शर्मनाक है नारी शोषण में पक्षपात

    तनवीर जाफ़री 

     बंगाल की राजधानी महानगर कोलकता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल में रात की ड्यूटी अंजाम दे रही एक जूनियर डॉक्टर के साथ 9 अगस्त को हुआ बलात्कार तथा बलात्कार के बाद उसी जूनियर डॉक्टर की बेरहमी से की गयी हत्या का मामला इन दिनों देश के सबसे ज्वलंत मुद्दे के रूप में मीडिया में छाया हुआ है। इस बलात्कार व हत्या के मामले में कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश पर सीबीआई जांच भी शुरू हो चुकी है। उस समय यह मामला और भी हाई  प्रोफ़ाइल हो गया जबकि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने गत दिनों पीटीआई को दिए अपने साक्षात्कार में इसी कांड के सम्बन्ध में यह कह दिया कि "मैं बहुत निराश और भयभीत हूं। बेटियों के ख़िलाफ़ अपराध बर्दाश्त नहीं।  राष्ट्रपति ने कहा, बस अब बहुत हुआ"। इसके अतिरिक्त भी राष्ट्रपति महोदया ने इसी विषय पर और भी बहुत सी बातें कर हमारे समाज की बेटियों और बहनों के साथ हो रहे इस तरह के अत्याचारों पर गहन चिंता ज़ाहिर की। उन्होंने पूरे समाज का आवाह्न किया कि सब मिलकर इस विकृति का सामना करें ताकि इसे शुरुआत में ही ख़त्म किया जा सके।

     राष्ट्रपति महोदया द्वारा कोलकता रेप व हत्याकांड का ज़िक्र अपने इंटरव्यू में करने के बाद यह चर्चा भी सुनाई देने लगी है कि क्या बंगाल में इसी शर्मनाक काण्ड की आड़ में निर्वाचित सरकार को अपदस्थ कर वहां राष्ट्रपति शासन भी लगाया जा सकता है ?  इससे पहले भी बंगाल में संदेशखाली की कुछ महिलाओं ने कथित तौर पर यह आरोप लगाया था कि मुख्य मंत्री ममता बनर्जी के क़रीबी तृणमूल नेताओं द्वारा प्रशासन का डर दिखाते हुए उन लोगों पर अत्याचार किया गया। उनकी ज़मीन छीन कर उस पर क़ब्ज़ा कर लिया गया। विरोध करने पर हमले किये गये। ज़मीन लीज़ पर लेकर पैसे भी नहीं दिये गये, पैसे देने का वादा करने के बावजूद पैसे मार लिये गये और शारीरिक शोषण भी किया गया,आदि आदि।  हालांकि इसी मामले में तृणमूल नेताओं पर बलात्कार  का आरोप लगाने वाली तीन महिलाओं में से दो ने केस वापस भी ले लिया था। तृणमूल कांग्रेस ने ‘स्टिंग ऑपरेशन’ के एक वीडियो में दावा किया था कि बीजेपी के स्थानीय नेता ने कई महिलाओं से सादे काग़ज़ पर दस्तख़त करवाए थे और बाद में तृणमूल नेताओं के विरुद्ध बलात्कार व यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज करवाने में इन काग़ज़ों का प्रयोग किया गया था। इस साज़िश के पर्दाफ़ाश होने के बाद यह मामला जितनी तेज़ी से मीडिया में उछाला गया था उतनी ही तेज़ी से यह दबा भी दिया गया। संदेशखाली की घटना के बाद भी बंगाल में राष्ट्रपति शासन की चर्चा सुनाई देने लगी थी।

      बलात्कार हत्या जैसे घृणित अपराध निश्चित रूप से कहीं भी हों इसकी घोर भर्त्सना की जानी चाहिये। शासन व प्रशासन व विधायिका को मिलकर ऐसे उपाय ढूंढने चाहिये जिससे अपराधियों के हौसले पस्त हों और वे ऐसे अपराधों की जुरअत ही न कर सकें। साथ ही समाज को अपने बच्चों को भी शिक्षित करना चाहिये। परन्तु अफ़सोस तो इस बात का है कि हमारे देश में बलात्कार व हत्या जैसे घिनौने अपराध को लेकर भी 'राजनीति की हांडी ' चढ़ा दी जाती है। राज्य में सरकार किस दल की है,यह देखकर बलात्कार का विरोध किया जाता है। और इससे भी शर्मनाक यह कि बलात्कार पीड़िता का धर्म व उसकी जाति देखकर भी मामले का विरोध व समर्थन निर्धारित किया जाता है। आरोपी /अपराधी के रसूख़ के अनुसार भी उसके साथ बर्ताव किया जाता है। यहाँ तक कि यदि बलात्कार व हत्या का अपराधी बड़ी संख्या में अपने अनुयायी रखता है तो उस पर तो शासन की विशेष कृपा बरसते देखी जा सकती है। ख़ासकर चुनावी बेला में तो ऐसे सफ़ेदपोश अपराधियों को विशेष पेरोल तक दे दी जाती है।

