बम के धमाके से बड़ा है, उसकी चोरी का धमाका ! पाकिस्तान का परमाणु-बम अभी चोरी नहीं हुआ है लेकिन उसके वैज्ञानिकों ने बम के रहस्यों को जो चोरी-चोरी बेच दिया है, उसके धमाके ने पाकिस्तान में कोहराम मचा रखा है| भारतीय बम के जवाब में जब 1998 में पाकिस्तान ने बम फोड़ा तो पाकिस्तान में उत्साह की लहर फैल गई थी| पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ और बम-निर्माता वैज्ञानिक अब्दुल क़ादिर खान इतिहास-पुरुष बन गए लेकिन अब जबकि वियना के अन्तरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अभिकरण ने पाकिस्तान पर परमाणु रहस्यों को बेचने का आरोप लगाया है तो मुशर्रफ सरकार को कॅंपकॅंपी चढ़ गई है| उसने प्रधानमंत्री जमाली के वैज्ञानिक सलाहकार और पाकिस्तानी बम के पिता ए.क्यू. खान से इस्तीफा ले लिया है| बम के कारण खान महानायक बन गए थे लेकिन अब जैसे-जैसे सारी कहानी उजागर होती जा रही है, न केवल खान की इज्ज़त धूल में मिल रही है बल्कि पाकिस्तान सरकार भी कुए और खाई के बीच में लटक गई है|
पाकिस्तानी सरकार के सामने दो समस्याऍं हैं| एक तो यह कि वह अन्तरराष्ट्रीय कानून के उल्लंघन की दोषी बन रही है| अगर यह सिद्घ हो गया कि ईरान, एराक़, लीब्या और उत्तर कोरिया को बम बनाने की तकनीक सिखाने में पाकिस्तान सरकार का हाथ है तो संयुक्तराष्ट्र संघ उसके विरुद्घ इतने कड़े प्रतिबंध लगा सकता है कि पाकिस्तानी अर्थ-व्यवस्था ठप हो सकती है और इस्लामी राष्ट्रों का यह नेता अन्तरराष्ट्रीय अछूत बन सकता है| दूसरी समस्या यह है कि ए.क्यू. खान जैसे वैज्ञानिक को पाकिस्तानी सरकार बचाएगी या फॅंसाएगी? अगर वह उसे बचाती है तो उससे यह मानना पड़ेगा कि अन्य देशों को परमाणु तकनीक बेचने और परमाणु अप्रसार-संधि के उल्लंघन का सारा दोष उसके माथे है और अगर वह यह सिद्घ करती है कि खान ने खुद पैसे कमाने के लिए परमाणु-रहस्य बेचे हैं तो पाकिस्तानी जनता के नाराज़ होने की बहुत संभावनाऍं हैं| कुछ पाकिस्तानी अखबारों और नेताओं ने यह कहना शुरू कर दिया है कि खान ने चाहे कुछ देशों को परमाणु रहस्य बेच दिए हों लेकिन मुशर्रफ तो पाकिस्तान को ही बेचे दे रहे हैं| वे अमेरिका के इशारे पर पाकिस्तान के महानायक को कटघरे में खड़ा करने को तैयार हैं| कौन देशभक्त है? मुशर्रफ या अब्दुल क़ादिर? खुद मुशर्रफ काफी घबराए हुए हैं| जैसे तालिबान के खिलाफ उन्होंने रातोंरात पैंतरा बदल लिया था, वैसे ही अब वे खान के खिलाफ़ भी बदल रहे हैं|
खान ने प्रधानमंत्री के सलाहकार पद से इस्तीफा दे दिया है, यह तो अभी बिस्मिल्लाह है| असंभव नहीं कि उन्हें गिरफ्तार ही कर लिया जाए| वे पिछले तीन-चार दिन से लगभग नजरबंद हैं| कई पाकिस्तानी अखबारों ने उनके बारे में अनेक रसीली और रंगीली कहानियॉं छापनी शुरू कर दी हैं| मुखपृष्ठों से पाकिस्तानी जनता को पता चला है कि अफ्रीका के टिम्बकटू नामक प्रसिद्घ स्थान पर खान ने अपनी डच बीवी हेंडि्रना के नाम से शानदार होटल खोला है और इस होटल के लिए पाकिस्तान में बना क़ीमती फर्नीचर वायुसेना के जहाज से पहॅुंचवाया गया है| इसके अलावा लंदन में उनकी करोड़ों की सम्पत्तियॉं हैं| उनके पूर्व दामाद को उन्होंने अरबों रु. के ठेके भी दिलवाए थे| अकेले खान ही नहीं, लगभग 15 अन्य पाकिस्तानी वैज्ञानिकों ने बम के नाम पर जमकर पौ-बारह की है| जुल्फिकार अली भुट्टो कहा करते थे – हम घास खाऍंगे लेकिन बम बनाऍंगे| इन वैज्ञानिकों ने सिद्घ किया है कि हम माल खाऍंगे और बम बनाऍंगे| पता नहीं, पाकिस्तान के इस्लामी बम के पीछे कौनसी प्रेरणा है? मज़हब की, देशभक्ति की या भज कल्दारम्र की| पाकिस्तान में भारत के विरुद्घ ईर्ष्या की ऐसी जबर्दस्त आग भड़कती रही है कि बम के नाम पर पाक सरकार ने डॉलरों का दरिया बहा दिया था| परमाणु वैज्ञानिकों को मनमाने खर्च की छूट थी| खान-जैसे वैज्ञानिकों ने लगभग 