बहाई धर्म पर मजहबी समूहों की मार

           विष्णुगुप्त की कलम से

जहां-जहां बहूलता में इस्लाम है वहां-वहां अन्य धर्मो-अन्य पंथों के सामने अस्तित्व का संकट गहरा होता है, उनके सामने कट्टरता और हिंसा की भीषण चुनौतियां खड़ी होती है। निश्चित तौर पर इस्लामिक बहुलता वाले देशों में गैर इस्लामिक मजहबियों को इस्लाम ग्रहण करने या फिर देश छोड़कर चले जाने का विकल्प दिया जाता है, अन्यथा हिंसा का शिकार होने के तैयार रहने की धमकियां दी जाती है। ये धमकियां सिर्फ धमकियां नहीं होती हैं बल्कि इन धमकियों को सच में बदलने के लिए हिंसा, आतंकवाद सहित अन्य सभी प्रकार के हथकंडे अपनाये जाते हैं। कहने का अर्थ यह है कि इस्लामिक बहलता वाले देशों में अन्य धर्मो और अन्य पंथों के फलने-फूलने का अवसर न के बराबर मिलता है। दुनिया में कोई एक नहीं बल्कि कई ऐसे उदाहरण है जिसमें इस्लाम की बहुलता के सामने अन्य संस्कृतियों का रक्तरंजित विनाश हुआ। इन संस्कृतियों में आर्मीनियां की भी संस्कृति थी, जो दुनिया में कभी प्रेरक मानी जाती थी, कला के अर्थ में सर्वश्रेष्ठ थी। खासकर अफ्रीका महादेश में इस्लामिक बहुलता के समाने ईसाई संस्कृतियां रक्तरंजित हिंसा की चपेट में हैं जहां बोको हरम जैसे आतंकवादी संगठन ईसाई बच्चियों को भी गुलाम बना कर रखने में हिचकता नहीं है। खास बात यह है भी है कि इस्लामिक बहुलता वाले देशों में मानवाधिकार संगठनों की पहुंच, मानवाधिकार संगठनों की सक्रियता सीमित होती है, उन्हें उसी तरह की आजादी हासिल नहीं होती है जैसी आजादी यूरोपीय-अमेरिका देशों या फिर भारत जैसे लोकतात्रिक देशों में होती है। जब मानवाधिकार संगठनों की पहुंच ही नहीं होगी तब मजहबी हिंसा के शिकार संस्कृतियों की आवाज दुनिया में कैसे बुंलद हो सकती है, मजहबी हिंसा की शिकार संस्कृतियों को बचाने की चाकचैबंद कोशिश कैसे होगी?

             अभी-अभी बहाई संस्कृति के संबंध में जो खबरें आयी है, वह काफी चिंताजनक है, दुनिया के सभ्य समाज के सामने गंभीर चुनौती है, दुनिया के मानवाधिकार संगठनों के लिए खतरनाक चुनौती है, दुनिया को नियंत्रित करने वाले नियामकों की भी अग्नि परीक्षा होगी। खासकर वैसे देशों में दुनिया के नियामक कोई खास भूमिका निभाने और मानवाधिकार को सुरक्षित करने में नकाम रहते हैं जो मजहबी तौर पर अराजक, हिंसक और आतंकवादी मानसिकता से ग्रसित देश होते हैं। असफल देश भी अंतर्राष्ट्रीय नियामकों के चार्टरों को खल्लियां उड़ाने में आगे रहते रहते हैं। बहाबी संस्कृति को खतरा मजहबी तौर पर अराजक, मजहबी तौर पर हिंसक और मजहबी तौर आतंकवादी मानसिकता से ग्रसित देशों से ही है। बहाबी संस्कृति उन मजहबी व्यवस्था को स्वीकार नहीं है जो सिर्फ अपने ही मजहब को सर्वश्रेष्ठ समझती है, जो अपने ही मजहब को फलते-फूलते देखना चाहती है। बहाबी संस्कृति सिर्फ एक अराधना में रची-बसी नहीं है। बहाबी संस्कृति बहूलता की संस्कृति में विश्वास करती है, सभी ईशवरों को वह अराधना का प्रतीक मानती है। कहने का अर्थ यह है कि बहाबी संस्कृति कट्टरता, हिंसा और आतंकवादी जैसी मानसिकता से अलग है और वह मानती है कि सभी मजहबों-सभी धर्मो में परस्पर संबंध से यह दुनिया शांति और सदभाव से चल सकती है, यह दुनिया वैचारिक तौर समृद्ध हो सकती है, यह दुनिया घृणा, हिंसा और आतंकवाद जैसी मानसिकता से लड़ सकती है।

