पड़ोसी देश चीन कभी भी भारत का विश्वस्त नहीं रहा। लेकिन वैश्विक स्तर पर बदले हालात और बाजार के प्रभाव के कारण कूटनीतिक स्तर पर हमेशा दोनों देशों के संबंधों को सकारात्मक बनाये रखने की पहल दोनों देशों की ओर से होती रही है। वैश्विक स्तर पर मजबूत होते भारत के कदम चीन की आंखों में हमेशा खटकता रहा है। लिहाजा, चीन ने हमेशा से हर मोर्चे पर भारत को कमजोर करने की कोशिश करता रहा है। कभी सीमा में घुसपैठ करके तो कभी देश के महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों के वेबसाइटों साइबर धावा बोलकर मानसिक रूप से अशांत करता है। लेकिन आर्थिक स्तर पर चीन भारत को जिस तरह से खोखला कर रहा है, वह निश्चय ही गंभीर मसला है। मीडिया में भारतीय सीमा पर चीनी सैनिकों की हलचल की खबरों पर नजर ज्यादा रहती है, लेकिन इस हलचल के पीछे चीन से जुड़े आर्थिक मुद्दे अक्सर गौड़ होते गए हैं।
करीब दशक भर पहले जब चीनी माल भारत में सस्ते दामों में पहुंचा तब लोगों ने हाथों-हाथ लिया। हालांकि चीन अभी भी भारत की हर जरूरत की समान यहां तक ही हमारे भगवान की मूर्तियों तक को भेज रहा है। शुरुआती दिनों में वस्तुओं की गुणवत्ता इतनी खराब निकली कि धीरे-धीरे लोगों को विश्वास चीनी वस्तुओं से उठने लगा। लेकिन शुरुआती दौर में चीन ने भारती व्यपारियों को भीषण तरीके से मानसिक आघात पहुंचाया। अब भारत आने वाला चीनी माल में अब थोड़ी बहुत गुणवत्ता आने लगी है। यहीं कारण है कि गुणवत्ता को लेकर टूटा जनता का विश्वास किफायती दाम के कारण फिर बहाल होने लगा है। आम भारतीय बाजार में ब्रांडेट कंपनियों का 20 से 40 हजार में मिलने वाला टेबवलेट चीनी ब्रांड में हूबहू दो-चार हजार में उपलब्ध हो जा रहा है। जो लोग ब्रांडेड टेबलेट नहीं खरीद पाते हैं, चीनी टेबलेट से टशन मारते हैं। यह तो केवल टेबलेट भर की बात है। खिलौना, देवी-देवताओं की प्रतिमाओं से लेकर, फर्नीचर और इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएं चीनी उत्पाद भारत में उपलब्ध हैं।
समझदार भारतीय उपभोक्ता अब किफायती दर के साथ गुणवत्ता की तुलना कर वस्तुओं को चुनने लगा है। चीन से आयातित सस्ती वस्तुओं से भारतीय कारोबारियों और निर्माताओं पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। सबसे अधिक नुकसान भारत के छोटे और मझौले उद्यमियों पर पड़ा है। भारत के बड़े बाजार में धंधा कर चोखा मुनाफा बटोरने वाली कंपनियों की दो जमात है। एक वह जो अपने उत्पाद में थोड़ी बहुत गुणवत्ता देकर भारतीय व्यापारियों के ग्राहकों को लुभा रहे हैं, दूसरे वे हैं जो घटिया उत्पाद या धोखा देकर देशी व्यापारी, कपंनियां या ग्राहकों का पैसा हड़प ले रही हैं।
हाल ही में चीन से व्यापार करने वालों को भारतीय दूतावास ने खबरदार करते हुए सचेत रहने को कहा। पिछले वर्ष 86 भारतीय कंपनियों को चीनी कपंनियों ने धोखा दिया। धोखा खाने वाले छोटे और मझोले स्तर के भारतीय कारोबारी थे। दिया है कि भारतीय कंपनियां कोई भी कारोबारी समझौता करने से पहले चीनी कंपनियों की जांच-परख कर लें। जो चीनी चीनी कंपनियां धोखाधड़ी में शामिल पाई गर्इं है, वे रसायन, स्टील, सौर उर्जा के उपकरण, ऑटो व्हील, आर्ट एंड क्राफ्ट्स, हाडर्वेयर और बायोलॉजिकल टेक्नोलॉजी के कारोबार से जुड़ी हैं।
ऐसे मामले भी सामने आए हैं जब भारतीय कंपनियों ने चीन से मशीनरी मंगवाई। जब इसकी इंस्टालेशन करने के बाद काम शुरू किया तो मशीन चली ही नहीं। चीनी वेबसाइट देखकर भारतीय व्यापारी सामान खरीदने को आर्डर देते हैं। चीनी कंपनियां उनसे पैसा तो ले लेती है, लेकिन बाद में सामान भेजती ही नहीं। भारतीय दूतावास ऐसी धोखेबाजी चीनी कंपनियों की सूची आनलाइन उपलब्ध करा रहा है।
चीनी कंपनियों की धोखेबाजी के धंधे से अलग अनेक चीनी कंपनियां भारत में बेहतर धंधा कर मालामाल हो रही हैं। देश की प्रतिष्ठित औद्योगिक संगठन का दावा हैकि चीन भारतीय अर्थव्यवस्था को किसी भी तरह से नुकसान पहुंचाने का खतरा नहीं उठा सकता है क्योंकि उसके भारत से व्यापक व्यापारिक हित जुड़े हुए हैं। भारत के बढ़ते बाजार में चीन की हिस्सेदारी में बड़ी तेजी से बढ़ोतरी हुई है। फिलहाल चीन का भारत में वार्षिक कारोबार 40 अरब डॉलर यानी की करीब 2 लाख 22 हजार करोड़ रुपये हो रहा है। संभावना है कि चालू वित्त वर्ष में यह आंकड़ा बड़ 44 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा। एसोचैम का सुझाव है कि भारत और चीन को आपस में व्यापारिक अंतर को पाटने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।