एस पी मित्तल
भारत के संविधान के लागू होने के 75 वर्ष पूरे होने पर 26 नवंबर को दिल्ली में पुराने संसद भवन के सेंट्रल हॉल में सांसदों का संयुक्त समारोह हुआ। इस समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, उपराष्ट्रपति जगदीश धनखड़, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ साथ लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी, राज्यसभा में प्रतिपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खडग़े आदि मंच पर बैठे। लोकतंत्र के लिए यह सुखद अवसर रहा कि पक्ष और विपक्ष के नेता एक साथ मंच पर थे। लेकिन सवाल उठता है कि जब संसद के अंदर गुंडागर्दी हो रही हो तब संविधान के 75 वष्र पूरे होने का समारोह क्या मायने रखता है? 25 नवंबर से संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हो चुका है। लेकिन लोकसभा और राज्यसभा का संचालन नहीं हो पा रहा है। विपक्ष के हंगामे के कारण सदन को शुरू होने से पहले ही स्थगित करना पड़ता है। लोकसभा में अध्यक्ष ओम बिरला और राज्यसभा में सभापति जगदीप धनखड़ सांसदों को अनुशासन का पाठ पढ़ाते हैं, लेकिन इस पाठ का कोई असर नहीं होता। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मानना है कि कुछ लोग अपने राजनीतिक लाभ के लिए गुंडागर्दी का सहारा लेकर संसद पर कब्जा करने की कोशिश कर रहे है। यानी प्रधानमंत्री ने सांसदों के हंगामे की तुलना गुंडागर्दी से की है। नरेंद्र मोदी देश की जनता के समर्थन से लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं। यदि तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने वाले राजनेता की कुछ राजनीतिक दलों के सांसदों के बारे में ऐसी राय है तो फिर मौजूदा संविधान की दयनीय स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। संविधान के निर्माताओं ने 75 वर्ष पहले ऐसी कल्पना नहीं की थी। यदि संविधान निर्माताओं को यह पता होता है कि कुछ सांसद मिलकर संसद को नहीं चलने देंगे तो उसके रोकथाम के नियम भी बनाए जाते। हालांकि अध्यक्ष और सभापति को हंगामा करने वाले सांसदों को सदन से बाहर निकालने का अधिकार है, लेकिन इस अधिकार का बार बार उपयोग होना भी लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है। संसद को सुचारू तरीके से संचालन हो तभी संविधान दिवस मनाने के मायने भी है। जब संसद ही नहीं चल पा रही है तो संविधान दिवस क्यों मनाया जा रहा है? कुछ राजनीतिक दलों के सांसद अपने ही संविधान को नहीं मान रहे हैं।
पाकिस्तान और बांग्लादेश के हालात देखें:
भारत में जिन राजनीतिक दलों के सांसद संसद को नहीं चलने दे रहे हैं, वे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान और बांग्लादेश के हालात देख ले। यह दोनों मुल्क मुस्लिम है। पाकिस्तान में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान तो जेल में बंद हैं, लेकिन उनके लाखों समर्थक मौजूद शाहबाज शरीफ की सरकार को चुनौती दे रहे हैं। इमरान के समर्थकों से सुरक्षा बल मुकाबला करने को विफल है। इन राजनीतिक संघर्ष में प्रतिदिन लोग मारे भी जा रहे हैं वैसे भी पूरा पाकिस्तान सांप्रदायिक हिंसा की जकड़ में है। इसी प्रकार बांग्लादेश में भी अराजकता का माहौल है। शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश में अभी तक भी नई सरकार के गठन की प्रक्रिया शुरू नहीं हो सकी है। जो काम चलाऊ सरकार है, उसका अराजक तत्वों पर कोई नियंत्रण नहीं है। भारत के लिए चिंता की यह बात है कि कट्टरपंथी तत्व हिंदुओं पर अत्याचार कर रहे हैं। अच्छा होता कि हमारी संसद में बांग्लादेश में रह रहे भारतीय नागरिकों के प्रति चिंता प्रकट की जाती।