जम्मू-कश्मीर सरकार ने शिव कुमार शर्मा को गिरफ्तार कर लिया है। शर्मा राज्य की पुलिस में सब इंस्पेकटर के पद पर काम कर रहे हैं । कायदे से सब इंस्पेक्टर की गिरफ्तारी अपने में कोई खबर नहीं है। जहां हर रोज भ्रष्टाचार में अरबों रुपये डकार जाने वाले मंत्री गिरफ्तार हो रहे हों वहां शिव कुमार शर्मा की गिरफ्तारी को कारखाने में तूती ही मानी जाएगी। लेकिन इसके बावजूद शिव कुमार शर्मा की गिरफ्तारी की खबर बहुत अहम है।शिव कुमार उर्फ़ सोनू साधारण सब इंस्पेक्टर नहीं हैं बल्कि आतंकवादियों के दिलों में दहशत पैदा कर देने वाले पुलिस कर्मी हैं । बीस साल पहले वे जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों से लड़ने के लिए गठित ग्राम सुरक्षा बल के सदस्य बने थे। ग्राम सुरक्षा बल एक प्रकार से जम्मू कश्मीर का सलवा जुडम था जिसकी रचना , राज्य के आम नागरिकों की सहभागिता से , पाकिस्तान पोषित आतंकवाद से लडने के लिये की गई थी । आतंक के चरमकाल में ग्राम सुरक्षा बल से जुडना अपने आप में साहस का काम था । इस आन्दोलन से जुडे नौजवान आतंकवादियों की हिट लिस्ट में सबसे उपर रहते थे । बीस वर्ष पूर्व आतंकवाद के खिलाफ अपनी लडाई शुरु करने वाले शिव कुमार पुलिस में सबइंस्पेक्टर के पद तक पहुंचे । आतंकवाद और राष्ट्र विरोधी ताकतों से लड़ने का उनका जज्बा इतना बेमिसाल है कि आतंकवादी भी शर्मा के नाम से थर्राने लगे थे। वे अब तक 100 से भी अधिक पाकिस्तान समर्थित दुर्दान्त आतंकवादियों को अपनी गोली का निशाना बना चुके हैं । वातानुकूलित कमरों में बैठ कर आतंकवाद के सामाजिक-आर्थिक कारणों की खोज करना और फिर आतंकवादियों के मानवाधिकारों के नाम पर मूडिया व न्यायालयों में अभियान चलाने वाले इतना तो जानते ही हैं कि फिल्मों में किसी आतंकवादी को गोली का निशाना बनाने का अर्थ है अच्छा अःिनय लेकिन आतंकवाद से जूझ रहे जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों को गोली का निशाना बनाने का अर्थ है हर पल अपनी जान हथेली पर लेकर चलना। शिव शर्मा राज्य के पुलिस बल में जान हथेली पर लेकर चलने वाले जांबाज के नाते ही विख्यात हैं। जिस राज्य में मंत्रियों के आगे पीछे सुरक्षा बलों की दर्जनों गाडियां चलती हैं और वे फिर भी आतंकवादियों के खिलाफ बोलने से पहले दस बार सोचते हैं, उस राज्य में आतंकवादी शिव शर्मा के खौफ से काँपते थे।
जम्मू कश्मीर में शिव शर्मा जैसे पुलिस अधिकारियों से निपटने का आतंकवादियों के पास एक ही तरीका है । पहले तरीका तो यही है कि ऐसे पुलिस अधिकारी को मार गिराया जाये । लेकिन आतंकवादी अपने इस अभियान में कामयाब नहीं हो सके थे । इस लडाई में शिव शर्मा ही उन पर भारी पड रहे थे । दूसरा तरीका जम्मू कश्मीर में काफी कारगार है । सरकारी व्यवस्था से मिल कर ही शिव शर्मा जैसे लोगों को घेरा जाये । जम्मू कश्मीर में सरकारी व्यवस्था का एक गुट आतंकवादियों के साथ मिल कर काम करता है । अनेक बार इसके प्रमाण भी मिलते रहे हैं । जिस प्रदेश में कुछ मंत्री ही अपने राजनैतिक हितों के लिए पर्दे के पीछे आतंकवादियों से सांठ- गांठ किए रहते हों , वहाँ यह दूसरा तरीक़ा कारगार रहता है । राज्य में कुछ मंत्रियों पर विधानसभा में ऐसी सांठ-गांठ के आरोप लग भी चुके हैं। शिव शर्मा जैसे सिपाहियों की कर्तव्यपरायणता से खौफ खाए आतंकवादी सत्तारुढ राजनैतिक नेतृत्व को धमकाते हैं । आखिर जब राजनैतिक नेता चुनाव जीतने के लिए आतंकवादियों से मदद लेते है तो अपने अस्तित्व पर संकट आने पर आतंकवादी ,राजनैतिक नेतृत्व को सहायता करने के लिए विवश क्यों नहीं करेंगे? लगता है जम्मू-कश्मीर में शिव कुमार शर्मा आतंकवादियों औऱ राजनैतिक नेतृत्व के बीच परस्पर सहायता की इसी संधि का शिकार हो गए हैं। लेकिन परस्पर सहायता की इस संधि को क्रियान्वित करते समय उसे क़ानूनी आवरण पहनाना भी ज़रुरी होता है ताकि शासकीय व्यवस्था का सम्मान भी बना रहे और शिव कुमार भी निपट जाये । ताज्जुब है परस्पर सहयोग के इस पूरे खेल में क़ानूनी आवरण मुहैया करवाने की ज़िम्मेदारी आतंकवादियों को दी गई ।
कुछ आतंकवादियों ने पुलिस स्टेशन में यह बयान दिया कि उनको शिव कुमार शर्मा ने हथियार वगैरा दिये थे। बस फिर क्या था । इसी एक बयान की जरुरत थी । राज्य सरकार की यह सबसे बडी खासियत है कि वह आतंकवादियों के बयान को सबसे ज्यादा महत्व देती है । सारी दुनिया झूठ बोल सकती है लेकिन सरकार मानती है कि आतंकवादी बोलेगा तो एकदम सच्ची और खरी बात बोलेगा । सिर धड की बाजी लगा कर आतंकवादियों से लोहा लेने वाला शिव कुमार झूठ बोल सकता है , लेकिन पाकिस्तान के इशारे पर भारत के खिलाफ युद्ध छेडने वाला आतंकवादी जो कह्गा , वह सरकार के लिये पत्थर पर लकीर है । आतंकवादियों के चार पंक्तियों के बयान पर राज्य सरकार एक दम सक्रिय हो गई । जम्मू कश्मीर के गृह राज्य मंत्री सज्जाद अहमद किचलू तो सभी काम बीच में ही छोड कर शिव कुमार की गिरफ्तारी की मोनीटिरिंग करने लगे । पुलिस बल में पाकिस्तानी समर्थक तत्व पहले ही शिव कुमार से खार खाए बैठे थे । आतंकवादियों के बयान की स्याही भी नहीं सूखी थी कि शिव कुमार शर्मा को गिरफ्तार कर लिया गया। भाजपा ने तो सार्वजनिक रुप ये आरोप लगाया है कि यह सारा षड्यंत्र सज्जाद अहमद किचलू का ही है । भीतरी सूत्र यह भी बताते हैं कि शिव कुमार पाकिस्तान में रह रहे उन आतंकवादियों को मारने की योजना बना रहा था जिन्होंने भारतीय सैनिक हेमराज का धड़ काटा था । वह इस अमानुषिक कृत्य के लिये ज़िम्मेदार आतंकवादियों को किसी ढंग से डोडा लाना चाहता था , ताकि उन्हें मार गिराया जा सके , लेकिन उनको पहले ही इसकी भनक लग गई और उन्होंने शर्मा को ही घेरने का जाल बिछा दिया । शिव शर्मा अपने समर्थकों की सहायता से उन दुर्दान्त आतंकियों को मारना चाहते थे लेकिन आतंकियों ने अपने ‘भीतरी’सहायकों की सहायता से उन्हें ही जेल पहुँचा दिया । आश्चर्य नहीं होना चाहिये यदि पुलिस किसी दिन शर्मा को भागने का प्रयास करते हुये बता कर मार डाले ।
जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों से व्यवहार की राज्य की नीति के अनेक रूप हैं और आतंकवादी भी अनेक रूपों में विचरते हैं। सक्रिय आतंकवादी, निष्क्रिय आतंकवादी, समर्पण किए हुए आतंकवादी, समर्पण के लिए तैयार बैठे आतंकवादी, पाकिस्तान में प्रशिक्षण के लिए गए हुए आतंकवादी, प्रशिक्षण प्राप्त कर के लौट आए आतंकवादी , सरकार से बातचीत करते आतंकवादी ,सरकार को धमकाते आतंकवादी , चुनाव में सरकार की मदद करते आतंकवादी और मदद के एवज में ईनाम पाते आतंकवादी। सरकार के पास इन बीसियों प्रकार के आतंकवादियों को नौकरी देने , वजीफा देने , अपना व्यवसाय चलाने के लिए धन देने, जब तक अल्पकाल के लिए आतंकवाद छोड़ा हुआ है तब तक उनके सम्मानजनक जीवन यापन की व्यवस्था करने के अनेक प्रकल्प हैं। सरकार की नीति में आतंकवादियों को सजा देने के लिए कोई स्थान नहीं है। क्योंकि सरकार की दृष्टि में आतंकवादी अपने ही भाई हैं जो कुछ कारणों से थोड़ा भटक गए है। इस लिए भटके आतंकवादी को पूर्व स्थिति में लाने की जरुरत है , उसको सजा देने की नहीं। सरकार के पास इस बात का कोई उत्तर नहीं है कि भटका हुआ आतंकवादी जब बीस पचास लोगों की हत्या करता है, लूट पाट करता है, लड़कियों का अपहरण करता है और उनसे बलात्कार करता है तो उसे अपराध क्यों न माना जाए? आतंकवाद से लड़ने का सरकार का यह अपना नायाब तरीका है। सरकार को कोफ्त तब होती है जब ऐसे भटके हुए आतंकवादी को सेना बल, अर्ध सेना बल या फिर राज्य पुलिस का ही कोई शिव कुमार शर्मा जैसा सिपाही मार देता है। ऐसी स्थिति में सरकार अपने सभी काम छोड़कर ऐसे सैनिकों और शिव कुमार शर्मा जैसे सिपाहियों को घेरने में जुट जाती है। दूर खड़े आतंकवादी ऐसे मौके पर सैनिकों पर हंसते हैं या फिर शिव कुमार शर्मा जैसे सिपाहियों को मुंह चिढाते हैं । जिस सरकार की रक्षा के लिए शिव कुमार शर्मा जैसे पुलिस अधिकारी जान हथेली पर लेकर लड़ते हैं वही सरकार जब निर्णय की घडी आती है तो आतंकवादी के साथ खड़ी होती है किसी सैनिक या शिव कुमार शर्मा के साथ नहीं। उमर अब्दुल्ला को पाकिस्तान की भी चिन्ता है , अफ़ज़ल गुरु के कारण भी उनके आँसू नहीं सूखते , पाकिस्तान चले गये आतंकवादियों को सही सलामत वापिस लाकर उन्हें घाटी में बसाने की भी चिन्ता है , लेकिन शिव कुमार की चिन्ता नहीं है , क्योंकि जिन आतंकवादियों को उमर घाटी में बसाना चाहते हैं , शिव कुमार उन्हीं को मार रहा है । शिव कुमार साधारण सिपाही होकर भी ,जान की परवाह किये बिना अपने कर्तव्य का पालन कर रहा है , लेकिन उमर मुख्यमंत्री होकर भी अपने कर्तव्य से भाग रहे हैं ।
आतंकवादियों का उद्देश्य और रणनीति दोनों ही स्पष्ट है । वे शिव कुमार शर्माओं को और सैनिकों को मारने के लिए ए.के.47 का भी इस्तेमाल भी करते है और रणनीति के तहत ऐसे बयानों का इस्तेमाल भी हथियार के तौर पर करते है जिससे बिना गोली चलाए ही कोई शिव कुमार शर्मा मारा जाए। राज्य के गृह मंत्री शिव कुमार शर्मा को जेल में डालने का जश्न मना रहे है। लेकिन क्या कोई इस बात की जांच करेगा कि गृह मंत्री आतंकवादियों के पाले में खड़े क्यों दिखाए दे रहे है? क्या उमर अब्दुल्ला शिव शर्मा को गिरफ़्तार कर आतंकवादियों को राहत पहुँचाने के इस षड्यंत्र की जाँच करवायेंगे या फिर मुख्यमंत्रियों की बैठक में दिल्ली पुलिस द्वारा पकडे गये आतंकवादी लियाक़त शाह की गिरफ़्तारी का विरोध करने को ही ‘आतंकवाद के खिलाफ’ लड़ाई बता कर अपनी पीठ थपथपाते रहेंगे ।