राजनीति की रपटीली राहों पर राष्ट्रपति चुनाव की बिसात बिछनी शुरू हो गई है। पांच राज्यों में चुनाव हो गए। चार राज्यों में बीजेपी की सरकारें बन गई। दो में जोड़ तोड़ से, तो दो में ऐतिहासिक बहुमत से। यूपी में बीजेपी को मिला भारी बहुमत उसके लिए राष्ट्रपति चुनाव की राह आसान करने का साधन साबित हो गया है। लेकिन कौन बनेगा राष्ट्रपति, यह सबसे बड़ा सवाल है। दुनिया के सबसे बड़े गणतंत्र के इस सर्वोच्च सर्वशक्तिमान बीजेपी में बहुत सारे दावेदार हैं। सूची लंबी है। बहुत लंबी। कई केंद्रीय मंत्री भी कतार में हैं। पार्टी के बुजुर्ग नेता तो पहले से ही अपने भाग्य का छींका टूटने का इंतजार कर रहे हैं। कुछ जाने माने और प्रतिष्ठित गैर राजनीतिक लोग भी लुटियन के टीले में अपना बुढ़ापा काटने के मंसूबे पाले हुए हैं। इस सबके बावजूद, कोई नहीं जानता कि राष्ट्रपति के पद के लिए अंतिम रूप से किसके नाम पर मोहर लगेगी। मगर, इतना तय है कि राष्ट्रपति के संदर्भ में ही उपराष्ट्रपति का नाम भी लगभग निश्चित हो जाएगा।
बीजेपी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह अपना कद इतना ऊंचा ले जा चुके हैं कि इस मामले में उनसे सवाल करने की किसी की हिम्मत नहीं है। पता तो उन्हें सब है, लेकिन राजनीति में इस तरह के फैसले दुनिया के लिए आम नहीं किए जाते। इसीलिए मोदी और शाह कौन बेगा राष्ट्रपति जैसे सवाल पर अनभिज्ञ जैसा व्यवहार करते हैं। लेकिन इसी से साफ लग जाता है कि किसको राष्ट्रपति बनाना है, इस बारे में सब कुछ तय है। वैसे भी, जिस देश में पंच, सरपंच, और विधायक जैसे छोटे से पद के लिए भी सालों पहले से चेहरे लगभग तय कर दिए जाते हों, उस देश के सर्वोच्च राजनीतिक पद के लिए अब तक कोई नाम तय नहीं है, इस बात पर कौन भरोसा करेगा। यूपी में योगी आदित्यनाथ को सीएम बनाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी और संघ परिवार ने जो बहुत सारे संदेश एक साथ दिए हैं, उनमें से एक यह भी है कि राष्ट्रपति पद के लिए निर्णय उसी के नाम पर होगा, जिस पर सभी की सहमति होगी। और अंतिम मोहर भले ही संघ परिवार की लगे, लेकिन नाम तो मोदी और अमित शाह ही तय करेंगे।
नाम बहुत सारे हैं। राष्ट्रपति पद के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल में से देखें, तो वित्त मंत्री अरुण जेटली, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, नगर विकास मंत्री वेंकैया नायडू समेत लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन जैसे भी कुछेक जानदार नाम हैं। पार्टी में देखे, तो लालकृष्ण आडवाणी भी सबसे प्रबल स्वरूप में सामने हैं। मुरली मनोहर जोशी, शांता कुमार, केशूभाई पटेल और यशवंत सिन्हा भी उम्मीद पाले हुए हैं। लेकिन इन सब में जेटली और आडवाणी को छोड़कर बाकी सभी को तो उपराष्ट्रपति पद से भी संतुष्ट किया जा सकता है। दरअसल, मनोहर पर्रिकर के गोवा का सीएम बनकर दिल्ली छोड़ देने से रक्षा मंत्री का पद खाली हो गया है। उस पर किसी को बिठाना है। कलराज मिश्र 75 पार के हो रहे हैं। उनकी जगह भी खाली होनेवाली है। सो, कुछेक हफ्तों में मंत्रिमंडल में फेरबदल भी बहुत जरूरी होगा।
