काले धन के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक से तमाम सवालों का जवाब एक झटके में दे दिया गया। हजार-पांच सौ के नोटों का चलन बंद करने से आतंकवाद, नक्सली हमले, भ्रष्टाचार और समाज में बढ़ती आर्थिक विषमता को रोकने में बड़ा मदद मिली हैं। आतंकवादियों की फंडिग बंद होने से कश्मीर घाटी में सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंकने वाले थम गए। नक्सलियों की गतिविधियां पर रोक लग रही है। भ्रष्टाचार करने वाले तो एकदम खौफ में हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि काले धन पर लगी रोक ने समाज में बढ़ती जा रही अमीर और गरीब की खाई को पाटने का काम किया है। अच्छी शिक्षा और अच्छे इलाज के लिए मोहताज गरीबों को अब अच्छे तरीके से जीने का मौका मिलेगा।
हजार-पांच सौ के नोट बंद होने से राजनीति स्वच्छ होगी। यह तो सभी जानते हैं कि चुनाव में काले धन का जमकर इस्तेमाल होता है। जिसके पास पैसा होता है, वही समाज के अगुआ बनते हैं। दक्षिण भारत और उत्तर पूर्व के कुछ राज्यों में लोकसभा और विधानसभा चुनाव में करोड़ो रुपये खर्च किए जाते हैं। उत्तर पूर्व के कुछ इलाकों में विधानसभा चुनावों में उम्मीदवार 10 से 15 करोड़ रुपए खर्च कर देते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो बहुत पहले से चुनावों में सुधार लाने की पहल शुरु की थी। कई मौकों पर उन्होंने चुनाव सुधार की बात की है। लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने पर भी उन्होंने जोर दिया। कोझिकोड में भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में उन्होंने कहा कि यह समय चुनावों में सुधार लाने का है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय के शताब्दी वर्ष में पूरे देश में चुनाव सुधारों पर संगोष्ठियों का आयोजन करने का सुझाव भी उन्होंने दिया। उनका कहना था मंथन से कौन सा अमृत बाहर आएगा, उसे देखेंगे। चुनाव सुधारों के लिए मोदी जी ने गहन विचार-विमर्श करने का जो सुझाव रखा था, उस पर अब तेजी अमल करने का समय आ गया है। काले धन पर हुए हमले से राजनीति और चुनावी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता आएगी। चुनाव में भ्रष्ट तरीके से की गई काली कमाई पर रोक लगने से सचमुच राजनीति स्वच्छ होगी। पैसे के बल पर राजनीति करने वालों के लिए अब आने वाला समय चुनौतीपूर्ण होगा। लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए काले धन पर रोक लगाना एक महत्वपूर्ण और निर्णायक कदम हैं। बड़े नोट बंद होने से पैसे के लिए परेशान जनता भी काले धन पर रोक लगाने के फैसले खुश है। भाजपा कार्यालय में दिवाली के मौके पर आयोजित मिलन समारोह में भी प्रधानमंत्री ने चुनाव सुधार बात कही और इसके लिए मीडिया में बहस कराने की बात भी की। उनकी इस बात पर गौर करने की जरूरत है कि सरकार जबरदस्ती कोई फैसला नहीं कर सकती है। राजनीतिक दलों को चुनाव सुधार के बारे में सोचना चाहिए। प्रधानमंत्री की काले धन पर रोक लगाने के फैसले को लेकर कुछ राजनीतिक दल आम जनता की परेशानियों के नाम पर सड़क से लेकर संसद तक हंगामा कर रहे हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी ने तो सभी विपक्षी दलों से एकजुट होकर सरकार के खिलाफ अभियान चलाने का ऐलान किया था। यह अलग बात है कि ममता बनर्जी को कई दलों का साथ नहीं मिला। जनता दल यू के अध्यक्ष और बिहार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तथा ओडिसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने काले धन के खिलाफ अभियान का समर्थन किया है। यह तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि काले धन पर रोक लगाने का फैसला अगले साल की शुरुआत में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोआ और पंजाब विधानसभा के होने वाले चुनावों से कुछ समय पहले ही लागू किया गया। कुछ राजनीतिक दल हाय तौबा मचा रहे हैं कि