गौरक्षकों के बारे में मोदी ने अपना मौन तोड़ा। कुछ मुद्दों पर उन्होंने जो मनमोहन-खोल ओढ़ रखी थी, उसे ‘टॉउन हॉल’ में उतार दिया। लेकिन उसमें से जो सज्जन बाहर निकले, वे तो कोई और ही हैं। उन्हें नरेंद्र मोदी कौन मान लेगा? मोदी को तो अपनी दो-टूक राय जाहिर करने के लिए जाना जाता है लेकिन ‘टॉउन हॉल’ में उन्होंने अधूरी चालाकी दिखा दी। असली मुद्दे को वे गोलकर गए।
असली मुद्दा था, गोरक्षा का! गोरक्षा के बहाने मानव-रक्षा की बलि चढ़ाने का! इस मुद्दे को लेकर गुजरात के दलित और उप्र के मुसलमान भड़के हुए हैं। देश के दो बड़े वोट-बैंकों में सेंध लग गई है। क्या मोदी के बयान से कुछ मरहम लगा है? मोदी ने वह मौका खो दिया, जो किसी भी प्रधानमंत्री को पूरे देश का प्रधानमंत्री बनाता है, न कि सिर्फ उन 30 प्रतिशत मतदाताओं का, जो 2014 की लहर में बहकर मोदी-किनारे आ लगे थे। जब बदनामी का सांप फुंफकार रहा था तो मोदी ने डंडा नहीं चलाया। मनमोहन-मुद्रा धारण कर ली। अब सांप के भाग जाने के बाद उन्हें डंडे की याद आई। लेकिन उसे चलाने की बजाय वे रुई के गोले छोड़ रहे हैं।
एक गोला उन्होंने यह छोड़ा कि गोरक्षा के नाम पर 80 प्रतिशत लोग अपना धंधा चला रहे हैं। इन पर उन्हें गुस्सा है। लेकिन सच्चाई यह है कि सरकार तो शेष 20 प्रतिशत लोगों की कारस्तानियों के कारण बदनाम हो रही है। वे धंधा चला रहे हैं या नहीं, वे सरकार चला रहे हैं, संसद चला रहे हैं, भाजपा चला रहे हैं। मोदी से देश उनके बारे में सुनना चाहता था लेकिन मोदी ने ठीक ही कहा कि हर बात पर मोदी क्यों बोलें? अगर बोलें तो 24 घंटे बस वे बोलते ही रह जाएंगे।
मोदी ने यह ठीक कहा कि प्लास्टिक की थैलियां और कचरा निगलने से गायों की मौतें ज्यादा हो रही हैं। वे यह कहना भूल गए कि जिन्हें हम ‘माताजी’ कहते हैं, वे कूड़ेदानों और सड़कों पर पड़ी गंदगी में मुंह मारती रहती है। हम कैसे गोरक्षक हैं? हमें शर्म भी नहीं आती? नरेंद्र भाई को चाहिए कि वे अमित भाई से पूछें कि इस भाई-भाई पार्टी के 13 करोड़ सदस्य क्या करते रहते हैं? दोनों भाई मिलकर सारे देश को न सही, इन 13 करोड़ देशभक्तों को ही गौसेवा के काम में जुटा दें तो देखें भारत की गायों को सचमुच गोमाता का दर्जा कैसे नहीं मिलता है?