छत्तीसगढ़ नक्सली हमले से एक दिन पहले गुवहाटी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्मार्ट पुलिसिंग की वकालत करते हुए मजबूत देश के लिए मजबूत खुफिया तंत्र होने की बात कही थी। मतलब पीएम यह स्वयं मानते हैं कि अपने देश की खुफिया तंत्र मजबूत नहीं है। यदि खुफिया तंत्र मजबूत हो जाए तो क्या होगा? केंद्र की रिजर्व पुलिस बल राज्य पुलिस के नेतृत्व में कार्य कर रही है। राजनीतिक नेतृत्व नक्सलियों को भटका हुआ भाई कहता है और वे हमारे चुस्त और प्रशिक्षित जवानों पर घात लगा कर हमले कर रहे हैं।
25 मई वर्ष 2013 में ही नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के जीरम घाटी में घात लगाकर कांग्रेस के काफिले पर हमला कर दिया। प्रदेश कांग्रेस की पहली पंक्ति के अधिकतर दिग्गजों का नक्सलियों ने हत्या कर दी। नक्सलियों द्वारा राजनीतिक नेतृत्व के सफाये के इस घटना ने देश दुनिया को हिला कर रख दिया। छत्तीसगढ़ सरकार ने थोड़ी सख्ती दिखाई। चुनाव जीतने के बाद फिर बनी भाजपा सरकार ने बस्तर में आईपीएस एसआरपी कल्लूरी को आईजी बना कर पदस्त किया। कल्लूरी वही आईपीएस हैं जिनके डर के कारण नक्सलियों अपनी स्टेट कमेटी को भंग कर दिया।
बस्तर में जब से कल्लूरी की पदास्थापना हुई, तब थे नक्सलियों के समर्पण की लाइन लग गई। छत्तीसगढ़ में वर्ष 2012 में 13 और 2013 में मात्र छह नक्सलियों ने सरेंडर किया था। वर्ष 2014 में गत छह महीने में ही समर्पण का आंकड़ा करीब 300 तक पहुंच गया। हर दिन नक्सलियों के सरेंडर की खबरें और सर्चिंग आॅपरेशन से यह लगने लगा था कि नक्सलियों का मनोबल टूटने लगा है। पर 2 नवंबर से नक्सली संगठन पीएलजीए की 14वीं वर्षगांठ पर हताश नक्सलियों ने ग्रामीणों को ढाल बना कर जिस तरह से 14 सीआरपीएफ जवानों की हत्या की, इससे साबित हो गया कि वे अपने लाल अभियान की लौ को मंद नहीं पड़ने देना चाहते हैं। जैसा की हर आतंकी और नक्सली घटना के बाद इस बात का खुलासा होता है कि खुफिया विभाग ने ऐसे हमले की पहले ही चेतावनी दी थी। फिर राजनीतिक गतिलयारें में एक दूसरे पर दोषारोपण कर बाल की खाल निकाले जाते हैं, इस घटना के बाद भी होने लगा है। सात नवंबर को केंद्र सरकार की खुफिया ब्यूरों से समन्वय करने वाली राज्य की खुफिया इकाई ने एक खास अलर्ट जारी किया था कि नक्सली बड़ी घटना की फिराक में हैं।
नक्सली खुद को संगठित करने की कोशिशों में लगे हुए हैं। बस्तर क्षेत्र में अपने कमजोर पड़ते वजूद की वजह से वह इस हमले को अंजाम दे सकते हैं। एक के बाद एक नक्सली समर्पण के कारण अपनी ताकत और आत्मवश्विास को हासिल करने के लिए नक्सलियों द्वारा ऐसी बड़ी वारदात की आशंका पहले से ही थी। हालांकि अमूमन खुफिया विभाग की चेतावनी रूटीन की होती है। जानकार कहते हैं कि ऐसे अलर्ट हर महीने भेज कर खुफिया विभाग अपनी जिम्मेदारी से बचती है। सैंकड़ों की संख्या में नक्सली मूवमेंट करते हैं और और प्रशासन को कोई खबर नहीं होती। क्या यह खुफिया तंत्र है। ऐसी नकामियां यह साबित करती है कि खुफिया विभाग में दीमक लग चुका है और इसकी के कारण नक्सली अपनी मकसद में कामयाब हो रहे हैं।
