किसी भी स्वतंत्र एवं संप्रभुता प्राप्त राष्ट्र का राष्ट्रीय ध्वज किसी भी देश में $फहराना निश्चित रूप से कोई आपत्तिजनक विषय नहीं है। दुनिया के लगभग सभी देशों में मौजूद प्रत्येक देश के दूतावासों अथवा उच्चायुक्त के कार्यालयों अथवा वाणिज्यिक भवनों में उनके अपने देश के झंडे फहराए जाते हैं। वैसे भी दुनिया के किसी भी देश में जब कभी कोई अंतर्राष्ट्रीय स्तर की वार्ताएं होती हैं तो वार्ता स्थल पर भी उपस्थित देशों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में उनके देशों के झंडे लहराते रहते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ से लेकर विश्व स्वास्थय संगठन तक दुनिया के अनेक ऐसे अंतर्राष्ट्रीय कार्यालय हैं जहां अनेक देशों के राष्ट्रीय ध्वज लहराते हुए देखे जा सकते हैं। परंतु जिस प्रकार कश्मीर में अलगाववादियों द्वारा खासतौर पर कश्मीर में सक्रिय अलगाववादी संगठन हुर्रियत कांफ्रेंस के कुछ समर्थक घटकों के समर्थकों द्वारा कश्मीर घाटी में प्राय: पाकिस्तानी झंडे अपने विरोध प्रदर्शनों के दौरान भारतीय सेना तथा मीडिया के समक्ष प्रदर्शित करने की घटनाएं होती रहती हैं यह प्रवृति निश्चित रूप से चिंतनीय तथा आपत्तिजनक है।
और तो और जब इसी कश्मीर घाटी में इन्हीं पाकिस्तानी झंडों के साथ सीरिया व इराक में सक्रिय विश्व के सबसे खुंखार आतंकी संगठन आईएसआईएस के झंडे भी अलगावादी प्रदर्शनकारियों के हाथों में बुलंद होते हुए देखे जाते हैं तो भारत सरकार तथा देश के नागरिकों की चिंता और अधिक बढ़ जाती है। क्योंकि आईएसआईएस के काले झंडे पर मानवता के दुश्मन आईएस आतंकियों द्वारा भले ही इस्लाम का कलमा अर्थात् ला इलाह इल्लाह मोहम्मदन रसूल अल्लाह क्यों न लिखा गया हो परंतु दरअसल न तो यह कोई इस्लामी झंडा है न ही यह किसी राष्ट्र का ध्वज है और न ही यह संयुक्त राष्ट्र संघ से मान्यता प्राप्त किसी देश का झंडा। इस झंडे की पहचान तो दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकी संगठन के झंडे के रूप में बन चुकी है। लिहाज़ा कश्मीर में या भारत के किसी भी कोने में इस झंडे का बुलंद होना निश्चित रूप से पूरे देश के लिए चिंता की बात है।
सवाल यह है कि भारतीय कश्मीर में सक्रिय अलगाववादी ताकतें आखिर कश्मीर में इन झंडों को समय-समय पर क्यों बुलंद करती हैं। इन अलगाववादियों को पाकिस्तान या आईएस अपने हमदर्द क्यों नज़र आते हैं। पाकिस्तान के अपने भीतरी हालात क्या यह सोचने के लिए का$फी नहीं कि जो देश अपने नागरिकों,अपने नेताओं, अपने शासकों,अपने सैन्य अधिकारियों व उनके परिजनों व बच्चों तथा अपने गर्वनर जैसे लोगों की रक्षा कर पाने में असमर्थ हो जिस देश में यही बात स्पष्ट न हो कि वहां की सत्ता शक्ति आखिर किन हाथों में है? मंहगाई,बिजली-पानी,रोज़गार जैसी ज़रूरी बातें तो दरकिनार जिस पाकिस्तान के समक्ष इससमय उसके अपने अस्तित्व का प्रश्र ही सबसे बड़ा प्रश्र हो उस देश से किसी प्रकार के समर्थन अथवा सहयोग की उम्मीद रखना कश्मीर स्थित अलगाववादियों के लिए कितना मुनासिब है?
