मानसून की आमद हो चुकी है। इस मौसम में देश के किसी न किसी भाग से बाढ़,जलप्रलय,भूस्खलन,बादल फटने जैसी प्राकृतिक आपदाओं की ख़बरें आती रहती हैं। इस बार भी जहाँ हिमाचल प्रदेश व उत्तरांचल से बादल फटने व भूस्खलन की कई ख़बरें भयावह तस्वीरों के साथ आ चुकीं वहीँ केरल के वायनाड ज़िले के मुंडक्कई, चूरलमाला और मलप्पुरम ज़िले के नीलांबुर वन क्षेत्र में हुए सबसे ख़तरनाक व डरावने भूस्खलन ने तो पूरे देश को शोकमग्न कर दिया। ख़बरों के अनुसार इस भूस्खलन में अब तक 400 से अधिक लोगों की मौत व सैकड़ों लोगों के लापता होने का समाचार हैं। सैकड़ों मकान ज़मींदोज़ हो चुके हैं। हिमाचल व उत्तरांचल से आने वाली वह तस्वीरें जिनमें अनेक मकान व गाड़ियां जलसमाधि लेते दिखाई देते हैं वास्तव में प्रकृति की अथाह शक्ति का दर्शन कराती हैं। बेशक ऐसी त्रासदियों को प्राकृतिक आपदा का नाम दिया जा सकता है। क्योंकि प्रकृति का यह प्रहार कब कहाँ,किस रूप में और किस तीव्रता के साथ हो आधुनिक विज्ञान प्रौद्योगिकी के बावजूद किसी को इस बात का सही अंदाज़ा नहीं हो पाता।
परन्तु रिहायशी इलाक़ों में पानी भर जाना,भूमिगत मार्गों का तालाब में बदल जाना,नाली नालों का जाम होना आदि को तो प्राकृतिक आपदा का नाम हरगिज़ नहीं दिया जा सकता? नया संसद भवन यानी सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट जोकि 13,450 करोड़ की लागत से लगभग 4 वर्षों में बनकर तैयार हुआ था और गत वर्ष 19 सितंबर 2023 से इस नई संसद भवन में पहली कार्यवाही शुरू की गई थी। इसी संसद भवन की एक गुंबद से बारिश में पानी टपकने लगा और जलभराव हो गया। संसद भवन में पानी टपकने की जगह पर बाल्टी रखी गयी थी जिससे पानी बाल्टी में गिर रहा था। कई सांसद भी बारिश में भीगते हुये बाहर निकल रहे थे। यानी नए संसद भवन में कोई पोर्टिको भी नहीं है और संभवत वहां जल निकासी की भी कोई व्यवस्था नहीं है। अब संसद भवन के टपकने में प्रकृति का क्या दोष ? इस घटना के बाद आरोप लग रहा है कि यहाँ न तो छत वाटर प्रूफ़ है न ही पानी निकासी के समुचित प्रबंध हैं न सीवर ड्रेनेज सिस्टम सही है। जबकि अंग्रेज़ों द्वारा निर्मित पुराना संसद भवन जोकि 97 साल पहले 1927 में बनाया गया था आख़िर उसके टपकने या लीक होने की तो आज तक कोई ख़बर नहीं आयी? परन्तु मात्र एक वर्ष पहले तैयार हुआ संसद भवन टपकने भी लगा ? इस घटना में प्रकृति दोषी है या भ्रष्ट प्रबंधन या अकुशल,अदूरदर्शी निर्माणकर्ता व इंजीनियर्स ?
