पिछले 50 साल में लगभग सवा दो सौ भारतीय बोलियाँ समाप्त हो गई हैं। 1961 में भारत में 1100 भाषाएँ बोली जाती थीं। अब उनकी संख्या 800 रह गई हैं। हम इन्हें बोलियाँ कह देते हैं, क्योंकि इनकी कोई अपनी लिपि नहीं है। लेकिन बिना लिपि के तो कई भाषाएँ विश्व प्रसिद्ध हो गई हैं। कोई हमें बताए कि अंग्रेजी की अपनी लिपि कौनसी है? वह तो उधार की लिपि में लिखी जाती है। रोमन में। अंग्रेजी तो बस चार-पांच सौ साल पुरानी भाषा है जबकि रोमन लिपि कम से कम दो हजार साल पुरानी है।इसी तरह भारत की सबसे बड़ी भाषा हिंदी की कौनसी लिपि है? कोई नहीं। वह तो देवनागरी में लिखी जाती है। कभी वह मुंडी और शारदा में भी लिखी जाती थी। देवनागरी वह लिपि है, जो संस्कृत, हिंदी, मराठी, नेपाली, उर्दू आदि कई भाषाएँ के लिए स्वीकृति प्राप्त कर चुकी है। कहने का ताप्तर्य यह है कि जिन बोलियों के पास अपनी लिपि नहीं, वे भी भाषाएँ ही हैं।भाषा क्या है? जो भाष् करे याने बोले। उसका लिखा जाना जरूरी नहीं हैं। दुनिया का सबसे प्राचीन ज्ञान ‘वेद’ बोला हुआ ज्ञान है, सुना हुआ ज्ञान है। श्रुति है। पढ़ा हुआ ज्ञान वह बाद में बना। इसलिए बोलियां का नष्ट होना भाषाओं का नष्ट होना है। ये भाषाएँ किनकी नष्ट हुई हैं? ज्यादातर मछुआरों की, वनवासियों की, यायावरों, नटों की, कबायली लोगों की। ये भाषाएँ चाहें सिर्फ दस बीस हजारों लोगों के बीच बोली जाती हों लेकिन इनका इतिहास सैकड़ों साल पुराना है और इनका अपना संसार होता है। पिछले 50 साल में सिद्दी, कोली, कैकाड़ी, बेलदारी, हक्की पिक्की, बहुरूपी आदि कई भाषाएँ बिल्कुल गायब हो गई हैं।
इन भाषाओं के नष्ट होने से मुझे तीन बड़े नुकसान साफ-साफ दिखाई पड़ते हैं। पहला, हर भाषा का एक अपना आत्मीय संसार होता है। भाषा के नष्ट होने से वह भाव संसार नष्ट हो जाता है। जैसे हमारी भाषाओं में पारिवारिक संबंध बहुत विस्तारपूर्वक परिभाषित रहते हैं, जैसे मामा, चाचा, साला, जीजा, सलहज लेकिन सबका संबंध अंकल और ब्रदर-इन लॉ के जैसे डंडे से हांक दिए जाते हैं। दूसरा, प्रकृति के साथ मनुष्य के संबंधों में जो सूक्ष्मता भाषा लाती है। वह सूक्ष्मता भाषा के साथ ही गायब हो जाती है। जैसे बर्फ के अलग-अलग तेवरों के लिए एस्किमो की भाषा में 42 पर्यावाची शब्द हैं। आप एस्किमों-भाषा खत्म कीजिए और बर्फ के सारे रूप खत्म हो जाएंगे। अंग्रेजी भाषा के सिर्फ तीन-चार रूप रह जाएंगे। तीसरा, मानव-मष्तिष्क में भाषओं के सूक्ष्य रूप ही मूल तकनीकों को आगे बढ़ाते हैं। शब्दों से ठोस अवधारणाएँ जन्म लेती हैं। शब्द नष्ट होने से कल्पनाशक्ति का भी हास हो जाता है। जैसे शून्य का अर्थ अंग्रेजी में सिर्फ 0 ‘जीरो’ है लेकिन संस्कृत और हिंदी में वह शून्य, पूर्ण और ‘ख’ (आकाश) भी है।
बोलियों को बचाया जाना बहुत आवश्यक है।