हत्या किसकी पार्टी या विचारधारा की, नेता या नेतृत्व की, जनता या जनादेश की, जनमत या ध्वनिमत की, वंशवाद या नौकरशाही की, राजनैतिक भविष्य या नई संभावनाओं की, प्रबंधन या प्रयोजन की, प्रश्न या प्रतिप्रश्न की, पूंजी या पूंजीवादी सम्प्रभुता की, उजाले या अँधेरे की… और भी कई बातें, कई प्रश्न, कई निष्कर्ष है किन्तु प्रियंका ने कुछ तो ऐसा कहा है जो कांग्रेस के मनोबल को नस्ते नाबूत करने में कसर नहीं छोड़ेगा।
लोकसभा चुनाव में मिले जनादेश में हार के बाद कांग्रेस में वरिष्ठों की भूमिका को लेकर सवाल उठ रहे हैं। कांग्रेस कार्यसमिति की 25 मई को हुई बैठक में महासचिव प्रियंका गांधी ने भी कुछ वरिष्ठ नेताओं की कार्यप्रणाली को लेकर नाराजगी जाहिर की थी। प्रियंका ने तल्ख लहजे में कहा था कि *कांग्रेस के हत्यारे इसी कमरे में बैठे हैं।* इसी बैठक में राहुल ने भी वरिष्ठ नेताओं द्वारा अपने बेटों के लिए टिकट मांगने की जिद पर नाराजगी जाहिर की थी। प्रियंका गांधी के इस बयान के बाद मंथन के दौर से गुजर रही कांग्रेस के लिए नई मुसीबत खड़ी हो गई है।
यकीनन प्रियंका को राजनीति में प्रवेश किए कोई खासा समय नहीं हुआ है, न ही उनका राजनीति के उस दौर से परिचय है जब कमरे के अंदर बैठे उन नेताओं ने चुनावी सभा या अन्य बैठकों में दरी-चटाई बिछाई होगी, पानी, चाय की व्यवस्था की होगी। बल्कि चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुई, वातानुकूलित कक्ष से राजनीति की रणनीतियाँ बनाने वालों में अग्रणी प्रियंका गाँधी यह भी भूल गई कि कांग्रेस को सींचने वाले भी वही लोग थे जब वे पैदा भी नहीं हुई थी।
आज कमरे के अंदर बैठे उन तमाम वरिष्ठजनों को कांग्रेस का हत्यारा कहकर जिस अशिष्टता का परिचय प्रियंका गाँधी ने दिया उसे देखकर तो स्पष्ट हो गया कि ये मुट्ठी बंद ही रहती तो कांग्रेस के लिए अच्छा होता, बेवजह मैदान में प्रचार के लिए उतारा भी, हाथ भी खाली ही रह गए और इस तरह के शब्दों से कांग्रेस की मटीयामेल करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। वैसे इस तरह से वरिष्ठ कार्यकर्ताओं के अपमान की पुरानी आदत और गाँधी परिवार की हाँ में हाँ मिलाने के चलन के चलते ही कांग्रेस के पुराने नेताओं को यह दिन देखना पड़ा। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भी इतने ग़ैरतमंद कहाँ जो अपने आका के सामने आँख उठा कर कुछ बोल सके, या कल की आई हुई की गलती उसे बता दें।
आखिर कांग्रेसीजनों के स्वाभिमान का अता-पता भी कहाँ है, वो तो बस हुकुम मेरे आका के सहारे तो राजनैतिक जीवन गुजार रहें है।
सत्ता सुंदरी जो चाहे करवाए, चाहे तो जूठन भी खिलाएं, चाहे तो पैरों में भी झुकाएँ, या चाहे तो जब मन में आए आपकी इज्जत को खुद की जूती बनाकर रखें।
प्रियंका को उनके इस कृत्य के लिए उस कमरे में बैठे तमाम कांग्रेसियों से क्षमा याचना करना चाहिए, क्योंकि ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वो सिपाही है जो प्रियंका के राजनैतिक रूप से पैदा होने के पहले से ही भारत में कांग्रेस के वजूद को जीवित रखने में दक्ष रहें हैं।
कांग्रेसजनों का ऐसा अपमान तो कभी नहीं हुआ, यहाँ तक कि गाँधी-नेहरू के समय भी नहीं, आज कांग्रेस शब्द बाणों से रोज़ कहानियाँ गढ़ने वाली खुद खतरे के निशान के ऊपर बहने लगी है।
प्रियंका संभवत वो दौर भी भूल गई, जब कांग्रेस को कोई खेवनहार नहीं मिल रहा था, उसी समय सीताराम केसरी ने कांग्रेस को सींचा, और उसके बाद सोनिया के हाथ में कमान दी, सम्भवतः वो समय भी प्रियंका को नहीं पता होगा जब-जब कांग्रेस के बुरे दिन आए तब-तब दक्षिण ने अपनी वफादारी निभाते हुए पहले चिकमंगलूर से इंदिरा जी के, फिर बेल्लारी से सोनिया जी के तारणहार के रूप में भूमिका निभाई, और आज भी राहुल के राजनैतिक भविष्य को हथेली लगाने का काम दक्षिण यानी वायनाड से ही हुआ है वर्ना अमेठी से तो भैंस पानी में गई ही है। ऐसे विकट समय में भी कांग्रेस के वरिष्ठ सिपाहियों को कांग्रेस का हत्यारा करार करना बुद्धिमानी नहीं बल्कि बौखलाहट के सिवा कुछ नहीं है।
2019 के आम चुनाव में जिस तरह का चुनावी प्रबंधन रहा उसमें किस वरिष्ठ कांग्रेस नेता की चली, जो कुछ निर्णय लिए वो राहुल-प्रियंका ने लिए, धरातल आधारित प्रयोजनों को नकार कर ऊपरी हवा बनाने के सिवा किन मुद्दों पर कांग्रेस का पक्ष जनता के सामने लाया गया?
