गुरु,शिक्षक अथवा अध्यापक का नाम सामने आते ही प्रत्येक विद्यार्थी का शीश उनके आदर में सम्मान से झुक जाता है। आज दुनिया का कोई भी व्यक्ति चाहे वह किसी भी बड़े से बड़े व अति महत्वपूर्ण पद पर विराजमान क्यों न हो उसके जीवन में शिक्षा और ज्ञान की ज्योत जलाने वाला और कोई नहीं बल्कि केवल शिक्षक ही है। यह सच है कि वर्तमान दौर में अन्य क्षेत्रों की ही तरह शिक्षा क्षेत्र का भी ह्रास हुआ है। मंहगाई,आर्थिक व सांसारिक ज़रूरतों आदि ने गुरुओं को भी अपनी आय से भी अधिक धन कमाने के लिये बाध्य किया है। किसी समय में अध्यापकों द्वारा निजी रूप में पढ़ाई जाने वाली ट्यूशन में शामिल होने वाले बच्चों को कमज़ोर छात्र के रूप में देखा जाता था। धनवान परन्तु पढ़ाई में कमज़ोर बच्चे ही ट्यूशन का सहारा लिया करते थे। परन्तु अब तो ट्युशन मानो अनिवार्य सा हो गया है। स्वयं निजी स्कूल्स के संचालक व प्रिंसिपल स्कूल की कक्षाओं में ही स्कूल समय के अलावा बाक़ायदा ट्युशन की क्लास लगाते हैं। सीधे तौर पर यदि कहा जाये तो गोया शिक्षा को भी क्रय-विक्रय की वस्तु बना दिया गया है।
उधर दशकों से सरकारों का रवैय्या भी शिक्षकों के प्रति निराशाजनक व ग़ैर ज़िम्मेदाराना ही रहा है। हमेशा से हम देखते आये हैं कि देश में होने वाले लोकसभा,विधान सभा अथवा स्थानीय ज़िला परिषदीय या नगरीय कोई भी चुनाव हों,ताज़ातरीन कोविड या इसके पूर्व के टीकाकरण अभियान हों,जनगणना जैसा दर दर घूमने वाले जटिल कार्य हों या अब नई नई स्कीम्स के तहत बच्चों के स्कूल्स में ही जलपान या भोजन का प्रबंध, या प्रधानमंत्री की कार्यक्रम 'मन की बात ' को स्कूली बच्चों तक पहुँचाने का व्यवस्थित काम, अक्सर इन जैसे अनेक कार्यों में सरकार शिक्षकों को उलझाये रखती है। इसका सीधा असर बच्चों की पढ़ाई पर होता है जो आगे चलकर इन्हीं बच्चों के भविष्य को भी प्रभावित करता है। दूसरी तरफ़ सरकार के आदेश मानने को बाध्य अध्यापकों का अनैच्छिक रूप से किसी भी ऐसे काम में लगाने से उनका मनोबल भी गिरता है। परन्तु यह देश का दुर्भाग्य है कि शिक्षण की डिग्रियां प्राप्त गोविंद (ईश्वर ) तुल्य गुरु को सरकार के अशिक्षित व राजनैतिक पूर्वाग्रही नेताओं व मंत्रियों द्वारा बनाये गये व बनाये जाने वाले क़ायदे क़ानूनों व निर्देशों का पालन करना पड़ता है। कई बार विभिन्न राज्यों में इन्हीं गोविंद (ईश्वर ) तुल्य आंदोलनकारी गुरुओं को पुलिस की लाठियां खाते भी देखा गया है। गुरु के रुतबे व इसकी महिमा को इस बात से भी समझा जा सकता है कि भारत रत्न ए पी जे अब्दुल कलाम साहब स्वयं यह चाहते थे कि उन्हें पूर्व राष्ट्रपति,मिसाईलमैन या वैज्ञानिक नहीं बल्कि 'अण्णा यूनिवर्सिटी का प्रोफ़ेसर' कहकर बुलाया जाये। कलाम साहब ने जहाँ राष्ट्रपति पद छोड़ने के अगले ही दिन छात्रों की क्लास ली वहीँ उनकी ज़िंदिगी का आख़िरी दिन भी बच्चों की क्लास में ही गुज़रा। लिहाज़ा शिक्षा व छात्रों के प्रति समर्पित सोच रखने के लिये राजनेताओं को कलाम साहब जैसा नहीं तो कम से कम ईमानदार व गंभीर तो होना ही पड़ेगा।