      याद कीजिये गुजरात में 2002 में हुए साम्प्रदायिक दंगों के दौरान बिलक़ीस बानो व उसकी मां के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था तथा उसी समय उनके सामने उन्हीं के परिवार के सात सदस्यों की हत्या भी कर दी गयी थी।  इस लोमहर्षक जुर्म में महाराष्ट्र उच्च न्यायालय द्वारा 11 अपराधियों को आजीवन कारावास की सज़ा दी गयी थी। परन्तु मई 2022 में गुजरात सरकार ने 'अच्छे चरित्र' के आधार पर दोषियों की सज़ा में छूट देते हुये स्वतंत्रता दिवस के दिन इनको रिहा कर दिया था। एक तरफ़ तो भारत सहित पूरे विश्व में गुजरात सरकार के इस क़दम की घोर आलोचना हुई थी। तो दूसरी तरफ़ इन हत्यारे बलात्कारियों को मंच पर सुशोभित किया जाने लगा था। इन्हें फूल माला पहनाकर इन हत्यारे बलात्कारियों का स्वागत किया जा रहा था। इसी आलोचना के दौरान एक विश्व हिन्दू परिषद् के पक्षकार 'विद्वान लेखक ' ने इन हत्यारे बलात्कारियों का पक्ष लेते हुये अपने आलेख को इस आशय के शीर्षक से सजाया था कि -'आख़िर हिन्दुओं को भी तो जीने का अधिकार है ? ' यह तो भला हो सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुयन का जिन्होंने इस मामले में संज्ञान लेते हुये – कहा कि मई 2022 में गुजरात सरकार ने दोषियों की सज़ा में छूट देकर तथ्यों की उपेक्षा की थी। और इसी टिप्पणी के साथ उन्होंने सभी दोषियों को दो हफ़्ते के भीतर जेल प्रशासन के पास हाज़िर होने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने उसी समय यह भी कहा था कि गुजरात सरकार के पास सज़ा में छूट देने और इस बारे में कोई फ़ैसला लेने का अधिकार नहीं है। इस तरह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यह अपराधी पुनः जेल जा सके थे और इन हत्यारे बलात्कारियों के हमदर्दों को अपनी मुंह की खानी पड़ी थी।

      इसी तरह जनवरी 2018 के कठुआ,जम्मू के 8 वर्ष की मासूम असिफ़ा बानो के सामूहिक बलात्कार व उसकी हत्या के समय भी बलात्कार समर्थक इन बेशर्मों चेहरा बेनक़ाब हुआ था। इस घृणित अपराध का साज़िशकर्ता एक रिटायर्ड राजस्व अधिकारी था जोकि उस समय एक स्थानीय मंदिर का पुजारी भी था जहाँ कई दिनों तक उस बच्ची के साथ बलात्कार किया जाता रहा। इस घटना को भी धार्मिक रंग देते हुये स्वयं को हिन्दू हितैषी कहने वाले लोग बलात्कारियों के पक्ष में केवल खड़े ही नहीं हुये बल्कि उनके समर्थन में जुलूस निकाले, प्रदर्शन किये और हाथों में तिरंगा लेकर सड़कों पर उतरे। मणिपुर में महिलाओं के साथ क्या कुछ नहीं हुआ। पूरा विश्व उस घिनौनी ख़बर से हिल गया था जबकि सैकड़ों की भीड़ ने वर्ग विशेष की लड़कियों से नग्न परेड कराई और उनके साथ सामूहिक बलात्कार किये गये। ऐसे अनेक घटनायें मणिपुर में घटीं। उत्तरांचल,मणिपुर राजस्थान,मध्य प्रदेश कहाँ नहीं हो रहा है बलात्कार ? परन्तु क्या मीडिया तो क्या सरकारी तंत्र व विशेष विचारधारा के लोग इन सबको केवल ग़ैर भाजपा शासित राज्यों में ही ऐसे अपराध नज़र आते हैं ? यदि बलात्कारियों व हत्यारों को दलगत अथवा धर्म व जाति के चश्मे से देखा जाने लगा यानी नारी शोषण में भी पक्षपात किया जाने लगा फिर हमारे देश के लिये इससे निंदनीय व शर्मनाक और क्या हो सकता है ? 

                                               (ये लेखक के अपने विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि भारत वार्ता इससे सहमत हो)