यह मुफ्त इलाज अद्भुत लेकिन …..?
आयुष्मान भारत के नाम से प्रधानमंत्री ने जिस आरोग्य योजना को शुरु किया है, वह निश्चय ही दुनिया की सबसे बड़ी योजना है। दुनिया का कोई देश ऐसा नहीं है, जहां करोड़ों लोगों को पांच लाख रु. तक का इलाज हर साल मुफ्त में कराने की सुविधा मिले। दस करोड़ गरीब परिवार याने 50 करोड़ लोग अब भारत में अपना इलाज मुफ्त में करवा सकेंगे। इतने लोग तो कई देशों की जनसंख्या को मिला देने पर भी नहीं बनते। इसके लिए भाजपा सरकार और उसके स्वास्थ्य मंत्री बधाई के पात्र हैं। लेकिन असली सवाल यह है कि यह लोक-कल्याणकारी योजना कई अन्य अभियानों की तरह सिर्फ नारेबाजी बनकर न रह जाए ! क्या भारत में 50 करोड़ लोगों के इलाज के लिए पर्याप्त डाॅक्टर और अस्पताल हैं ?
हमारे अस्पताल गांवों से इतने दूर हैं कि ग्रामीण मरीजों के पास उन अस्पतालों और डाॅक्टरों तक पहुंचने के लिए ही पैसे नहीं होते। सरकार को सबसे पहले देश के हर जिले में बड़े-बड़े अस्पताल खोलने चाहिए और हर डाॅक्टरी पास करनेवाले छात्र को अनिवार्य रुप से गांवों के अस्पतालों में सेवा के लिए भेजना चाहिए। सिर्फ एलोपेथिक नहीं, आयुर्वेदिक, यूनानी, प्राकृतिक चिकित्सा और होमियोपेथिक इलाज की सुविधा भी मरीजों को मिलनी चाहिए। डाॅक्टरी की पढ़ाई अंग्रेजी में नहीं, भारतीय भाषाओं में होनी चाहिए ताकि हमारे डाॅक्टर मौलिक शोध आसानी से कर सकें और ग्रामीण और शहरी गरीबों का इलाज सहज ढंग से कर सकें। सरकार को यह भी स्पष्ट करना होगा कि उसकी नजर में गरीब कौन है ? क्या सिर्फ 50 करोड़ लोग गरीब हैं ? सच्चाई तो यह है कि 100 करोड़ लोग भारत में ऐसे हैं, जो अपनी बीमारी पर पांच लाख रु. साल खर्च नहीं कर सकते ?
कहीं ऐसा न हो कि दुनिया की यह सबसे बड़ी लोक-कल्याणकारी योजना भारत में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार का जरिया बन जाए। डाॅक्टरी के धंधे में जितनी ठगी होती है, किसी और धंधे में नहीं होती। अतः सरकार को गैर-सरकारी डाॅक्टरों और अस्पतालों को कड़े नियंत्रण में रखना होगा। समझ में नहीं आता कि भारत के गैर-भाजपाई राज्यों ने इसे स्वीकार क्यों नहीं किया। यदि यह अभियान सफल हो जाए याने देश में शिक्षा और स्वास्थ्य ठीक हो जाए तो भारत को महाशक्ति बनने से कौन रोक सकता है ?