गाय को हम मॉं क्यों कहते हैं यदि हम गौ माता के बारे में जानेंगे तो एकदम आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रह पाएंगे।
गौ के बिना हमारे देश की आजादी अधूरी है, गाय के बिना ये राष्ट्र अधूरा है। यदि, गाय को राष्ट्रीय पशु का दर्जा मिले तभी उसे सारे अपने अधिकार मिल सकेंगे। गोरक्षा मनुष्य का धर्म है क्योंकि गाय एक ऐसी प्राणी है जिससे मनुष्यों को व सृष्टि का बहुत उपकार होता है इसलिए हमें गाय के प्रति हिंसक रूख नहीं अपनाना चाहिए। अतः स्वयं या मनुष्यों के हित व उपकार के लिए गायों की रक्षा करना मनुष्य का धर्म निश्चित होता है क्योंकि गाय से दुग्ध, गोमूत्र व गोमय प्राप्त होने से मनुष्य उसका ऋणी व कृतज्ञ बनता है जिसका उपाय उसे गाय की सेवा, उसको अच्छा चारा व घास आदि खिलाना, उसको सुरक्षा प्रदान करना, उसके प्रति माता के समान आदर भाव रखना है।
मनुष्य को यह याद रखना चाहिए कि ईश्वर की आज्ञा है कि मनुष्यों को प्रतिदिन यज्ञ करना चाहिये। यज्ञ करने से मनुष्य अनजाने में किये हुए पापों के बन्धनों से मुक्त होता है। यज्ञ से अनेकानेक अन्य लाभ भी होते हैं। यह यज्ञ बिना गोघृत के सम्भव नहीं है। अतः मानव जीवन को वेदानुसार व ईश्वर आज्ञानुसार व्यतीत करने के लिए यज्ञ करना आवश्यक है और वह यज्ञ गोरक्षा, गोसेवा, गोपूजा वा गोपालन कर गोदुग्ध व गोघृत प्राप्त कर ही सम्पन्न किया जा सकता है। यज्ञार्थ व ईश्वराज्ञा पालनार्थ गोरक्षा करना मनुष्य के प्रमुख कर्तव्यों में से एक कर्तव्य है। मनुष्य यदि यज्ञ नहीं करता तो ईश्वर की आज्ञा भंग होने से वह ईश्वर से दण्ड का अधिकारी बनता है।
सच्चाई तो यह है कि बैल अतीत में हमारे पूर्वजों की बहुत सेवा की है अतः उनके प्रतिनिधि आजकल के बैलों पर अत्याचार करना क्रूर कर्म होने के साथ अधर्म है और इससे मनुष्य ईश्वर व अत्याचार किये गये जीवों का शत्रु व घातक सिद्ध होता है जिससे ईश्वर की व्यवस्था से उसे दण्ड मिलना निश्चित होता है।
आज ही गो व गोवंश सहित सभी पशुओं की हत्याओं के विरोध में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिये। हम यह भी अनुभव करते हैं कि यदि शत-प्रतिशत गोरक्षा हो तो देश को आत्म निर्भर व सुखी बनाया जा सकता है। यह इस प्रकार यह होगा कि गोरक्षा, गोपालन, गोसंवर्धन के कार्यक्रम चलाकर गायों की नस्ल व संख्या में वृद्धि की जाये। इससे देश में गोदुग्ध व गोघृत की आवश्यकता के अनुरूप व उससे भी अधिक मात्रा की उपलब्धि होगी। भरपूर गोदुग्ध आदि पदार्थों से हमारे देश की प्रजा निरोग व बलवान होगी। गोदुग्धादि पदार्थों के समुचित पान से बुद्धि में ज्ञान व बल की भी वृद्धि होगी। सभी लोग ज्ञानी, वैज्ञानिक, इंजीनियर, डाक्टर बनेंगे और देश में सभी लोगों को अधिक से अधिक रोजगार मिलेगा।
आज भाग-दौड़ की दुनिया में गोमूत्र मानव जाति के लिए एक वरदान साबित हुआ है। गाय का गोमूत्र भी कैंसर जैसे दुर्लभ रोगों के उपचार में उपयोग किया जाता है। इस पर उच्चस्तरीय अनुसंधान की आवश्यकता है और ऐसा सम्भव है कि भविष्य में गोमूत्र आदि पदार्थों से कैंसर का पूर्ण निदान सम्भव हो जाये। गाय का गोबर भी आर्थिक दृष्टि से ईधन और खेतों में खाद के काम आता है।आज के युग में गाय के गोबर से बनी खाद सर्वोत्तम खाद सिद्ध हुई है। वैज्ञानिक परीक्षणों में यह भी पाया गया है कि गाय का गोबर रेडियो धर्मिता प्रतिरोधी है। इन्हीं गुणों के कारण प्राचीन आर्य और ऋषि-मुनियों ने गाय को माता के समान स्थान देकर गौरवान्वित किया था। अत: मनुष्य का कर्तव्य है कि वह गोहत्या न करे, सम्भवतः इसी कारण हमारे पूर्वजों ने गोहत्या को महापाप की संज्ञा दी थी जो कि यथार्थ ही है। इस प्रकार गाय हमारे जीवन से गहनता से जुड़ी हुई है और हमारे जीवन का अभिन्न भाग है।
इस पर मानवीय दृष्टि से विचार कर पूर्ण गोहत्या बन्दी का कानून बनना चाहिये और गोहत्या करने वालों को कठोरतम् दण्ड का प्रावधान किया जाना चाहिये जिससे संसार के सभी मनुष्य स्वस्थ, सुखी, बलवान, निरोग, दीर्घायु, ईश्वर-भक्त व यज्ञप्रेमी सकें। गाय को राष्ट्रीय पशु का दर्जा दिया जाए तभी उसको सही ढंग से न्याय मिल पाएगा।