देश को तो राष्ट्रपति पद के लिए हमेशा से लालकृष्ण आडवाणी का नाम सबसे वाजिब लगता ही है, बीजेपी के ज्यादातर लोगों को भी उन्हीं का नाम सहज स्वरूप में उचित और अर्थपूर्ण दोनों लगता है। आडवाणी सबसे वरिष्ठ नेता हैं। बीजेपी के लिए उनका समर्पण और सेवा भाव सबसे ज्यादा रहा है। पार्टी को जन्म देने से लेकर, पैरों पर खड़ा करने, मजबूत बनाने और उसको विस्तार देने में अटल बिहारी वाजपेयी की बराबरी का समर्पण आडवाणी का रहा है। फिर वे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजनीतिक गुरू भी रहे हैं। पिछले दिनों अपनी गुजरात यात्रा को दौरान प्रधानमंत्री के संकेतों को जो लोग साफ साफ पढ़ पाए थे, उनका दावा है कि मोदी के मन में कहीं न कहीं राष्ट्रपति के लिए आडवाणी का नाम जरूर है। लेकिन उनको लेकर मोदी के मन में यह आशंका भी हो सकती है कि आडवाणी अगर बनते हैं, तो राजनीति में लंबे समय तक खुद को दरकिनार किए जाने के वैमनस्य को अगर वे पचा नहीं पाए, तो सरकार के कामकाज में अडंगा भी लगा सकते हैं। मगर, आडवाणी के नियंता संघ परिवार के लोग मानते हैं कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने और बहुत मजबूत हो जाने के बाद अब आडवाणी की कोई प्रकट राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है। अब स्थिति यह है कि यदि आडवाणी को राष्ट्रपति बनाया जाता है तो वे मोदी के कृतज्ञ रहेंगे। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि बीडजेपी के बड़े नेताओं को दरकिनार करने के जो आरोप प्रधानमंत्री मोदी पर लगते रहे हैं, वे भी धुल जाएंगे और देश के दिलों में मोदी का एक कृतज्ञ सद्भाव स्वरूप भी बहुत ऊभरकर सामने आएगा। लेकिन साथ ही यह भी लगता है कि आडवाणी के प्रति अगर मोदी अपनी कृतज्ञता का भाव प्रकट करते हैं, तो मुरली मनोहर जोशी, कलराज मिश्र और शांता कुमार जैसे नेता भी आस पालेंगे। सो, आडवाणी राष्ट्रपति पद के लिए बेहतर उम्मीदवार होने के बावजूद, बाकी बुजुर्गों को बिठाना मोदी के लिए एक नई तरह की मुश्किल हो सकती है। वैसे, आडवाणी को अगर बनाना ही होगा, तो मोदी वैसे इस तरह की मुश्किलों से तो चुटकी में निपट लेंगे।
मोदी फिर से प्रधानमंत्री बनेंगे, तो उसी कार्यकाल के दौरान भारत अपनी आजादी के 75 साल मना रहा होगा। अपने हर कार्य को बेहद शानदार कार्यक्रम के रूप में जश्न के साथ मनाने वाले मोदी भारत की आजादी के अमृत महोत्सव को कैसे मनाएंगे, इसका अंदाज उनके विदेश दौरों में होनेवाले इवेंट्स के जलवों को देखकर लगाया जा सकता है। इसलिए, सबसे बड़ी एक सच्चाई यह भी है कि प्रधानमंत्री के रूप में मोदी अपने अगले कार्यकाल की सफलता और न्यू इंडिया के सपने को चमत्कारिक स्वरूप में साकार करने के लिए अपेक्षाकृत जवान राष्ट्रपति चाहते हैं। ताकि मोदी उससे भी अगली यानी तीसरी पारी में भी बीजेपी को सत्ता में लाने के लिए काम कर सकें। इस दौरान मोदी चाहते हैं कि वे हर तरह से सिर्फ देश के भीतर के मामलों में ही सक्रिय रहें, और विकास के सारे काम पूरे करें। और, उधर संसार भर से रिश्ते निभाने का काम राष्ट्रपति करते रहें। इसके लिए उन्हें शारीरिक, मानसिक और व्यावहारिक रूप से सबल, समर्थ, सक्षम और सक्रिय राष्ट्रपति चाहिए। भारत के राष्ट्रपति के रूप में लंबे समय तक अंतर्राष्ट्रीय मंच पर दमदार नेता के रूप में स्थापित होने का माद्दा जेटली में है। देश के वर्तमान रानीतिक परिदृश्य में फिलहाल तो जेटली ही अकेले नेता हैं, जो मोदी के सपनों के राष्ट्रपति के रूप में उम्मीदों के आसमान पर खरे उतर सकते हैं। न्यू इंडिया बनानेवाले मोदी की ऐसे राष्ट्रपति की यह तलाश भी सिर्फ अरुण जेटली पर जाकर पूरी होती है। वे मोदी के मुरीद हैं। दोस्त भी हैं और सहयोगी भी। जानकार तो खैर वे बहुत ज्यादा है और तेजतर्रार भी गजब के हैं। लेकिन ये तो सारे कयास हैं। इन सबके अलावा कोई और भी हो सकता है। क्योंकि न्यू इंडिया के निर्माण के दौर में राष्ट्रपति पद के लिए असल उम्मीदवार की अगर किसी को खबर है, तो वह हैं अमित शाह और मोदी। इन्हीं का दिल जानता है। लेकिन मामला राजनीति का है, सो… दिल है कि जानता नहीं…!