स्मृति ईरानी अपने पीछे अद्भुत स्मृति छोड़ गई हैं। उनके जैसा मानव-संसाधन मंत्री न पहले कभी आया और न कभी आने का! वे नरेंद्र मोदी के लिए अतिरिक्त बोझ बन गई थीं। प्रकाश जावड़ेकर यह नहीं कहते तो क्या कहते कि ईरानी ने जो अच्छा काम किया है, उसे वे आगे बढ़ाएंगे। ईरानी ने कौन-कौन से अच्छे काम किए हैं, शिक्षा के क्षेत्र में, यह खोजने के लिए जावड़ेकर को अब एक खुर्दबीन खरीदना होगा।
जो भी हो, जावड़ेकर एक अच्छे और कर्मठ कार्यकर्ता रहे हैं। उनसे हमें बहुत आशाएं हैं। मैं कुछ मोटे-मोटे सुझाव यहां देता हूं, जिन्हें वे तुरंत लागू करें।
सबसे पहले वे प्रधानमंत्री मोदी से कहें कि उनके मंत्रालय का नाम बदला जाए। मानव-संसाधन नहीं, शिक्षा मंत्रालय रखा जाए। जब राजीव गांधी ने यह नाम पहले-पहल दिया तो नरसिंहरावजी को मंत्री बनाया। इस अटपटे और बुद्धिहीन नाम के बारे में राव साहब से जब मैंने पूछा तो वे कहने लगे, क्या करें, प्रधानमंत्री हमेशा सही होता है। मनुष्य को साधन बताना भारतीय संस्कृति को सिर के बल खड़ा करना है। शिक्षा मंत्रालय को अशिक्षा मंत्रालय बनाना है।
स्मृति ईरानी द्वारा दो साल में बनवाई गई और फिर दबवाई गई शिक्षा-रपट को कूड़ेदान के हवाले किया जाए। नौकरशाहों द्वारा बनाई गई रपट भी क्या रपट होगी? जैसे वे खुद बनकर निकले हैं, वैसे ही अगली पीढ़ियों को वे बनवा देंगे।
जावड़ेकर यदि शिक्षा में क्रांति कर सकें तो साल भर बाद भी यह सरकार मुंह दिखाने लायक रह सकेगी। सबसे पहले उन्हें अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्म करनी होगी। दूसरा, सारे विषय भारतीय भाषाओं के माध्यम से पढ़ाए जाने चाहिए। अंग्रेजी माध्यम के सभी स्कूल-कालेजों पर प्रतिबंध लगाया जाए। तीसरा, किताबें रटाने की बजाय छात्रों को काम-धंधों का प्रशिक्षण दिया जाए। चौथा, शिक्षा के नाम पर चल रही निजी संस्थाओं की लूट-पाट पर तत्काल प्रतिबंध लगाया जाए।
पांचवॉ, शिक्षा में 10 वीं कक्षा तक गरीबों के बच्चों को 75-80 प्रतिशत आरक्षण दिया जाए। उन्हें भोजन, वस्त्र और निवास की भी सुविधा दी जाए। छठा, नैतिक शिक्षा अनिवार्य की जाए। सुझाव तो कई और विस्तृत हो सकते हैं लेकिन अभी तो इतना ही कर दें तो देश शत प्रतिशत साक्षर हो सकता है। फेल होने वाले और आत्महत्या करने वाले छात्रों की संख्या घट सकती है। स्व-रोजगार की बाढ़ आ सकती है। पांच साल में देश का नक्शा बदल सकता है।