भारत संतो, परंपरा एवं संस्कारों का देश है। जहाँ नारी को दुर्गा, शक्ति, माँ, बहिन, बेटी के रूपों में पूजने की बात कही जाती है। वहीं पत्नी के रूप में सहभागिनी के रूप में जीवन को पूर्णताः प्रदान करने वाली होती है। देवलोक से पृथ्वी लोक तक मातृ शक्ति के आगे क्या देवता, क्या दानव सभी शरणागत है। इतिहास गवाह है जब भी कोई भी इनसे टकराया है उसका विनाश ही हुआ है। फिर बात चाहे त्रिकालदर्शी, सर्वशक्तिमान राजा रावण की हो या बुरी नियत रखने वाले दुःशासन की हो। इतिहास इस बात का भी गवाह है कि राजाओं के शासनकाल में भी नारी ने प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से राज्यों के संचालन में न केवल अहम भूमिका निभाई हैं, बल्कि इनका सर्वोच्च स्थान भी रहा है और हो भी क्यों न? एक परिवार का सफलतापूर्वक संचालन करने की जिसमें असीम शक्ति हो राज्य तो क्या देश चलाने का भी माद्दा रखती हैं। यही भारतीय संस्कृति की खूबसूरती हैं। नारी ने सदा से ही घर, समाज और देश को बिना खुद की चाह के केवल दिया ही है फिर बार चाहे अच्छा बेटा, बेटी, नागरिक की ही क्यों न हो। कहते भी है हर सफल व्यक्ति के पीछे एक नारी का हाथ होता हैं।यहाँ यक्ष प्रश्न यह है कि आखिर कहां चूक हुई है जिससे वर्तमान में सभी की निगाहों के निशाने पर केवल और केवल स्त्री ही है फिर बात चाहे घर की हो, रिश्तो की हो, या बाहर कार्यस्थल की।
कहीं ये बढती पाश्चात सभ्यता का नतीजा तो नहीं? जिसने बराबरी की चाह की दौड़ में, तृष्णा में, रपटन भरे रास्ते में रपट हवस, वासना की कीचड़ में गिर हवस के भेडियों का शिकार हो रही है जिसके चलते वह घर से लेकर कार्यस्थल तक वह अपने को न केवल असुरक्षित महसूस कर रही है बल्कि कई जगह उसे अपमान का भी शिकार होना पड रहा है।
लोकतंत्र के इस दौर में क्या विधायी पालिका, क्या न्यायपालिका, क्या कार्यपालिका, क्या खबर पालिका, के कुछ कारिंदो की वजह से इनके दामन पर लगे स्याह दाग इनको कलंकित भी कर रहे है।
‘सेक्स’’ भारतीय संस्कृति पर इस कदर प्रभावी हो गया है कि ‘‘विश्वास’’ आस्था, श्रृद्धा बुरी तरह से लहुलुहान हो गई हैं। फिर बात चाहे आसाराम-नारायण स्वामी की हो, न्यायाधीश पर महिला इर्टन की हो, सबकी खबर लेने वाले खबरपालिका ‘‘तहलका’’ की हो, जिसने 13 वर्ष के अल्पकाल से ही मानव अधिकार, धूस भ्रष्टाचार एवं स्टिंग आपरेशन में तहलका मचा नये मानदण्ड स्थापित कर बड़े-बड़े राजनीतिक नेताओं को अर्श से फर्श पर पटक गुमनामी के अंधेरों में खोने की हो। आज वही तहलका पत्रिका के तेज तर्रार संस्थापक, संपादक तरूण तेजपाल अपने ही तीरों से घायल एवं यौन शोषण से मचे तहलका से न केवल अपने ही बुने जाल में फंस गए बल्कि जिंदगी भर की कमाई नेकी की पूंजी की भी लुटिया डुबो बैठे हैं। यहाँ कही न कही पाश्चात् सभ्यता ने न केवल अपना असर दिखाया बल्कि उसके दुष्परिणामों के असर से उत्पन्न ‘‘सेक्स’’ के बवंडर ने तहलका मचा सब कुछ अस्त व्यस्त कर पस्त कर दिया हैं।
