गए। सुबह जागे तो मोदीजी का मैक्सिको में भव्य स्वागत हो रहा था। स्विटजरलैंड और अमेरिका के बाद न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप का भारत को सदस्य बनाने के लिए मैक्सिको ने भी समर्थन किया है। मोदी जी पांच देशों की सफल यात्रा के बाद भारत के लिए रवाना भी हो गए हैं। आप जब यह लेख पढ़ रहे होंगे तो हमारे प्रधानमंत्री भारत पहुंच चुके होंगे। पता ही नहीं चलता है कि हमारे प्रधानमंत्री कब सोते हैं? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब भी देखो देश को तरक्की की राह पर आगे ले जाने के लिए काम करते ही दिखाई देते हैं, लगातार काम करना और दूसरों से कराना, यही उनकी सफलता का मूलमंत्र है।
नरेंद्र मोदी के पांच देशों की यात्राओं से कई शानदार उपलब्धियां हासिल हुई हैं। पांच देशों की यात्रा के दौरान स्विटजरलैंड ने भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह यानी न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप (एनएसजी) में शामिल करने का समर्थन किया है। एनएसजी की सदस्यता के लिए स्विटजरलैंड का समर्थन मिलने में भारत का पलड़ा भारी हुआ है। एनएसजी की सदस्यता के लिए पाकिस्तान के विरोध के बावजूद चीन के रुख में नरमी आई है। इस मुद्दे पर जापान ने भी भारत का साथ दिया है। उनकी अमेरिका यात्रा के पहले दिन ही भारत को एक और बड़ी सफलता मिली है। मिसाइल टेक्नॉलजी कंट्रोल रिजीम (एमटीसीआर) के सदस्य भारत को इस ग्रुप में शामिल करने को राजी हो गए हैं। अब भारत को इस ग्रुप के दूसरे विकसित देशों के साथ मिसाइल की अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी भी मिल जाएगी। 34 देशों वाले इस ग्रुप में भारत को शामिल करने पर किसी ने विरोध नहीं जताया। भारत ने इस की ग्रुप सदस्यता के लिए पिछले साल आवेदन किया था। तब एमटीसीआर के कुछ सदस्य देशों ने इसका कड़ा विरोध किया था। इस समूह में निर्णय आम सहमति पर आधारित होता है। ग्रुप में शामिल देशों का इस समय भी विरोध दर्ज करने के लिए समय दिया गया था। एनसीजी की सदस्यता मिलने की तमाम अड़चनों के दूर होने से भारत को भविष्य में कई लाभ होंगे। एमटीसीआर व्यवस्था के 34 सदस्यों में दुनिया के ज्यादातर प्रमुख मिसाइल निर्माता शामिल हैं। इसकी स्थापना अप्रैल 1987 में हुई थी। इसका मकसद बैलिस्टिक मिसाइलों और अन्य मानव रहित आपूर्ति प्रणालियों के विस्तार को सीमित करना है। इनका रासायनिक, जैविक और परमाणु हमलों में इस्तेमाल किया जा सकता है। हॉलैण्ड के रॉटरडम में पांच से नौ अक्टूबर 2015 के बीच 29वें पूर्ण अधिवेशन में भारत की सदस्यता के आवेदन पर विचार करके लगभग आम सहमति बन गई थी। 34 सदस्यों में से केवल इटली ने इसका समर्थन नहीं किया था। अब जल्दी ही इस बारे में घोषणा कर दी जाएगी।
भारत की इन उपलब्धियों के साथ ही अमेरिका से कई बड़े समझौते हुए हैं। प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी का यह चैथा अमेरिका दौरा है। उनकी सातवीं बार अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा से मुलाकात हुई। मोदी-ओबामा की मुलाकातों ने विश्व का पूरा परिदृश्य ही बदल दिया है। दोनों देश भारत में छह न्यूक्लियर रिएक्टर बनाने पर राजी हुए हैं। इसे करीब एक दशक से अटकी यूएस-भारत सिविल न्यूक्लियर डील के पूरे होने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है। भारत के प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में ओबामा को अपना ‘परम मित्र’ बताया। परमाणु सुरक्षा, आतंकवाद, वैश्विक तापवृद्धि और पेरिस में जलवायु समझौते के मुद्दे पर दोनो देश एक साथ आए हैं। दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों के साथ ही दोस्ताना संबंध बनाने की भी उन्होंने बात कही। अमेरिका ने जिस गर्म जोशी से मोदी की अगवानी की है, उससे यह साबित होता है कि उनमें दुनिया को बदलने का दम है।
मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज सपोर्ट मेमोरैंडम ऑफ एग्रीमेंट (लेमोआ) समझौते को अंतिम रूप देने पर सहमति बनी है। समझौते के तहत दोनों देश जरूरत पड़ने पर एक दूसरे के सैन्य-तंत्र का इस्तेमाल वैश्विक स्तर पर कर सकेंगे। सबसे बड़ी बात यह है कि अमेरिका ने भारत को एक बड़ा रक्षा साझीदार माना है। अमेरिका ने भारत के प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना ‘मेक इन इंडिया’ को सफल बनाने के लिए भी पूरा योगदान देने का ऐलान किया है। अमेरिका ने भारत में स्थापित किये जाने वाले रक्षा उद्योगों को विकसित करने के लिए तकनीक के साथ अन्य प्रकार का भी सहयोग देने पर सहमति दी है। रक्षा प्रौद्योगिकी और व्यापार पहल (डीटीटीआई) के तहत ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम में अमेरिकी कंपनियां भागीदारी करेंगी। यह भारत के लिए बहुत बड़ी सफलता है। मोदी की ओबामा से अगली मुलाकात जी-20 की बैठक के दौरान होगी, और यह माना जा रहा है कि इस बीच तरक्की के और रास्ते खुलेंगे। यह बैठक सोल में 24 जून को होगी। अमेरिका ने भारत को 26/11 के दोशियों को सजा दिलाने के समर्थन के साथ ही पठानकोट आतंकी हमले पर भारत की मांगों का पूरा समर्थन किया है। अमेरिका और अन्य देशों के आतंकवाद के खिलाफ मिलते समर्थन से उम्मीद जगी है कि जल्दी ही दहशतगर्दी के खिलाफ दुनियाभर में माहौल बनेगा। अपनी धरती पर आतंकवादियों को तैयार करने वाले देशों पर लगाम लगेगी। भारत एवं अमेरिका ने आर्थिक संबंधों एवं पेरिस जलवायु समझौते को जल्द से जल्द क्रियान्वित करके ‘जलवायु न्याय’ के लिये काम करने का भी संकल्प लिया। ये समझौते बताते हैं कि भारत स्वच्छ ऊर्जा के प्रति कितना सजग है।
चाबहार बंदरगाह समझौते के बाद भारत और अमेरिका के बीच बढ़ती दोस्ती के लेकर चीन और पाकिस्तान की चिंता बढ़ी है। खासतौर पर भारत के एनएसजी का सदस्य बन जाने के बाद वैश्विक स्तर हम मजबूत होंगे। यह भी सही है कि हमारी मजबूती का असर चीन पर पड़ेगा। चीन की ताकत में कमी भी आएगी। चीन को यह झटका इसलिए भी है कि वह पाकिस्तान को एनएसजी का सदस्य बनाने के लिए पैरवी कर रहा था। एनएसजी की सदस्य बनने से पाकिस्तान को सदस्यता सदस्यता नहीं मिल पाएगी। पाकिस्तान को सदस्य बनाने के लिए भारत की मंजूरी लेनी पड़ेगी। भारत के खिलाफ आज भी दुष्प्रचार कर रहे पाकिस्तान को ऐसी मंजूरी मिलना भी मुश्किल होगी।
मोदी के अमेरिका की यात्रा से सामरिक और आर्थिक सफलताओं के साथ ही सांस्कृतिक मोर्चे पर भी उपलब्धि हासिल हुई है। अमेरिका ने भारत को 200 से ज्यादा सांस्कृतिक कलाकृतियां लौटा दीं हैं। इन कलाकृतियों की कीमत लगभग 10 करोड़ डॉलर है। प्रधानमंत्री ने कलाकृतियां लौटाने के लिए आयोजित समारोह में यह कर कि कुछ लोगों के लिए इन कलाकृतियों की कीमत मुद्रा के रूप में हो सकती है लेकिन हमारे लिए यह इससे कहीं ज्यादा है। यह हमारी संस्कृति और विरासत का हिस्सा है। सभी का दिल जीत लिया। ओबामा ने भी कहा कि मोदी ने अमेरिका आकर केवल भारतीयों का ही दिल नहीं जीता है, बल्कि अमेरिकियों के मन पर भी छा गए हैं। भारत को वापस मिली कलाकृतियों को भारत के संपन्न धार्मिक स्थलों से लूटा गया था। इनमें से कई कलाकृतियां तो 2000 साल पुरानी हैं। इन्हें भारत के सबसे संपन्न धार्मिक स्थलों से लूटा गया था। इनमें संत माणिककविचावकर की एक मूर्ति चोल काल की है। इस मूर्ति को चेन्नै के सिवान मंदिर से चुराया गया था। इसकी कीमत 15 लाख डॉलर है। एक हजार साल पुरानी गणेश की कांसे की मूर्ति भी वापस मिली है। इन तमाम उपलब्धियों से तो अभी सफलताओं का श्रीगणेश हुआ है। अब दुनिया को मोदी के इस दावे में दम लग रहा है कि यह शताब्दी हमारी है।