समय, स्थिति, परिस्थिति के अनुसार ही नीति का निर्धारण होता है, नीति होती ही है काम चलाऊ, जबकि सिद्धांत अटल होता है। अब भारत ने भी एक लम्बे समय के पश्चात् अपनी कूटनीति में बदलाव करते हुए पाक अधिकृत कश्मीर को खाली करने का पत्र पाकिस्तान को भेज दिया है जो देर आए दुरूस्त आए ही कहा जायेगा। यूं तो शहरों में अवैध कब्जों को हटाने का कार्य स्थानीय नगरीय निकाय करते है लेकिन पाक अधिकृत कश्मीर पर पाक का अवैध कब्जा अभी तक की सरकारों को क्यों नहीं दिखा? जो एक सीधी एवं सपाट सी बात थी। अब जब कि मोदी की तारीफ बलुचिस्तान के लोग भी कर रहे है। ऐसे में भारतीय राजनीतिज्ञों को समझाना चाहिए कि राजनीति से ऊपर उठ भारत की राय/मुद्दे पर सभी को एक ही रहना चाहिए।
चूंकि यह देश के मान एवं प्रतिष्ठा का प्रश्न जो जुड़ा है। अब बहुत मान, मनुव्वल, समझाइश का दौर खत्म ‘‘संठ संग विनय कुटिल संग प्रीत’’ नही हो सकती। बहुत हुआ निरीह जनता एवं सैनिकों की बलि का सिलसिला उधर बलुचिस्तान के नेताओं का भारत के प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करना पाकिस्तानियों को फूटी आंख नहीं सुहाया। उलट, बौखलाहट में पाकिस्तानी उच्चायुक्त अब्दुलवासित अपनी आजादी कश्मीरियों को समर्पित करते हुए केवल अपनी खीज ही मिटाते नजर आए। पाकिस्तान पर अपना देश तो संभल नहीं रहा है। धर्म के नाम पर आतंक को पनपा, जगह-जगह मजमा लगा रहा है वही बलुचिस्तानी अपनी मुक्ति की गुहार भारत से लगा रहा है। पाक का फायटर प्लेन द्वार बलुचिस्तानियों पर बम्बारी द्वारा निरीह जनता को मारना। इसी तरह 2006 में पाक द्वारा बलुचिस्तान पर हुई बमबारी में बलूच नेता अकबर शाहबाज खान बुग्ती की हत्या करना। बलूच नेशनल मूवमेंट के बलूच भी अब यही कह रहे है कि अब विश्व को भी समझना चाहिए कि पाक द्वारा धार्मिक आतंकवाद की नीति को औजार के रूप में उपयोग करने के दुष्परिणाम होंगे।
इसीलिए यहां के बलूची नेता, भारत, अमेरिका एवं अन्य देशों से मदद की अपील कर रहे है। हाल ही में बलूच की छात्र नेता करीमा बलूच ने भी मोदी से पाक के जुल्मों से बचाने एवं बलुचिस्तान की बहिनों की मदद की गुहार मोदी को भेजे एक वीडियों के माध्यम से की है। यहां प्रश्न उठता है कि अब कहाँ गया अन्तर्राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग? यहाँ एक यक्ष प्रश्न यह भी उठता है कि बलुचिस्तान का कभी विलय पाकिस्तान में हुआ? हकीकत तो यह है कि 14 अगस्त 1947 से ही बलुचिस्तान अपने को पृथक बतता रहा है। बहरहाल जो भी सच्चाई हो विश्व बिरादरी के सामने आना ही चाहिए। इतना ही नहीं बलुचिस्तान अपने ऊपर पाक का जबरिया कब्जे को ले पांच बार 1948, 58, 63, 73 एवं 2004 में जोरदार विद्रोह कर चुका हैं। इतिहास के अनुसार 1947 तक गिलगिट बाल्टिस्तान पूर्व में जम्मू एवं काश्मीर रियासत का हिस्सा रही जबकि पाक का कहना है 1846 में इस क्षेत्र को जम्मू एवं काश्मीर में शामिल कर लिया था।
सन् 1935 में ब्रिटिश शासकों ने 60 साल के लिए एक डीड के अनुसार अपने कब्जे में ले लिया था जिससे वहाँ स्थापित डोगरा राजतंत्र खत्म हो गया। जम्मू काश्मीर के अंतिम राजा हरिसिंह का भी इस क्षेत्र पर अधिकार नहीं था। भारत-पाक विभाजन के समय भी गिलगिट-वाल्टिस्तान न ही भारत और न ही नव निर्मित पाकिस्तान का हिस्सा था। यहाँ यक्ष प्रश्न उठता है फिर कैसे पाक इस पर अपना प्रभुत्व जमा सकता है? भारत-पाक विभाजन के पूर्व अर्थात् 01 अगस्त 1947 को ही डोगरा शासकों ने अंग्रेजों के साथ हुई डीड (1935) को रद्द कर पुनः अपने कब्जे में ले लिया। तत्कालीन कमांडर कर्नल मिर्जा हसन ने 2 नवंबर 1947 को गिलगिट बाल्टिस्तान की आजादी का ऐलान कर अपना झण्डा फहरा दिया। ऐसा माना जाता है पूर्व में रियासत जम्मू-कश्मीर में ही आती थी। इस क्षेत्र के कुछ लोग 14 अगस्त तो 2 नवंबर को आजादी को याद करते हैं लेकिन मिर्जा हसन के विद्रोह के कारण इसने अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाया। पाक ने 21 दिन बाद ही सैन्य बल के आधार पर इसे अपने कब्जे में ले लिया। इस कब्जाएं गिलगिट – वाल्टिस्तान के सुदूर क्षेत्र उत्तर में कारकोरम राजमार्ग बनाने के लिए इसे पाक ने चीन को उपहार स्वरूप दे दिया। इस तरह चीन की भी इस क्षेत्र में एन्ट्री हो गई वहीं भारत के उत्तर पूर्व क्षेत्र में चीन ने अकसाई चिन पर सन् 1962 से भारत चीन युद्व से भारत की जमीन पर कब्जा कर रखा हैं। यहाँ अब फिर यक्ष प्रश्न खड़ा होता है भारत पहले पाक अधिकृत कश्मीर फिर चीन अधिकृत अकसाई को छुड़ाए और उससे से बड़ी बात जम्मू काश्मीर में 370 धारा को पहले खत्म करें।