दिल्ली की केजरीवाल सरकार में और आम आदमी पार्टी के नेताओं में तमाम कमियां हो सकती हैं परन्तु शिक्षा के क्षेत्र में केजरीवाल सरकार ने जिस तरह के चमत्कारिक कार्य किये हैं उसकी अनदेखी करना पूर्वाग्रही या पक्षपाती होने के सिवा और कुछ नहीं। दिल्ली के सरकारी स्कूल्स को निजी स्कूल्स के बराबर ला खड़ा करना और कहीं कहीं तो उनसे भी बेहतर भवन,अध्यापक,प्रशिक्षक,मूलभूत सुविधाएँ आदि देकर दिल्ली सरकार ने पूरे विश्व में एक आदर्श स्थापित किया है।दुनिया के अनेक देशों के नेता,मंत्री व अन्य प्रतिनिधि दिल्ली के शिक्षा मॉडल व सरकार के शिक्षा प्रबंधन को देखने व समझने के लिये दिल्ली आ चुके हैं। दिल्ली में शिक्षा के ढांचे को प्रभावी बनाने के लिये स्कूल भवन से लेकर,प्रयोगशालायें,खेल ग्राउंड,प्रशिक्षित योग्य व समर्पित शिक्षक स्टाफ़,आदि सभी ज़रूरी चीज़ों का प्रबंध किया गया है। ग़रीब बच्चों को मुफ़्त शिक्षा का भी प्रबंध है। और अब पंजाब में भी आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद यहाँ भी शिक्षा के स्तर को भी दिल्ली की ही तर्ज़ पर और अधिक सुदृढ़ किये जाने की तैयारी शुरू हो चुकी है। पिछले दिनों पंजाब राज्य के स्कूल्स के 36 प्रिंसिपल्स सिंगापुर से प्रशिक्षित होकर वापस आ चुके हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने यह घोषणा भी की है कि भविष्य में राज्य के शिक्षकों से बच्चों को पढ़ने के अतिरिक्त कोई भी दूसरा काम नहीं लिया जायेगा।
आज देश के प्रत्येक राज्यों को कम से कम शिक्षा के क्षेत्र में आम आदमी पार्टी की सरकारों से सीख लेने की ज़रुरत है। इसके लिये स्पष्ट नीति,पक्के इरादे के साथ साथ शिक्षा को प्राथमिकता के तौर पर महत्व देने की भी ज़रुरत है। आये दिन सरकारी स्कूल्स के बंद करने,शिक्षकों से दर दर भटकने वाले काम कराने, निजी स्कूल्स को बढ़ावा देने,सरकारी स्कूल्स को अभावग्रस्त रखने, रिक्त स्थानों पर शिक्षकों की भर्ती न करने आदि जैसे भ्रष्ट फ़ैसलों या शिक्षा व शिक्षित लोगों से भयभीत होने से तो सरकार व नेताओं की तुच्छ मानसिकता का ही पता चलता है। कुछ राज्यों से यदि शिक्षा व सिलेबस संबंधी कुछ समाचार आते भी हैं तो वह भी स्कूलों में गीता पढ़ाने,कर्मकांडी पुरोहित का पाठ पढ़ाने,सूर्य नमस्कार करने जैसे विवादपूर्ण समाचार सुनाई देते हैं। जोकि शुद्ध रूप से शिक्षा की आड़ में भी साम्प्रदायिकता का कार्ड खेलने के सिवा और कुछ भी नहीं। ज़रुरत है देश के बच्चों को शिक्षा का अधिकार देने की,उन्हें सांसारिक,वैज्ञानिक व भविष्य निर्माण सम्बन्धी शिक्षा देने के साथ साथ आत्म निर्भर बनाने वाली ऐसी शिक्षा देने की जो बच्चों के कैरियर निर्माण के साथ साथ देश को भी आगे ले जाने में सहायक हो। प्रोफ़ेसर कलाम साहब का ही यह कथन भी था कि शिक्षकों को अधिक से अधिक वेतन दिया जाना चाहिये और उनसे केवल शिक्षण सम्बन्धी अधिक से अधिक काम भी लिया जाना चाहिए। परन्तु सवाल यह है कि स्वयं को 'विश्वगुरु की रेस में अग्रणी बताने वाले भारत' में गुरुओं की वास्तविक स्थिति और सरकारों की शिक्षा,शिक्षक व शिक्षण संस्थाओं के प्रति उदासीनता को देखकर विद्यार्थियों के उज्जवल भविष्य की कल्पना आख़िर कैसे की जाये ?