भगवान श्री कृष्ण ने कहा हैं :-
यदि “धर्मयुद्ध हुआ तो इस धर्मयुद्ध में कोई निरपेक्ष नहीं रह सकता ” |
इतिहास में एक धर्मयुद्ध का उदाहरण देखें :
महाभारत के युद्ध के समय जब पांडवो और कौरवो दोनों द्वारिका में मदद मांगने गए तो बलराम जी ने किसी की तरफ से भी लड़ने से मना कर दिया और तीर्थ यात्रा पर निकल गए |
और वो जब आये तो महाभारत का अंतिम भाग चल रहा था |
जब उनके देखते देखते भीम ने दुर्योधन की जंघा तोड़ डाली तो बलराम जी भीम का वध करने पर अड़ गए |
तब भगवन श्री कृष्ण ने उन्हें रोकते हुए कहा
“रुक जाओ दाऊ , पहले मेरी बात सुनो फिर जो चाहे वोह करो ” |
बलराम जी बोले ” अब बोलने को रह क्या गया हैं किशन ??
और मैं येह भी जानता हूँ की अब इसके बचाव में तुम कुछ भी नहीं कह सकते |
भगवान बोले ” यदि बोलने को कुछ ना होता तो बीच में आता ही क्यूँ ??
में यह नहीं कहता की मझले भैया भीम ने किसी मर्यादा का उलंघन नहीं किया है
अवश्य किया हैं | परन्तु हे दाऊ आपने कभी दुर्योधन को तो नहीं रोका |
क्या मर्यादा भी पक्षपात करती हैं दाऊ की यदि दुर्योधन कोई मर्यादा का
उल्लंघन करे तो वोह ठीक और यदि भीम भैया से कोई मर्यादा का उलंघन हो जाए
तो उनके लिए मृत्युदंड ??
येह तो कोई नहीं न्याय नहीं हैं दाऊ | टूटना ही था इस जंघा को क्यूंकि मंझले
भैया प्रतिज्ञा बद्ध थे, यदि आप उनके स्थान पर रहे होते तो आप क्या करते
दाऊ ?? हे दाऊये ना भूलिए जब येह सब आपके पास सहायता मांगने आये थे
तब आप तीर्थ यात्रा पर निकल गए थे दाऊ तीर्थ यात्रा पर ………..
” जब धर्म और अधर्म के बीच युद्ध होने जा रहा हो दाऊ…
तब केवल एक ही तीर्थ स्थान रह जाता हैं —रणभूमि ”
जिस युद्ध से आप भाग गए थे दाऊ उसके अंतिम क्षणो में आकर उस पर अपना प्रभाव डालने कायत्न ना कीजिये |
वैसे आप दाऊ हैं यदि आप फिर भी भीम का वध करना ही चाहते हैं तो
लीजिये में हट जाता हूँ बीच से | बलराम जी लज्जित हो कर वहां से चले गए|
तो फिर बंधुओं अब आप लोग किसकी तरफ से लड़ना चाहेंगे इस धर्मयुद्ध में इसका फैसला आज और अभी कर लो….
अब कृपया ये मत पूछ लेना कोन सा युद्ध……!!! आज भी म्लेच्छ अपने आप को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं वे म्लेच्छों के सिवा और सबको समाप्त कर देना चाहते हैं। धर्मयुद्ध का समय अब निकट है।