भाजपा को चुनावों में नुकसान होगा। यह फैसला चुनावी लड़ाई में नफा-नुकसान को देखकर नहीं बल्कि राष्ट्र हित में किया गया है। हमारे लिए राष्ट्र हित दलीय हित से ऊपर है। हमारे लिए राष्ट्र सर्वोपरि है। यही कारण है कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी चुनावों में सुधार लाने का समर्थन किया है। राष्ट्रपति ने एक इंटरव्यू में कहा भी कि सभी दलों के नेता मानते हैं कि बार-बार होने वाले चुनावों से से देश को बाहर निकालने की जरूरत है। उन्होंने तो लोकसभा, विधानसभा के चुनाव के साथ ही स्थानीय निकायों के चुनाव कराने की बात कही है। निश्चित तौर पर राष्ट्रपति के समर्थन के बाद चुनाव सुधार की प्रक्रिया में तेजी आएगी। अब चुनाव सुधार के लिए चुनाव आयोग को तेजी दिखानी होगी।
यह तो तय है कि काले धन पर बंदिश से राजनीति तो स्वच्छ होगी ही, साथ ही समाज में बढ़ती आर्थिक विषमता भी कम होगी। अमीर-गरीब के बीच बढ़ता अंतर कम होगा। काले धन का अंतर इतना हो गया था कि एक आदमी दिवाली पर दस लाख खर्च कर रहा था और किसी के पास हजार रुपये भी नहीं थे। समाज में अंदर बढ़ती आर्थिक विषमता को रोकने के लिए यह बहुत ही बड़ा और मजबूत कदम है। अब गरीबों को अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में दाखिला कराने के लिए परेशान नहीं होना पड़ेगा। यह तो सभी जानते हैं कि अमीर अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में दाखिला कराने के लिए मोटी रकम देते हैं। यह भी सच्चाई है कि गरीबों को अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए अपना पेट काट कर फीस भरनी पड़ती है। पूरे साल की दस हजार फीस भरने के लिए भी गरीबों को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। बड़े अस्पतालों में इलाज कराने की बात तो दूर है, गरीबों के पास अपनों की लाश उठाने के लिए एम्बुलेंस के पैसे देने की ताकत भी नहीं होती है। आजकल हम लगातार देख रहे हैं कि गरीब कंधों पर अस्पताल से लाश उठाकर श्मशान तक लेकर जा रहे हैं। ऐसे कई मामले अभी हाल में मीडिया ने लोगों के सामने रखे हैं। शिक्षा क्षेत्र में बड़े-बड़े निजी विश्वविद्यालय, इंजीनीयरिंग कालेज, मेडिकल कालेज, प्रबंधन संस्थान और दूसरे शिक्षा संस्थान खुले हैं। ऐसे शिक्षा संस्थान मोटी-मोटी फीस होने के कारण खाली पड़े हैं। मोदी सरकार को गरीबों के बच्चे भी अच्छे स्कूलों में पढ़-लिख सके. इसके लिए कदम उठाने होंगे। सबसे पहले तो सरकारी शिक्षा संस्थानों में सुधार लाने की जरूरत है। सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने का अब समय आ गया है। सरकारी स्कूलों में गरीबों के बच्चों के लिए सुविधाएं देने की जरूरत हैं। इसी तरह गरीबों का सही तरीके से इलाज हो, इसके लिए सरकारी अस्पतालों में सुविधाएं बढ़ाने, डॉक्टरों और स्टाफ की कमी दूर करने की जरूरत है।
समाज में बेहिसाब दौलत के कारण मॉल संस्कृति का चलन तेजी बढ़ रहा है। विदेशी फुड चैन तेजी से बढ़ रहे हैं। मॉल और विदेशी फुड चैन के रेस्तराओं में गरीबो के जाने का सामर्थ्य ही नहीं है। कुछ ही लोगों के पास महंगे ब्रांडेड कपड़े पहनने की हैसियत है तो ज्यादातर गरीब चिथड़े लगे कपडों के लिए भी मोहताज हैं। काले धन के कारण आम आदमी के लिए मकान का सपना केवल सपना बनकर रह गया था। लाख रुपये कमाने वाले भी बैंकों को भारी कर्ज चुकाने में अपनी कमाई का बढ़ा हिस्सा खर्च करते हैं। काले धन पर रोक लगने से अमीर-गरीब की खाई पटने से समाज में सब बराबरी से रह सकते हैं। अब जिसकी जेब में पैसा, उसका ही राज चलेगा की नीति पर भी प्रहार हो गया है। रिश्वत पर रोक लगने से गरीबों की थानों में अब सुनवाई कराने के लिए नेताओं के चक्कर लगाने की जरूरत नहीं होगी। सरकारी अफसरों से सुनवाई के लिए भेंट नहीं चुकानी होगी। काले धन पर लगी रोक से भ्रष्टाचार तो समाप्त होगा ही समाज को भी अब सबकुछ चलता है की सोच से बाहर आने का अवसर मिल गया है।