जहां तक आईएस के झंडों को दिखाने या कश्मीर घाटी में उन्हें फहराने का प्रश्र है तो इस कृत्य को तो एक आतंक व दहशत फैलाने की कोशिशों के प्रतीक के सिवा और कुछ नहीं कहा जा सकता। इन्हें तो पहले फिलिस्तीन मुसलमानों की फिक्र करते हुए इज़राईल में अपनी उपस्थिति दर्ज करनी चाहिए न कि कश्मीर में। फिर भी अलगाववादियों के हाथों में प्राय: शुक्रवार की नमाज़ के बाद जब घाटी में अलगाववादी ताकतें सुनियोजि ढंग से मस्जिदों में बड़ी संख्या में इक होती हैं उसके बाद नमाज़ के पश्चात पाकिस्तानी झंडों के साथ अपना मुंह छिपाए हुए नकाबपोश नवयुवकों द्वारा प्रदर्शन के दौरान यह पाकिस्तानी झंडे दिखाए जाते हैं।
दरअसल पाकिस्तान में सक्रिय जेहादी शक्तियां जिनमें जमात-उद-दावा व लश्कर जैसे संगठन शामिल हैं इनसे जुड़े नेता व आतंकी सरगऩा पाकिस्तान में कुछ ऐसे वीडियो दिखाते रहते हैं जिनके द्वारा वे यह सिद्ध करने की कोशिश करते हें कि भारत में सेना द्वारा कश्मीरी मुसलमानों पर ज़ुल्म ढाए जा रहे हैं। ऐसे वीडियो दिखाकर वे कश्मीरी मुसलमानों के संघर्ष में उनका साथ देने की बात कहते हैं। और अलगाववादी कश्मीरियों तथा भारत सरकार के मध्य लंबे समय से चल रहे कश्मीर संबंधी राजनैतिक विवाद को जेहाद के रूप में दुष्प्रचारित करने का प्रयास करते हैं। इतना ही नहीं समय-समय पर सीमा पार के यही आतंकी संगठन भारत में अपने प्रशिक्षित आतंकवादियों को भेजकर बड़ी से बड़ी आतंकी घटनाओं को भी अंजाम देते रहते हैं।
कहना गलत नहीं होगा कि कश्मीर में मौजूद अलगाववादी संगठन कश्मीर की आज़ादी के लिए उतने गंभीर नहीं दिखाई देते जितने कि पाकिस्तान में बैठकर घडिय़ाली आंसू बहाने वाले आतंकी संगठन और हािफज़ सईद तथा अज़हर मसूद जैसे उसके नेता कश्मीर की आज़ादी के लिए नज़र आते हैं। पाकिस्तान में तथा पाक अधिकृत कश्मीर में इन आतंकी सरगऩाओं द्वारा दिए जाने वाले भाषणों में पाकिस्तान की अवाम की दुर्दशा का जि़क्र बिल्कुल नहीं होता। बजाए इसके यह लोग केवल भारतीय कश्मीरी मुसलमानों के अधिकारों का ढोंग रचते तथा भारतीय सेना व भारत सरकार को कोसते हुए दिखाई देते हैं। उनकी तकऱीरों में साफ सुना जा सकता है कि वे कश्मीरी मुसलमानों को किस प्रकार सशस्त्र संघर्ष के लिए उकसाते हैं तथा हर प्रकार से उनका साथ देने का वादा करते हैं।
जहां तक कश्मीर में भारतीय सेना द्वारा कश्मीरियों पर ज़ुल्म ढाए जाने का प्रश्र है तो सेना के विरुद्ध इस प्रकार की शिकायतें केवल कश्मीर से ही नहीं बल्कि पूर्वोत्तर के उन राज्यों से भी आती रहती हैं जहां सेना अलगाववादी आतंकियों का सामना करने के लिए तैनात की गई है। दूसरी बात यह कि कश्मीर हो अथवा पूर्वोत्तर के वह राज्य जहां सेना तैनात है, वहां के स्थानीय लोगों पर ज़ुल्म ढाना स्थानीय लोगों की हत्याएं करना अथवा किसी महिला के साथ बलात्कार या छेड़छाड़ जैसी घटना भारतीय सेना के किसी एजेंडे का हिस्सा नहीं है। बल्कि ठीक उसी तरह जैसकि दूसरे सरकारी विभागों में भी अनेक अमानवीय सोच रखने वाले,भ्रष्ट या क्रूर मानसिकता रखने वाले लोगों को प्रत्येक देश में देखा जा सकता है वैसे ही भारतीय सेना भी इसका अपवाद नहीं है। इसमें कुछ न कुछ सैनिक कभी-कभी ऐसी गैर जि़म्मेदाराना हरकतें कर बैठते हैं जिससे भारतीय सेना की छवि धूमिल होती है।
