दिल्ली के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार का नाम देश के अब तक के छात्र राजनीति के इतिहास का अकेला ऐसा नाम है जिसने कुछ ही समय में स्वयं को प्रसिद्धि के उस शिखर पर ला खड़ा किया है जहां देश का कोई दूसरा छात्र नेता अब तक नहीं पहुंच सका। इस प्रसिद्धि का कारण जहां जेएनयू में 9 फरवरी को विश्वविद्यालय कैंपस में डीएसयू नामक पूर्व छात्र संगठन द्वारा आयोजित वह कार्यक्रम रहा जिसमें कथित रूप से अफज़ल गुरु तथा मकबूल भट्ट जैसे आतंकवादियों के समर्थन में तथा भारत के विरोध में नारे लगाए गए वहीं कन्हैया कुमार को मिल रही अपार प्रसिद्धि का दूसरा कारण यह भी रहा कि कन्हैया को इसी घटना के सिलसिले में राष्ट्रदोह के आरोप में दिल्ली पुलिस द्वारा गिर$ तार तो किया गया परंतु पुलिस कन्हैया के विरुद्ध अदालत में राष्ट्रद्रोह संबंधित कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सकी। इसके पश्चात जेल से छूटने के बाद इस छात्र नेता ने जेल से वापस जेएनयू कैंपस पहुंचने पर जो ऐतिहासिक भाषण दिया तथा उस भाषण को जिस प्रकार देश के अधिकांश समाचार चैनल्स द्वारा ओ बी वैन के माध्यम से सीधा प्रसारित किया गया उस प्रसारण के बाद उसके भाषण में उठाए गए सवालों ने देश के सत्ता प्रतिष्ठान को हिलाकर रख दिया। कन्हैया ने अपने लगभग एक घंटे के इस लंबे भाषण में न केवल स्वयं को राष्ट्रभक्त,भारतीय संविधान के प्रति निष्ठावान तथा राष्ट्रहितैषी बताने की कोशिश की बल्कि उन्होंने देश के आम लोगों के जीवन से जुड़े उन सवालों को भी रेखांकित किया जिनकी स्वतंत्रता से लेकर अब तक अनदेखी होती आ रही है। परिणामस्वरूप देश में दिनोंदिन पूंजीवादी व्यवस्था का बोलबाला होता जा रहा है और एक साधारण व्यक्ति केवल रोटी,कपड़ा और मकान जैसे जीवन के सबसे ज़रूरी सवालों में ही उलझ कर रह गया है।
हालांकि सत्ता के सिंहासन पर बैठे वह लोग जिन्हें कन्हैया कुमार अपने लिए सबसे बड़ा खतरा नज़र आने लगा है उन्होंने तो उसे 9 फरवरी की कैंपस की कथित राष्ट्रविरोधी घटना का जि़ मेदार बताते हुए उस पर तरह-तरह की तोहमत लगानी शुरु कर दी थी। यहां तक कि भारतीय जनता पार्टी के एक विधायक तथा भाजपा से संबंधित कुछ वकीलों द्वारा कन्हैया की अदालत में पिटाई कर यह साबित करने की कोशिश की गई कि कन्हैया देशद्रोही है तथा उसे पीटने वाले लोग राष्ट्र के बहुत बड़े हितैषी हैं। अभी यह घटनाक्रम चल ही रहा था कि इसी बीच कन्हैया कुमार ने भारतीय सेना पर बलात्कार का आरोप लगाकर गोया अपने सिर और मुसीबत मोल ले ली। हालांकि कन्हैया कुमार के अपने परिवार के सदस्य भी सेना में सेवाएं दे चुके हैं परंतु कन्हैया के विरोध को और अधिक तेज़ धार देने के लिए उसके विरोधियों को कन्हैया का भारतीय सेना संबंधी यह बयान एक सुनहरे अवसर के रूप में प्रतीत हुआ। फिर क्या था? कन्हैया का विरोध करने वाले यह भूल गए कि भारतीय सेना निश्चित रूप से अत्यंत चरित्रवान,अनुशासित तथा अपने कर्तव्यों का भलीभांति निर्वहन