उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री तथा बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने प्रदेश की नव-निर्वाचित सरकार को धमकाने वाले अंदाज़ में चुनौती दी है कि यदि उसने अंबेडकर पार्कों, हाथियों की मूर्तियों तथा महापुरुषों की प्रतिमाओं के साथ छेड़छाड़ की या उन्हें नुकसान पहुंचाने की चेष्टा की तो राज्य से लेकर देश तक में कानून व्यवस्था बिगड़ सकती है। मायावती के इस तरह के वक्तव्य के पीछे पार्कों, मूर्तियों एवं प्रतिमाओं की चिंता कम और प्रदेश सरकार को अस्थिर करने का षड़यंत्र अधिक नज़र आता है। मायावती के इस भड़काऊ एवं कानून व्यवस्था बिगाड़ने वाले वक्तव्य का समर्थन तो कदापि नहीं किया जा सकता। वह भी ऐसे समय जबकि प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पहले ही साफ़ कर दिया है कि पार्कों, मूर्तियों एवं प्रतिमाओं से कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी।
हाँ, उनका यह कहना अवश्य स्वागतयोग्य है कि इन पार्कों में जो खाली जमीन पड़ी है वहां महिलाओं की शिक्षा हेतु स्कूल एवं बच्चों की स्वास्थ्य सुविधाओं हेतु अस्पताल खोलने बाबत सरकार गंभीरता से विचार कर रही है। चूँकि अखिलेश सरकार का मंतव्य पहले से साफ़ है इसलिए मायावती का कानून व्यवस्था बिगड़ने का बयान लोगों की भावनाओं को भड़काने वाला प्रतीत होता है। सत्ता जाने के बाद मायावती जनता की भावनाओं के साथ खेलकर राजनीति करना चाहती हैं जिसे उचित साबित करना मूर्खता होगी। इस पूरे मामले को लेकर मायावाती अतिरेकता का परिचय दे रही हैं।
अपने पांच वर्ष के कार्यकाल में मायावती का ध्यान मात्र स्वयं की प्रतिमाओं एवं हाथी की मूर्तियों को बनवाने में लगा रहा। प्रदेश में शिक्षा का स्तर बिगड़ गया, स्वास्थ्य सुविधाओं को पलीता लग गया, दर्ज़न भर घोटालों से प्रदेश के खजाने पर विपरीत प्रभाव पड़ा किन्तु इन सबसे बेखबर मायावती ने महापुरुषों के नाम का ढिंढोरा पीट-पीट कर लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया। फिर यदि मायावती मात्र महापुरुषों की प्रतिमाएं स्थापित करने में रुचि दिखाती तो ठीक था किन्तु अपने जीते जी उन्होंने खुद की प्रतिमाओं को भी बहुतायत की संख्या में प्रदेश के कई शहरों में लगवाया जिसकी वजह से मायावती के प्रति दिल नफरत से भर जाता है।
विश्व इतिहास में ऐसा विरला उदाहरण कम ही देखने को मिलेगा जब कोई जीवित मनुष्य अपनी ही प्रतिमाओं की स्थापना में रुचि लेकर उसे जनता पर थोप दे। अभी पिछले ही वर्ष मायावती ने नोएडा में ३,३२,००० वर्ग मीटर में फैले और तकरीबन ७०० करोड़ रुपये की लागत से निर्मित अपने ड्रीम पार्क का विधिवत उद्घाटन किया था। इस पार्क का नाम राष्ट्रीय दलित स्थल रखा गया था। मायावती का यह ड्रीम पार्क अपनी शैशव अवस्था से ही विवादों में रहा, मगर मायावती ने तमाम विरोधों के बावजूद इसका विधिवत उद्घाटन कर विरोधियों को बोलने का मौका दिया था। और हो भी क्यों नहीं, आखिर प्रदेश के विकास और प्रदेशवासियों की मूलभूत आवश्यकताओं की अनदेखी कर उन्होंने इसका निर्माण करवाया था। हालांकि डॉ. आंबेडकर की जिस विचारधारा को ध्यान में रखकर इस पार्क को बनाया गया है, वह इस हाई-प्रोफाइल पार्क में कहीं नजर नहीं आती। धन की चकाचौंध एवं स्वयं के महिमामंडन से इतर इस पार्क में कुछ नजर नहीं आता। यही हाल प्रदेश के विभिन्न शहरों में स्थापित पार्कों के हैं। इनके निर्माण में घोर वित्तीय अनियमितताओं के अलावा पर्यावरण को प्रदूषित होने से रोकने के मानकों को भी अनदेखा किया गया है।
एक मौटे अनुमान के मुताबिक़ राज्य में करीब ११०० करोड़ की राशि मायावती ने मात्र पार्कों, मूर्तियों एवं स्मारकों के निर्माण में लगा दी। यदि इतनी ही राशि का प्रदेश की विकास योजनाओं में सही उपयोग किया जाता तो शायद आज मायावती की यह दुर्दशा नहीं होती। पता नहीं मायावती को इस दिव्य ज्ञान की कहाँ से प्राप्ति हो गई कि पार्कों, मूर्तियों एवं प्रतिमाओं की स्थापना कर वे जनता के दिलों में जगह बना लेंगी? अब जबकि मायावती सत्ता से बेदखल हो चुकी हैं तो हो सकता है कि उन्हें अपनी प्रतिमाओं की चिंता अधिक हो जिस वजह से वे अखिलेश सरकार पर अनावश्यक दबाव बना रही हों ताकि दूसरे महापुरुषों की प्रतिमाओं के साथ-साथ उनकी भी प्रतिमाएं बच जाएँ। राजनीति में निजी स्वार्थ का ऐसा अनुपम उदाहरण शायद ही देखने को मिले। मायावती के वक्तव्य के इतर अखिलेश सरकार का फैसला बुद्धिमतापूर्ण कहा जाएगा कि जनता के धन को बर्बाद कर जो उसका दुरुपयोग हुआ है उसको और अधिक नुकसान नहीं पहुँचाया जाएगा।
जहां तक राज्य में कानून व्यवस्था बिगड़ने की बात है तो यह मायावती का षड़यंत्र भी हो सकता है। हो सकता है मायावती पूरवर्ती सपा सरकार के गुंडई राज को इस दफा भुनाना चाहें और ऐसे वक़्त में यदि राज्य की कानून व्यवस्था सचमुच बिगडती है तो उसका आरोप अखिलेश सरकार पर मढ़; जनता को बरगला सकें। अखिलेश सरकार को चाहिए कि वह मायावती की ज़हर उगलती जुबान पर लगाम कसे ताकि राज्य में अनावश्यक रूप से कानून व्यवस्था न बिगड़े और यदि ऐसा होता है तो आरोपी चाहे किसी भी राजनीतिक दल के क्यूँ न हो; उन पर कड़ी कार्रवाई की जाए। मायावती को समझ लेना चाहिए जी जनता को पार्कों, मूर्तियों एवं प्रतिमाओं की स्थापना से कोई लेना-देना नहीं होता। फिर भी यदि मायावती अपनी बेजा बयानबाजी से बाज नहीं आती हैं तो यह जनता की भावना से खिलवाड़ होगा जिसे सही नहीं ठहराया जा सकता।