इस साल बकर-ईद के मौके पर मेरे मुसलमान मित्रों ने मुझे बधाईयां भेजीं। मैं भी दुनिया भर में बसे हुए मित्रों को हर साल बधाई भेजता हूं लेकिन ईद के एक-दो दिन पहले मेरे मन में विचार आया कि इस बार ईद के पवित्र अवसर पर मैं अपने मुसलमान भाइयों से कुछ सवाल करुं लेकिन फिर मैंने सोचा कि ईद सब लोग मना लें, उसके बाद ही यह सवाल उठाऊं। आज सुबह के अखबारों में ढाका की उस सड़क का चित्र देखकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए, जिसमें ईद पर मारे गए बकरों का खून तैर रहा था।
मेरा सवाल यह है कि ईद पर बकरे की कुर्बानी करना जरुरी है क्या? बकरे की कुर्बानी संत इब्राहीम से शुरु होती है। बाइबिल के ओल्ड टेस्टामेंट में यह कथा आती है। संत इब्राहीम की ईश्वर-भक्ति की परीक्षा लेने के लिए यहोवा परमेश्वर ने उनसे कहा कि अपने प्रिय बेटे की कुर्बानी करके दिखाओ। वे जैसे ही अपने बेटे इस्माइल की गर्दन काटने लगे, यहोवा ने उन्हें रोका और कहा कि बेटे की जगह एक भेड़ की कुर्बानी कर दो।
इब्राहीम यहूदी थे लेकिन यहूदी लोग और ईसाई भी इस तरह की कोई कुर्बानी नहीं करते। फिर मुसलमान लोग ही इस्माइल की जगह बकरा क्यों काटते हैं? क्या संत इब्राहीम के प्रति ईसाइयों और यहूदियों की श्रद्धा में कोई कमी है? इसके अलावा यदि इस्माइल का एवजी एक बकरा बन सकता है तो बकरे का एवजी एक कद्दू क्यों नहीं बन सकता? काबुल के आसमाई मंदिर में भी लगभग 50 साल पहले मैंने पशुबलि रुकवाई थी और उसकी जगह कद्दू रखवा दिया था।
भारत के कई हिंदू और आदिवासी लोग पशुबलि के साथ-साथ नरबलि भी देते हैं। इतना घिनौना काम धर्म के नाम पर किया जाता है। असम और नेपाल के हिंदू मंदिरों को रक्त से सना देखकर मैं सोचता हूं कि ये मंदिर हैं या कत्लखाने हैं? कुरान शरीफ में लिखा है कि कुर्बानी का मतलब खुदा को यह संदेश देना है कि आपकी खातिर भक्तजन कितना त्याग कर सकते हैं? अगर त्याग ही करना है तो अपने काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह और मत्सर का त्याग कीजिए। ये तो आपको अपने बकरे से भी ज्यादा प्यारे हैं कि नहीं? यदि इन व्यसनों का आप त्याग कर सकें तो आप ‘जिहादे-अकबर’ याने ‘महान जितेंद्रिय’ बनने के अधिकारी हो जाएंगे।