करने वाली सेना क्यों न हो परंतु इसमें भी कोई शक नहीं कि भारतीय सेना के कई जवानों पर पूर्वोत्तर से लेकर कश्मीर तक बलात्कार,छेड़छाड़ तथा हिंसा जैसे आरोप लगते रहे हैं। कई जवानों के विरुद्ध $कानूनी कार्रवाई भी हो चुकी है। पूर्वोत्तर में तो कुछ जवानों द्वार अंजाम दी गई बलात्कार की घटना के विरोध में वहां की महिलाओं द्वारा ऐसा नग्र प्रदर्शन सेना के स्थानीय मु यालय के समक्ष किया गया जैसा प्रदर्शन अब तक दुनिया के किसी देश में सुना व देखा नहीं गया।
परंतु इन सब वास्तविकताओं से आंख मूंदे हुए कन्हैया कुमार के विरोधियों तथा खासतौर पर उन शक्तियों ने जिन्हें कन्हैया कुमार ने सपनों में भी आकर डराना शुरु कर दिया है उसके बारे में अब यह प्रचारित करने की कोशिश, कि कन्हैया केवल राष्ट्रविरोधी मात्र नहीं है बल्कि वह भारतीय सेना का भी दुश्मन है जो सेना को व्यर्थ में बदनाम करता फिर रहा है। इसके पश्चात दिल्ली की अदालत में कन्हैया कुमार पर हुए हमले के साथ हिंसा का जो दौर उसके विरुद्ध शुरु हुआ था उसने और व्यापक रूप धारण कर लिया। उसके विरुद्ध देश के स्वयंभू रखवालों तथा स्वयं को राष्ट्रभक्त बताने की डुगडुगी पीटने वालों द्वारा हिंसा फैलाने वाले तहर-तरह के बयान दिए जाने लगे और उसपर हमला करने वालों को इनाम दिए जाने की घोषणा की जाने लगी। कुछ नेताओं व संगठनों ने तो मात्र अपनी प्रसिद्धि की $खातिर कन्हैया के हिंसक विरोध का बिगुल बजाने का ठेका ले लिया। उत्तर प्रदेश के बदायूं में भाजपा के युवा मोर्चा के अध्यक्ष द्वारा कन्हैया की जीभ काटने वाले पर पांच लाख रुपये का इनाम घोषित किया गया। इस की नाराज़गी का कारण यह था कि कन्हैया ने अपने भाषण में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तरह-तरह के आरोप क्यूं लगाए? इसी प्रकार के एक नाममात्र संगठन द्वारा दिल्ली में कुछ आपत्तिजनक पोस्टर लगाए गए। इस पोस्टर में कन्हैया कुमार को गोली मारने वाले को 11 लाख रुपये का पुरस्कार देने की घोषणा की गई। दिल्ली में इस आशय के लगभग पंद्रह सौ पोस्टर जगह-जगह चिपकाए गए। इनकी नाराज़गी का कारण भी यही था कि कन्हैया ने जेल से छूटने के बाद जेएनयू कैंपस में दिए गए अपने भाषण में मोदी व संघ पर तीखे हमले क्यों किए।
इसी प्रकार एक स्वयंभू नेता ने तो कन्हैया कुमार की हत्या किए जाने की बा$कायदा तिथि तक घोषित कर डाली। और अपने द्वारा निर्धारित तिथि आने तक वह व्यक्ति प्रेस नोट जारी कर इस दिशा में चल रही अपनी कार्रवाई को भी बताता रहा। यहां तक कि उसने निर्धारित की गई अपनी तिथि से एक दिन पहले यहां तक कहा कि उसके शार्प शूटर जेएनयू कैंपस में पहुंच चुके हैं और वे कल कन्हैया की हत्या कर देंगे। यह तो कुछ ऐसे उदाहरण हैं जो चंद अंजान स्वयंभू नेताओं द्वारा कन्हैया के विरोध के नाम पर सामने आए। पंरतु ऐसा भी नहीं है कि भाजपा से जुड़े वरिष्ठ नेताओं द्वारा इस विषय पर अपनी ज़बान बंद रखी गई हो। मिसाल के तौर पर भाजपा के सांसद तथा समाज को विभाजित करने