डेविड कोलमेन हेडली याने दाउद गिलानी। गिलानी, जो कि पाकिस्तानी था, उसने अपना यह अमेरिकी नाम क्यों रख लिया और अमेरिकी सरकार ने उसे यह नाम क्यों बदलने दिया? इसलिए कि वह अमेरिका के लिए भारत में जासूसी करता था। वह अमेरिका की मादक-द्रव्य एजेंसी का जासूस था। जो एक पराए मुल्क का जासूस बन सकता था तो उसे अपने जन्मदाता मुल्क का जासूस बनने में क्या दिक्कत थी?
इसीलिए उसने पाकिस्तान की गुप्तचर संस्था ‘आईएसआईएस’ के इशारे पर लश्कर-ए-तय्यबा के लिए मुंबई में जासूसी की। उसने अगर मुंबई की ताज होटल तथा अन्य मुकामों के फोटो लाकर लश्कर को नहीं भेजे होते, आतंकियों के आने और जाने के रास्तों की जानकारी न दी होती याने कुल मिलाकर 2008 के हमले के षड़यंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभाई होती तो क्या 160 लोगों की जान जा सकती थी?
मरने वालों में कुछ अमेरिकी नागरिक और यहूदी भी थे। अमेरिका ने उसे 35 साल की सजा दे रखी है। अब वह मुखबिर बन गया है। सारे राज़ खोल रहा है। इसी दम पर वह अपनी रिहाई की भी मांग कर सकता है।
उसने वीडियो-कांफ्रेसिंग के जरिए जो भी कहा है, वह सब मोटे तौर पर सबको पता है लेकिन उसका परिणाम क्या होगा? कुछ नहीं, क्योंकि पाकिस्तान के अधिकारी, विशेषज्ञ और पत्रकार उसकी गवाही को हाथों हाथ रद्द कर रहे हैं। वे रद्द क्यों न करें? यदि वे उस पर भरोसा करते दिखेंगे तो पाकिस्तान की फौज उनकी खाल खींच देगी।
जो हाल मुंबई हमले का हुआ है, वही पठानकोट हमले का होना है। पाकिस्तान की फौज की पीठ पर अमेरिका का हाथ है। अमेरिकी सरकार ने 58 करोड़ डालर की भिक्षा पाकिस्तान की झोली में कल ही डाली है। यदि अमेरिका अपना हाथ खींच ले तो पाकिस्तान की फौज अपने नेताओं के आगे घुटने टेक देगी। पाकिस्तान में लोकतंत्र आ जाएगा। पाकिस्तान के आम लोग और लोकतांत्रिक नेता भारत से अच्छे संबंध चाहते हैं लेकिन अमेरिकियों से बढ़कर कमअक्ल और स्वार्थी नेता किस देश में होंगे? उन्होंने ही मुजाहिदीन, तालिबान और उसामा बिन लादेन पैदा किए और वे ही भारत-पाक झगड़े की असली जड़ है।
वे हेडली की गवाहियां स्काइप पर करवा कर हमारे नौसिखिए नेताओं को बुद्धू बना रहे हैं। हम लोग गदगद हैं। क्या अमेरिकी गुप्तचर एंजसियों को हेडली (गिलानी) की भारत-विरोधी गतिविधियों की जानकारी पहले से नहीं थी? यदि नहीं थी तो उन्हें चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए। अमेरिका सिर्फ खुद के विरुद्ध आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं करता। उसकी बला से, अगर आतंकवाद की आग में भारत झुलसता है तो झुलसे। भारत से पाकिस्तान के रिश्ते खराब रहते हों तो रहे। अमेरिका से तो वे दिन-रात सुधर ही रहे हैं।