बंगाल में डी पी रॉय खामोश दिखें, क्योंकि परियोजना के क्रियान्वन का काम लुटियन दिल्ली में बैठे लोग कर रहें थे, उन्हें न बंगाल की सियासत पता है न ही अन्य राज्यों की, वे तो आँकड़ों की रपट के आधार पर ही काम कर रहें थे, और वो सभी राहुल और प्रियंका के अधीन ही थे फिर इसका मतलब क्या यह माना जाएं कि कांग्रेस के हत्यारे राहुल या प्रियंका है? देखा जाये तो राहुल ने जिन लोगों की सलाह ली उनमें ही सेम पित्रोदा जैसे सलाहकारों ने 'हुआ तो हुआ' जैसा कारनामा भी किया।
टीम राहुल का हिस्सा थे पूर्व वित्त मंत्री पी.चिदंबरम, जिन्होंने कांग्रेस के घोषणा पत्र कमेटी के चेयरमैन रहकर घोषणा पत्र बनाया, इस काम में उनकी मदद राजीव गौड़ा ने की। गरीबों को 72 हजार साल की योजना का प्रारूप चिदंबरम ने ही तैयार किया था। उसी टीम में आनंद शर्मा जो कांग्रेस के प्रचार टीम के चेयरमैन भी शामिल थे। पवन खेड़ा भी इस टीम में अहम भूमिका निभा रहे थे। प्रवीन चक्रवर्ती ने तो पार्टी के लिए आंकड़े जुटाने में अहम भूमिका निभाई।
इनके अलावा राहुल गांधी की कोर टीम में रणनीतिकार और अहम फैसलों में भूमिका निभाने वालों में अहमद पटेल, अशोक गहलोत, केसी वेणुगोपाल, गुलामनबी आाजाद, सैम पित्रोदा, रणदीप सुरजेवाला शामिल रहे।
वे सभी उसी कमरे का हिस्सा थे, जिसे प्रियंका ने कांग्रेस का हत्यारा करार किया। अब सवाल यह है कि राहुल का मैनेजमेंट कमजोर था या प्रियंका की जुबानी जंग। चौकीदार चोर और राफेल के अलावा किसी जन हितेषी मुद्दे पर कांग्रेस ने जनता का ध्यान नहीं दिलाया।
सन 1978 में इंदिरा जी ने जब उपचुनाव लड़ने चिकमंगलूर पहुंची तब एक नारा दिया था –
'एक शेरनी सौ लंगूर- चिकमंगलूर चिकमंगलूर' इसी नारे के कारण इंदिरा जी का साथ बुद्धिजीवी लोगों ने छोड़ा भी था, चुनाव तो येन-केन प्रकारेण जीत गई वे किन्तु बौद्धिक कुशलता प्रभाव नहीं डाल पाई, ऐसा ही नारा 2019 के आमचुनाव में 'चौकीदार चोर' के नाम से हुआ, जिसका परिणाम कांग्रेस का दहाई में सिमटना है।
इसीलिए विद्वानों ने कहा भी है कि शब्दों को संभालकर बोलिए, और अभी तो कांग्रेस को पुनरावलोकन के दौर में सभी को साध कर कार्य करने, आंकलन, परिचालन करने की आवश्यकता है। यदि अभी भी कांग्रेस नहीं संभाली तो 2024 भी ऐसे ही हाथ से चले जाएगा, फिर लठ लेकर पिटने से 'न माया मिलेगी, न राम' और कांग्रेस एक खोज हो जाएगी।
कांग्रेस को स्वयं का नेतृत्व तैयार करने पर जोर देना चाहिए, न कि बुराई का ठीकरा खसकाने की प्रथा बनानी चाहिए। तभी कांग्रेस के अच्छे दिन आना संभव हो पायेगा।