और ऐसी किसी भी अप्रिय घटना की सेना द्वारा अथवा अन्य संबंधित विभाग द्वारा बाकायदा जांच-पड़ताल कराई जाती है और दोषी पाए जाने पर उनके विरुद्ध कार्रवाई भी की जाती है। जबकि सेना पर कश्मीर के अवाम पर ज़ुल्म ढाने के लगने वाले आरोपों के विपरीत वहां मौजूद सेना कश्मीर में आने वाली बाढ़ या भूकंप जैसी प्राकृतिक विपदा के समय किस प्रकार इसी कश्मीरी अवाम की सहायता करती है यह बात कश्मीर के लोग भलीभांति जानते हैं। विपदा की इस घड़ी में न तो हािफज़ सईद कश्मीरियों की मदद के लिए खड़े दिखाई देते हैं न ही मसूद अज़हर और न ही उनका जेहादी एजेंडा कहीं दिखाई पड़ता है।
लिहाज़ा कश्मीरी अवाम को खासतौर पर अलगाववादी विचारधारा रखने वाले पाक परस्त लोगों को यह बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि उनके हमदर्द के रूप में नज़र आने वाले पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन अथवा पाक सरकार या पाक सेना कोई भी कश्मीरी अवाम का हमदर्द कतई नहीं है। पाकिस्तान में बैठे वह लोग जो कश्मीरी मुसलमानों के लिए घडिय़ाली आंसू बहाते नज़र आते हैं उनका एकमात्र मकसद इस्लाम,मुसलमान तथा जेहाद के नाम पर कश्मीर के लोगों को वरगलाना है और भारत से १९६५ व १९७१ की अपनी हार का बदला लेना मात्र है। कश्मीर के लोगों को यह बात भी बखूबी समझ लेनी चाहिए कि वहां सक्रिय अलगाववादी शक्तियां जिसमें खासतौर पर हुर्रियत से संबद्धअलगाववादी संगठन शामिल हैं, यह अपने निजी स्वार्थ के लिए अपने पाकिस्तानी आकाओं के इशारे पर कश्मीरी अवाम को धर्म के नाम पर भारत व भारतीय सेना के विरुद्ध उकसाते रहते हैं।
यदि कश्मीरी अवाम कश्मीर में शांतिपूर्ण वातावरण कायम रखना चाहती है तथा ज़मीन पर जन्नत जैसा स्वरूप समझी जाने वाली इस प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर धरती को जन्नत बनाए रखना चाहते हैं तो उन्हें ऐसे आतंकी संगठनों तथा अलगाववादी नेताओं का बहिष्कार करना चाहिए जो कश्मीरी अवाम को यह समझाने की कोशिश करते हैं कि पाकिस्तान उनका हमदर्द देश है। बजाए इसके कश्मीरी मुसलमानों को चाहिए कि वे इन्हीं आतंकियों व अलगाववादियों द्वारा विस्थापित किए गए कश्मीरी अल्पसंख्यकों को घाटी में वापस बुलाने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाएं तथा कश्मीरी विस्थापितों के दिलों में बैठे भय व आतंक को समाप्त करने व उनमें विश्वास पैदा करने की कोशिश करें। ऐसे हालात पैदा होने पर पाकिस्तान तथा पाक परस्त अलगाववादी नेताओं को तो मुंहतोड़ जवाब मिलेगा ही साथ-साथ कश्मीर में सेना की मौजूदगी भी धीरे-धीरे स्वंय कम होती जाएगी।