क्रिसिल रिसर्च तथा कोटकवेल्थ के एक अध्ययन के मुताबिक़ वैश्विक अनिश्चितता एवं घरेलू मोर्चे पर आर्थिक सुस्ती के बावजूद देश में बड़े अमीर परिवारों की संपत्ति में लगातार इजाफा हो रहा है। इस इजाफे की दर पांच वर्ष में पांच गुणा तक बढ़ी है। रिपोर्ट के अनुसार बड़े धनी परिवारों की जीवनशैली में कोई परिवर्तन नहीं आया है अलबत्ता उनका परिधानों व एसेसरीज पर होने वाला खर्च 2011 में बीते वर्षों की तुलना में 50 प्रतिशत तक बढ़ गया है।
बड़े अमीरों की परिभाषा में ऐसे लोग आते हैं जिन्होंने पिछले 10 वर्षों में कम से कम 25 करोड़ रुपये की औसत संपत्ति अर्जित की है। बीते वर्ष बड़े अमीर परिवारों की संपत्ति 65 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2016-17 तक 318 लाख करोड़ रुपये होने का भी अनुमान है।
शानदार जीवनशैली व चकाचौंध भरी ज़िन्दगी ने बड़े अमीर परिवारों से बीते वर्षों में जमकर खर्च करवाया है| हालांकि इन बड़े अमीर परिवारों ने वित्तीय अनियमितताओं को देखते हुए निवेश करने में कंजूसी की है| वर्तमान में देश में कुल बड़े अमीर परिवारों की संख्या ३० प्रतिशत से बढ़कर ८१ हज़ार पर पहुच गई है| यूँ तो भारत में जनसंख्या का बड़ा अनुपात देखते हुए ऐसे परिवारों का प्रतिशत मात्र ०.०३ ही है फिर भी तमाम आर्थिक योजनाओं का इनके अनुकूल होना इनके आर्थिक हितों को संरक्षण देना है| देश के सकल घरेलू उत्पाद की दर ७.५ प्रतिशत के लिहाज से बड़े अमीर परिवारों का दोनों हाथों से धन लुटाना शायद भारत जैसे देश में ही संभव है|
देश में जहां आधी आबादी गरीबी रेखा के नीचे बसर करने हेतु बाध्य है और योजना आयोग के तार्किक आंकड़ों द्वारा सरकार गरीबों की संख्या घटाने पर आमादा है, वहां इन बड़े अमीर परिवारों की विलासिता पर खर्च होने वाला धन आश्चर्यचकित करता है| जिन्हें दो जून की रोटी भी मयस्सर नहीं उनके सामने इन बड़े अमीर परिवारों का राजाशाही मिजाज सही अर्थों में भारत को आर्थिक समानता के स्तर पर दो भागों में विभक्त करता है| एक ओर पेट्रोल-डीजल के मामूली दाम बढ़ने पर आधी रात को पेट्रोल पम्पों पर लाईनों को खड़ा माध्यम वर्ग तो दूसरी ओर एसयूवी तथा क्रॉसओवर जैसी महँगी गाड़ियों में तफरी करने वाला बड़ा अमीर तबका, ऐसा प्रतीत होता है मानो सच में भारत निर्माण हो रहा है| दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई जैसे महानगरों में बड़े अमीर परिवारों की तादाद जहां ५३.९ प्रतिशत है वहीं पुणे, हैदराबाद, बेंगलुरु, अहमदाबाद, लुधियाना, नागपुर जैसे महानगर बनते शहरों में भी इनकी तादाद बीते वर्षों की तुलना में काफी बढ़ी जो १३ प्रतिशत तक जा पहुंची है| देश के कम से कम ३५ अन्य बड़े शहरों में भी बड़े अमीर परिवारों की संख्या १५ प्रतिशत तक पहुँच गई है और इसकी वृद्धि दर में लगातार इजाफा होता जा रहा है|
बड़े अमीर परिवारों की विलासिता ने देश के मध्यमवर्गीय परिवारों की आकांक्षाओं को भी पर लगा दिए हैं| मॉल कल्चर के आने के बाद से तो मध्यमवर्गीय परिवार भी विलासिता हेतु धन खर्च करने के मामले में बड़े अमीर परिवारों को कड़ी टक्कर देने की स्थिति में है| खैर इन सब में गरीब का पिसना शायद किसी को दिखाई नहीं देता| सरकार एक ओर तो कमजोर अर्थव्यवस्था का रोना रोती है तो दूसरी ओर विदेशी कंपनियों को भारत आने की छूट देकर उन्हें लूटमार करने की कानूनी मंजूरी देती है| इससे यक़ीनन सामाजिक रूप से वर्गों का बंटवारा दिखलाई देता है| फिर कहीं न कहीं सरकार की आर्थिक नीतियाँ भी बड़े अमीर परिवारों के पक्ष में होती हैं जिसकी वजह से इनकी तादाद में लगातार इजाफा हो रहा है| समाज में यह जो आर्थिक असमानता की खाई लगातार गहरी होती जा रही है उससे कहीं न कहीं दोनों तबकों में रोष बढ़ता जा रहा है| एक को अमीरी नहीं सुहा रही तो दूसरा अपने घर के सामने गरीब की कुटिया बर्दाश्त नहीं कर पा रहा|
आर्थिक नीतियों की अनुकूलता के कारण यदि बड़े अमीर परिवारों की तादाद इसी वृद्धि दर से बढ़ती रही तो अगले पांच वर्षों में इनकी संख्या बढ़कर २.८६ लाख तक पहुँचने का अनुमान है| ऐसे में इस उक्ति की प्रासंगिकता अवश्य बढ़ जाएगी कि अमीर अधिक अमीर होते जा रहे हैं और गरीब रसातल में जा रहे हैं| इससे वर्ग संघर्ष में तेज़ी आएगी अतः यह आर्थिक असमानता भविष्य की दृष्टि से सही नहीं है|