वाले भडक़ाऊ तथा अपराधपूर्ण बयान देने में महारत रखने वाले योगी आदित्यनाथ ने भी कन्हैया के विरोध के रूप में बहती गंगा में हाथ धोते हुए कहा कि जेएनयू तो क्या देश के किसी भी विश्वविद्यालय में ‘जिन्ना को पैदा नहीं होने दिया जाएगा और जिन्ना को पैदा होने से पहले ही दफन कर देंगे’। इसी प्रकार पिछले दिनों कन्हैया द्वारा हैदराबाद जाने पर वहां उसका कड़ा विरोध किया गया। और अब एक ताज़ातरीन घटना में पिछले दिनों कन्हैया पर कुछ व्यक्तियों द्वारा जेट एयरवेज़ की एक उड़ान में उस समय हमला किया गया और उसका गला दबाकर उसे जान से मारने की कोशिश की गई जबकि वह मुंबई से पूना जाने के लिए विमान में बैठा था। कन्हैया के अनुसार यह हमलावर भी भाजपा समर्थक थे।
उपरोक्त घटनाएं निश्चित रूप से यह सोचने के लिए मजबूर करती हैं कि क्या भारत वर्ष में जन्मा एक $गरीब किसान का बेटा जो सार्वजनिक रूप से भारतीय संविधान के प्रति अपनी आस्था जता रहा हो, एक ऐसा व्यक्ति जो जेएनयू में घटी किसी भी राष्ट्रविरोधी घटना से स्वयं को अलग रख रहा हो तथा ऐसी किसी घटना की निंदा कर रहा हो,जो व्यक्ति देश के $गरीबों,मज़दूरों,किसानों, छात्रों तथा देश के वंचित समाज के लोगों के अधिकारों की बात कर रहा हो स्वंय पीएचडी की पढ़ाई पढ़ रहा हो, ऐसा व्यक्ति आखिर राष्ट्रद्रोही कैसे हो सकता है। और यदि उसके द्वारा उसके भाषणों में उठाए जा रहे सवाल सत्ता केंद्र को इस तरह भयभीत कर रहे हैं कि उसने सत्ताधीशों की नींदें हराम कर रखी हैं तो क्या इसका एकमात्र उपाय यही है कि हिंसा के द्वारा उसका मुकाबला किया जाए? इस प्रसंग में एक उदाहरण देना बेहद ज़रूरी है। और वह यह कि महात्मा गांधी अपने जीवन में उतने प्रभावी निश्चित रूप से नहीं थे जितने प्रभावी तथा प्रासंगिक अपनी हत्या के बाद हुए हैं। लिहाज़ा कन्हैया कुमार से भय खाने वाले लोगों को इस विषय पर बड़ी गंभीरता से सोचना पड़ेगा कि हिंसा से किसी की आवाज़ अथवा उसकी विचारधारा को कभी भी दबाया नहीं जा सकता। जहां तक कन्हैया कुमार के राष्ट्रद्रोही होने का प्रश्र है तो भले ही वैचारिक नज़रिए से उसका इस हद तक विरोध क्यों न किया जा रहो कि उसे जान से मारने या उसकी जीभ काटने जैसी हिंसक मानसिकता वाली बातें की जाएं परंतु इसी सत्ता में बैठे सैकड़ों लोग ऐसे भी देखे जा सकते हैं जिनपर दंगे भडक़ाने, सामूहिक हत्याओं में शामिल होने, अपहरण,बलात्कार,डकैती,फिरौती वसूलने,गबन जैसे न जाने कितने आरोप हैं। परंतु ऐसे लोग चूंकि सत्ता से जुड़े हैं इसलिए उन्हें तो राष्ट्रभक्त या राष्ट्रप्रेमी होने का प्रमाणपत्र अपने-आप प्राप्त हो जाता है और जब कोई व्यक्ति कन्हैया कुमार के रूप में कुछ ऐसे सवाल खड़े करता है जिसका जवाब ही दे पाना संभव न हो तो उसकी हत्या करने या उसकी जीभ काटने की साजि़श रची जाती है? ऐसे में देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था ही भविष्य में यह निर्धारित करेगी कि वास्तव में कौन राष्ट्रभक्त है और कौन राष्ट्रद्रोही ?