अमेरिका में अफगान-मूल के एक युवा उमर मतीन ने 50 लोगों को मौत के घाट उतार दिया। क्यों उतार दिया, यह शायद ही ठीक से पता चल पाए, क्योंकि उमर भी मारा गया लेकिन कुछ खबरों के मुताबिक उसने हमला करने के पहले पुलिस के नंबर पर फोन करके कहा कि वह ‘इस्लामिक स्टेट’ का लड़ाका है। हमले के बाद ‘इस्लामिक स्टेट’ ने उसे महान लड़ाका बताया। यह असंभव नहीं। यदि ऐसा है तो यह घटना अमेरिका में रहनेवाले मुसलमानों के लिए काफी खतरनाक बन जाएगी। उमर मतीन उनका सबसे बड़ा दुश्मन साबित होगा। अमेरिकी लोग पहले ही इस्लाम और मुसलमानों के बारे में अच्छी राय नहीं रखते और यह नृशंस हत्याकांड तो वहां मुसलमानों का जीना हराम कर देगा। यह घटना डेविड ट्रंप के हाथ मजबूत करेगी, जिनका कहना है कि यदि वे राष्ट्रपति बने तो कुछ समय तक मुसलमानों को अमेरिका में घुसने भी नहीं देंगे।
कोई आश्चर्य नहीं होगा, यदि यह भी मालूम पड़े कि उमर मतीन का दिमाग फिरा हुआ था, जैसा कि कई अमेरिकी जवानों का होता ही है। अमेरिका में आए दिन ऐसी घटनाएं होती रहती हैं। ये नौजवान अपनी हताशा, निराशा, गुस्सा निकालने के लिए अकारण ही गोलियां चला देते हैं, भीड़ पर ट्रक चढ़ा देते हैं, हवाई जहाज गिरा देते हैं। उसका कारण न इस्लाम, न ईसाइयत, न कोई सिद्धांत और न ही कोई विचारधारा होती है बल्कि मानसिक बीमारी होती है। इस बीमारी के कारण अमेरिका में जितने लोग पिछले 200 साल के युद्धों में मारे गए हैं, उससे कहीं ज्यादा इस तरह की अचानक घटनाओं में मारे गए हैं। इसका एक कारण तो यह भी है कि वहां ये जानलेवा हथियार कोई भी खरीद सकता है। 30 करोड़ के देश में 3 करोड़ से ज्यादा हथियार हैं। वहां पियक्कड़ों की भी भरमार है। बोतल और बंदूक संस्कृति अमेरिका पर हावी है। हिंसा उसका अनिवार्य अंग है। ऐसे घर वहां आपको मुश्किल से ही मिलेंगे, जिनमें बोतल या बंदूक न हो।
अमेरिका में हुई 2001 की आतंकवादी घटना का प्रचार बहुत ज्यादा हुआ है लेकिन उस घटना में जितने लोग मारे गए, उससे कई गुना इन छोटी-मोटी घटनाओं में मारे गए हैं। आतंकवाद को तो अमेरिका ने लगभग काबू कर रखा है लेकिन सिरफिरों द्वारा किए जा रहे इस तरह के हत्याकांडों को रोकना आसान नहीं है, क्योंकि वे उपभोक्तावादी और व्यक्तिवादी समाज की अनिवार्य उपज हैं।