10 अरब डॉलर खर्च करके बम के कल-पुर्जे और तकनीक हासिल की होगी, ऐसा अन्तरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों का अनुमान है| इन वैज्ञानिकों को पाकिस्तानी सरकार की तरफ से पूरी छूट मिली हुई थी, क्योंकि वे बम का सामान तस्करी के ज़रिए ला रहे थे| अगर खर्च वगैरह कागज़ पर लिखा जाता और बाक़ायदा अनुमति ली जाती तो पकड़े जाने का अंदेशा था| इसी अंदेशे का फायदा उठाकर पाकिस्तानी वैज्ञानिकों ने जमकर चॉंदी काटी| पाकिस्तान सरकार भी निश्चिन्त थी, क्योंकिे इस्लामी बम के नाम पर उसे सउदी अरब, लीब्या, संयुक्त अरब अमारात और कुछ दिनों तक एराक़ से भी अकूत धनराशि मिलती रही थी| आगा हसन आबिदी नाम पाकिस्तानी बाजीगर ने जो अन्तरराष्ट्रीय-बैंक खोला था, उसके गुप्त खातों के ज़रिए भी लेन-देन हुआ करता था| अगर इस डूबे हुए बैंक के खातों की जॉंच हो सके तो पाकिस्तान ही नहीं, कई अन्य देश भी रंगे हाथों पकड़े जाऍंगे|
पाकिस्तानी वैज्ञानिकों ने पहले यूरोप की प्रयोगशालाओं, कारखानों और वैज्ञानिकों को पैसा खिलाया और अनेक स्रोतों से बम के कल-पुर्जे जुटाए और जब अपना बम बना लिया तो ये खरीदार पलक झपकते ही दुकानदार बन बैठे| उन्होंने परमाणु रहस्य और कल-पुर्जे अन्य देशों को बेचने शुरू कर दिए| ईरानी सरकार ने खुले-आम स्वीकार किया कि उसने पाकिस्तानी मदद से अपनी परमाणु भट्ठियॉं तैयार की हैं| लीब्या और उत्तर कोरिया को भी उन्होंने परमाणु-माल बेचा है| धीरे-धीरे तथ्य खुलते जा रहे हैं और प्रमाण सामने आते जा रहे हैं| पाकिस्तान की ये गतिविधियॉं अन्तरराष्ट्रीय कानून का सरासर उल्लंघन करती हैं| इस तरह की गोपनीय गतिविधियों का सुराग भारत के गुप्तचर विभाग को लगभग 15 साल पहले ही लग गया था| ऐसे में यह कैसे माना जा सकता है कि अमेरिका और बि्रटेन की गुप्तचर संस्थाऍं अंॅधेरे में रही होंगी? इसी से पता चलता है कि पश्चिमी राष्ट्र कितने बड़े ढोंगी हैं? वे भारत-जैसे राष्ट्रों का टेंटुआ कसने को सदा तैयार रहते हैं लेकिन पाकिस्तान-जैसे अपने मोहरों की कारस्तानियों की अनदेखी करते हैं| कभी उन्हें अफगानिस्तान में रूसियों के विरुद्घ लड़ने के लिए पाकिस्तानी बगलबच्चे की जरूरत होती है तो कभी तालिबान को दबाने के लिए ! इसीलिए वे भारत जैसे शक्तिशाली, विशाल और लोकतांत्रिक राष्ट्र के विरुद्घ पिद्दी से पाकिस्तान को कद्दावर बनने में मदद करते रहते हैं| पाकिस्तान को दक्षिण एशिया का नक़ली दादा बनाकर पश्चिम ने जो विष-बीज बोये हैं, उसकी फसल अब वह लीब्या से उत्तर कोरिया तक काट रहा है| क्या अमेरिका अब भी पाकिस्तान के विरुद्घ कोई ठोस कार्रवाई नहीं करेगा? क्या पाकिस्तान विश्व शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा नहीं बन गया है? क्या पाकिस्तान ने परमाणु अप्रसार संधि के परखचे नहीं उड़ा दिए हैं?
यदि पाकिस्तान के जिम्मेदार वैज्ञानिक इतनी छूट ले सकते हैं कि वे जहॉं से पैसा मिले, वहीं विश्व-विध्वंस की भट्ठियॉं कायम कर दें तो क्या आश्चर्य कि उसके आतंकवादी किसी दिन समूचे परमाणु बम चुराकर भारत और अमेरिका को ही अपना सीधा निशाना बना लें| जो वैज्ञानिक यूरोपीय लोगों को खरीद सकते हैं, वे पुराने सोवियत संघ के गणतंत्रों की प्रयोगशालाओं को क्यों नहीं खरीद सकते? उन गणतंत्रों में अब भी परमाणु शस्त्रास्त्रों के भंडार भरे हुए हैं| पाकिस्तानी वैज्ञानिकों और गुप्तचर संगठनों का आतंकवादियों, अल-क़ायदा नेताओं, मुल्ला उमर और उसामा बिन लादेन से सीधा संबंध रहा है| यह संबंध पाकिस्तान के साथ-साथ सारे संसार को नष्ट कर सकता है| इसीलिए जरूरी है कि दुनिया के राष्ट्र मिलकर पाकिस्तान के परमाणु शस्त्रास्त्रों, परमाणु भट्ठियों और प्रयोगशालाओं के मूलोच्छेद के लिए सामूहिक कार्रवाई करें| वर्तमान रहस्योद्रघाटनों ने संसार को परमाणु-विभीषका से बचने का एक नया अवसर प्रदान किया है|