तेजपाल के लिए 10 नवंबर 2013 का दिन उनके द्वारा गोवा में आयोजित ‘‘थिंक फेस्ट’’ उनके केरियर के लिए ‘‘थिंक लास्ट’’ तब साबित हो गया जब उनकी बेटी की उम्र की लड़की एवं उन्हीं की संस्थान की पत्रकार ने एक नहीं दो बार यौन शोषण का आरोप लगा ‘‘तहलका’’ में ‘‘तहलका’’ मचा दिया जैसा कि पश्चात् सभ्यता में एक शब्द है। ‘‘सॉरी’’ का सहारा ले तरूण तेजपाल नशे की हालत में हुई गलती की माफी मांग प्रकरण की इति समझ खुद ही जज बन
प्रायश्चित् के रूप में 6 माह संस्था से अलग होने की सजा सुना बाहर चले आयें। हर इंसान को एक बात कभी नहीं भूलना चाहिए कि वह जैसा सोचता है घटना और उसके परिणाम वैसे घटित नहीं होते यहां मुझे महाभारत का वह दृश्य अनायास ही तैर रहा है। क्या कभी कोई भी सोच सकता था कि पाण्डव, कौरवों की विशाल सेना के सामने निहत्थे कृष्ण को साथ ले कभी यृद्ध जीत सकते है? सोचा कुछ हुआ कुछ। परिणाम हम सभी जानते हैं।
मीडिया के महारथी को वही दुर्गा, वहीं शक्ति, वही बेटी ने ‘‘तहलका में तहलका’’ मचा कर रख दिया। युवा महिला पत्रकार के लिए यहाँ थोडी विपरीत परिस्थिति इसलिए और भी रही उन्हीं की संस्था की प्रबंध संपादिका शोभा चौधरी ने अगर पहले ही अपने स्तर पर ठोस कदम उठा महिला हित सोच कार्यवाही कर ली होती तो आज उन्हें एवं तहला को यह तहलका न देखना पड़ता और न ही उन्हें भी अपना पद छोडना पड़ता। यहाँ फिर या प्रश्न उठ खडा होता है विकास के इस दौर में एवं प्रतिस्पर्धा की इस दौड़ में महिला की अस्मिता की रक्षा कैसे हो? संरक्षण कैसे हो?
हालांकि तरूण तेजपाल पर धारा 376 (2) के पुरूष द्वारा महिला पर बालात नियंत्रण जिसमें सजा कम से कम 10 वर्ष धारा 354 (1) पुरूष द्वारा महिला का शारीरिक स्पर्श या मौन संबंध बनाने का प्रस्ताव या महिला इच्छा के विपरीत अश्लील चित्र दिखाना, टिप्पणी करना आता है जिसमें 3 साल की कैद या जुर्माना या दोनों हैं। गोवा पुलिस द्वारा लगा प्रकरण पंजीबद्ध किया गया हैं।
तरूण तेजपाल शुरू में स्वयं को सजा सुना। आम आदमी में मती भ्रम कर संत बनते नजर आए लेकिन अगले ही दिन अपनी बातों से पलट बचाव की मुद्रा में आ वो सभी हथकण्डे अपनाते नजर आए जो होता है।
अब वक्त आ गया है सभी धमाचार्यों, राजनीतिज्ञों विशेषतः जो महिलाओं के नाम पर प्रतिनिधित्व कर रही है, न्यायपालिका एवं खबरपालिका को नेक नियति एवं पूर्ण सिद्दत से महिला के मान सम्मान, प्रतिष्ठा जाति वर्ग भेद से, राजनीति से ऊपर उठ न केवल प्रयास करें बल्कि ये कहीं न कहीं धरातल पर परिलक्षित भी हो। केवल योजनाओं किताबों एवं सरकारी फाईलों तक ही सीमित न रहे।