खुफिया तंत्र में सच में दीमक लग गया है, इसका एक और उदाहरण देखिए। हाल ही में मीडिया में आई खबरों के अनुसार नक्सलियों के बड़े नेता दक्षिण छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ में 10 से 21 सितंबर तक बैठक-दर-बैठकें करते रहे। इसमें प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) के सभी बड़े नेता भी शामिल हुए। झारखंड, ओडिशा, महाराष्टÑ और आंध्रप्रदेश से सारे नक्सली नेता आए। ओरछा के पास घने जंगलों में संगठन का 10वां कांग्रेस किया। अपनी रणनीति पर मंथन कर चलते बने। ऐसा नहीं है कि सुरक्षाकर्मियों को इसकी भनक नहीं थी। छत्तीसगढ़ पुलिस के सभी आला अधिकारियों और केंद्रीय गृहमंत्रालय के आंतरिक सुरक्षा से जुड़े वरिष्ठ अधिकारियों को इसकी जानकारी पहले ही आईबी ने पहुंचा दी थी, मगर बैठक में सुरक्षा के प्रबंध पुख्ता मान लीजिए या फिर कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के कारण वहां तक नहीं पहुंच पाने के कारण सुरक्षाकर्मियों के हाथ कुछ ठोस नहीं लग सका। केंद्र को सूचना मिली तो फौरन सीआरपीएफ की नक्सल विरोधी अभियान के फाइटर माने जाने वाले वाले कोबरा कमांडो के बटालियनों को अबूझमाड़ के जंगलों में उतारा गया। दावा किया गया कि सभी संभावित ठिकानों के खाक छाने गए। मगर हाथ कुछ नहीं लगा। इस नक्सली हमले से एक दिन पहले गुवहाटी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्मार्ट पुलिसिंग की वकालत करते हुए मजबूत देश के लिए मजबूत खुफिया तंत्र होने की बात कही थी। मतलब पीएम यह स्वयं मानते हैं कि अपने देश की खुफिया तंत्र मजबूत नहीं है। और इसका खामियाजा उनके बयान के एक दिन बाद छत्तीसगढ़ में देखने को भी मिल गया।
देश के सुरक्षा व खुफिया तंत्र से जुड़े सेवानिवृत्त अधिकारियों ने भी मौके-मौके पर इस बात को इस तंत्र की कमजोरी को न केवल स्वीकार किया है, बल्कि यह इसकी मजबूती के लिए सुझाव भी दिए हैं। लेकिन उन्हीं की जुबान बताती है कि यदि खुफिया तंत्र मजबूत हो जाए तो क्या होगा? केंद्र की रिजर्व पुलिस बल राज्य पुलिस के नेतृत्व में कार्य कर रही है। राजनीतिक नेतृत्व नक्सलियों को भटका हुआ भाई कहता है और वे हमारे चुस्त और प्रशिक्षित जवानों पर घात लगा कर हमले कर रहे हैं। जब केंद्र और नक्सल प्रभावित राज्यों में अलग-अलग पार्टियों की सरकार होती है तो ऐसी घटनाओं के बाद हमेशा टकराव सामने आता है। राज्य सरकार कहती है कि केंद्र से सहयोग नहीं मिल रहा है और केंद्र सरकार कहती है कि हमने भरपूर सहयोग दिया है, इसके बाद भी राज्य सरकार दृढ़ता नहीं दिखा रही है। लेकिन छत्तीसगढ़ और केंद्र में सरकार एक ही पार्टी की है। लिहाजा, ठोस कार्रवाई की अपेक्षा तो बनती ही है।