इसी तरह मानसून से पहले ही जून माह के अंत में जब पहली बारिश हुई उस समय अयोध्या में राम मंदिर मंदिर की छत टपकने लगी। राम मंदिर के मुख्य पुजारी सत्येंद्र मिश्र ने उसी समय मामले की गंभीरता का ज़िक्र करते हुये कहा था कि, ‘गर्भगृह में, जहां रामलला विराजमान हैं, वहां भी पानी भर चुका है। ऐसे में कहीं बिजली का करंट न उतर आए इसलिए सुबह 4 बजे और 6 बजे होने वाली आरती टॉर्च की रोशनी में करनी पड़ी। उसी समय पुजारी ने यह भी कहा था कि अगर एक-दो दिन में इंतज़ाम नहीं हुआ, तो दर्शन और पूजन की व्यवस्था बंद करनी पड़ेगी।’ अभी तक राम मंदिर का जो केवल एक फ्लोर तैयार हुआ है इसी पर लगभग 1800 करोड़ रुपए ख़र्च हो चुके हैं। परन्तु मंदिर ट्रस्ट के कई ज़िम्मेदार लोगों द्वारा पुजारी सत्येंद्र मिश्र के आरोपों को झुठलाने की कोशिश की गयी। ज़रा सोचिये यह घटना प्राकृतिक आपदा का परिणाम है या भ्रष्टाचारी व अकुशल निर्माण व्यवस्था का ? पिछले दिनों अयोध्या में ही दस से अधिक जगहों पर सड़कों के धंसने के भी सचित्र समाचार आये थे।
ऐसी ही शुरुआती बारिश में पिछले महीने इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट के टर्मिनल-1 पर पार्किंग की छत गिर गई थी। इस हादसे में कार में बैठे एक कैब ड्राइवर की मौत हो गई थी और 10 अन्य घायल हो गये थे। उसी दौरान देश के अनेक हवाई अड्डों की छतों के टपकने व पानी से एयरपोर्ट के लबालब भर जाने के समाचार आये थे। पिछले दिनों भी मध्यप्रदेश के सतना में 30 करोड़ की लागत से बने एयरपोर्ट में बारिश का पानी भर गया। एयरपोर्ट की एयर स्ट्रिप में भी पानी भर गया। जिससे एयरपोर्ट क्षेत्र में विकास कार्यों की गुणवत्ता व इसकी डिज़ाइन पर सवाल उठने लगे हैं कि आख़िर मात्र डेढ़ इंच बारिश ने सतना में 30 करोड़ रुपये की लागत से बन रहे इस नवनिर्मित एयरपोर्ट को जल-भराव के कारण अपनी चपेट में कैसे ले लिया ? इसी तरह जयपुर में भी पिछले दिनों हुई बारिश ने तो पूरी गुलाबी नगरी को ही डुबो कर रख दिया। स्मार्ट सिटी कहे जाने वाले जयपुर में एयरपोर्ट,रेलवे स्टेशन,अस्पताल,कार्यालय,स्कूल,बाज़ार,मुहल्ले कॉलोनी पुलिस थाने आदि सभी जलमग्न हो गये। जगह-जगह सड़कें धंस गईं, जिनमें स्कूल बस, रिक्शा, कारें और बुलडोज़र तक समा गए। इसी तरह बंगाल के बर्धमान ज़िले के दुर्गापुर में हुई लगातार बारिश के कारण हवाई अड्डे के परिसर में और उसके आसपास जलभराव हो गया है। जिससे क़ाज़ी नज़रूल इस्लाम हवाई अड्डे से आने-जाने वाली उड़ानें प्रभावित हुई हैं। एक अधिकारी ने कहा कि नई दिल्ली और बेंगलुरु सहित हवाई अड्डे से आने-जाने वाली लगभग तीन उड़ानों को रद्द करना पड़ा।इसी प्रकार बेंगलुरु एयरपोर्ट पर भी भारी जलजमाव की ख़बरें हैं।
पिछले दिनों यूपी की राजधानी लखनऊ में भी तेज़ बारिश के चलते विधानसभा सचिवालय भवन में पानी घुस गया। जब सदन में पानी घुसा तो उस समय वहां सीएम योगी आदित्यनाथ भी मौजूद थे। उन्हें सदन से बाहर निकलने के लिए दूसरे गेट का इस्तेमाल करना पड़ा। लगभग पूरे विधानसभा भवन के अंदर बारिश का पानी घुस गया । सदन के ग्राउंड फ़्लोर के सभी कमरे जलमग्न हो गए। सिपाहियों व कई अन्य कर्मचारियों ने जलभराव के चलते दीवार और गेट पर चढ़ कर अपनी जान बचाई। इतना ही नहीं बल्कि मुख्यमंत्री आवास के बाहर पार्क रोड पर भी ज़बरदस्त जल भराव हो गया। सिविल अस्पताल रोड पर हुए जलभराव में तो कई वाहन बंद हो गए। हज़रतगंज के कई इलाक़ों में तो बाढ़ जैसे हालात नज़र आये। यहां नगर निगम समेत कई अन्य सरकारी कार्यालयों में भी बारिश का पानी घुस गया। पिछले दिनों दिल्ली के राजेंद्र नगर में यू पी एस सी की कोचिंग लेने आये कई बच्चे बेसमेंट में डूबने से मर गये।
निश्चित रूप से बारिश प्रकृति का एक ऐसा उपहार है जो अत्यधिक होने पर हमें परेशानी में तो ज़रूर डाल देता है। परन्तु हम जिस विकसित भारत के निर्माण की माला जपते रहते हैं, विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में छलांग लगाने की बातें करते रहते हैं उसमें इस तरह की ग़ैर ज़िम्मेदाराना भ्रष्ट व अकुशल व्यवस्था की कोई गुंजाईश नहीं है। देश को लूटने व बेच खाने वाला निकृष्ट नेतृत्व जो छतों का टपकना नहीं रोक सकता,बरसाती पानी की निकासी सुनिश्चित नहीं कर सकता,नालों व नालियों की समय रहते सफ़ाई नहीं करवा सकता, ऐसी संसद,विधान सभा और एयरपोर्ट तक को डूबने से न बचा पाने वाली 'डूबती' सरकार व शासन व्यवस्था के लिये तो यही कहा जा सकता है कि – हम तो डूबे हैं सनम तुमको भी ले डूबेंगे।