बहाबी संस्कृति पर खतरा कितना बड़ा है, बहाबी संस्कृति के खिलाफ साजिश कितनी बडी है, बहाबी संस्कृति के खिलाफ अभियान कोई आतंकवादी मानसिकताओं की देन है क्या , क्या आतंकवादी संगठन इसके पीछे भूमिका को संचालित कर रहे हैं ? जिस मजहबी समुदाय के तरफ से बहाबी संस्कृति पर खतरा उत्पन्न किया जा रहा है, जिस मजहबी समुदाय से बहाबी संस्कृति को खतरा उत्पन्न हुआ है, उस मजहबी समुदाय के मजहबी गुरूओं की कोई भूमिका सामने है क्या? क्या मजहबी गुरूओं को बहाबी संस्कृति के संरक्षण में आगे नहीं आना चाहिए? पर दुर्भाग्य यह है मजहबी गुरूओं की कोई भूमिका सामने नहीं आ रही है, मजहबी गुरू खामोश है, मजहबी गुरू खामोश होकर सिर्फ तमाशा देख रहे हैं। मजहबी गुरू अगर आते और मजहबी संस्कृति के खिलाफ हिंसक, आतंकवादी और घृणास्पद अभियान को लेकर चाकचैबंद अभियान चलाते और बहाबी संस्कृति के खिलाफ हिंसक, आतंकवादी तथा घृणास्पद अभियान को मानवता के खिलाफ बताते तो फिर आतंकवादी, हिंसा, व घृणात्मक मजहबी समूहों को समर्थन मिलना बंद हो सकता है। दुनिया में यह देखा गया है कि मजहबी गुरू आतंकवाद, हिंसा और घृणास्पद मानसिकता के खिलाफ चुप्पी साध लेते हैं, या फिर अप्रत्यक्ष तौर पर समर्थन करने लगते हैं, जिसके कारण दुनिया की शांति और सदभाव खतरे में पड़ जाती है। जबकि सच्चाई यह है कि ऐसे मजहबी समूह खुद आत्मघाती है, खुद बंद मजहबी समूह के वाहक हो जाते हैं, जहां पर ज्ञान और विज्ञान या फिर शांति-सदभाव गौण हो जाता है। क्या यह सही नहीं है कि आतंकवाद, हिंसा और घृणास्पद मानसिकता के अभियान की सबसे बड़ी कीमत इस्लाम के मानने वाले देशों और इस्लाम के मानने वालों ने ही चुकायी है?

              बहाई संस्कृति के खिलाफ हिंसक और घृणास्पद अभियान बड़ा ही वीभत्स और चिंताजनक है। खासकर ईरान में बहाबी संस्कृति को जमींदोज करने के लिए हिंसक और आतंकवादी अभियान जोरो पर है। बहाबी संस्कृति की सक्रियता को अराजक और हिंसक समूहों द्वारा सरेआम नुकसान पहुंचाया जा रहा है। बहाबी संस्कृति की सामूहिक कब्रों को नुकसान पहुचाया जा रहा है। बहाई संस्कृति की सामूहिक कब्रों को सरेआम जमींदोज किया जा रहा है। ईरान में बहाबी संस्कृति की सभी सामूहिक कब्रो को नामोनिशान मिटाया जा रहा है। बहाबी संस्कृति की सामूहिक कब्रो को यह कह कर नष्ट किया जा रहा है कि ये सामूहिक कब्रें इस्लाम के खिलाफ है, इस्लाम की मान्यताओं की खिल्ली उड़ाती है, एक इस्लामिक देश में अन्य पूजा पद्धतियों और अन्य मान्यताओं के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। ईरान में बहाबी संस्कृति के खिलाफ हिंसक और आतंकवादी अभियान को समर्थन भी मिल रहा है। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि ऐसे अभियानों के खिलाफ राज सत्ता सक्रिय नहीं है, बल्कि यह कहना सही होगा कि ईरान का राज सत्ता सिर्फ तमाशबीन बनी हुई है, राज सत्ता कोई कठोर दंड की व्यवस्था नहीं की है। जब राज सत्ता ही तमाशबीन बनी रहेगी, जब राज सत्ता ही अप्रत्यक्ष तौर पर समर्थन में खडी रहेगी तो फिर बहाई संस्कृति को नष्ट होने से कैसे बचाया जा सकता है?

               ईरान एक शिया बहूलता वाला देश है। जब से ईरान में शिया क्रांति हुई है तब से अन्य मजहबी और अन्य धार्मिक समूहों का जीवन संकट मय हुआ है, अन्य मजहबी, अन्य धार्मिक समूहों का विस्तार और सक्रियता सीमित हुई है, उन्हें शिया होने या फिर ईरान छोड देने का विकल्प दिया जाता है। ईरान में जो सत्ता होती है वह शिया बहूलता के सिद्धांत पर खडी होती है और यह भी निर्धारित होता है कि शिया धर्म गुरू ही सत्ता का असली शासक होगा । शिया धर्म गुरू ही आतंरिक और बाहरी नीति-विमर्श तय करता है। कभी ईरान पर राजशाही सत्ता कायम होती थी। राजशाही सत्ता खुलेपन और संस्कृतियों के बीच परस्पर की हमदर्दी होती थी। शिया क्रांति के बाद ईरान एक बंद, अराजक देश में तब्दील हो गया है। ईरान आज अमेरिका से प्रतिबंधों की मार भी झेल रहा है। सबसे बडी बात यह है कि ईरान में शिया राज सत्ता के खिलाफ सुन्नी इस्लामिक समूह भी आतंकवाद के रास्ते पर चल रहा है। सउदी अरब के नेतृत्व में कई सुन्नी इस्लामिक देश ईरान के खिलाफ सक्रिय है, ताल ठोक रहे हैं।

           बहाई संस्कृति के खिलाफ यह अभियान सिर्फ ईरान तक ही सीमित नहीं है। बहाई संस्कति के खिलाफ यह अभियान धीरे-धीरे अन्य इस्लामिक देशों में फैल रहा है। इस्लामिक आतंकवादी संगठनों की भी इसमें अराजक, हिंसक और खतरनाक भूमिका सामिल हो गयी है। बहाई धर्म की स्थापना बहाउल्लाह ने 1863 में की थी। दुनिया के 235 देशों में बहाई धर्म है और इसके मानने वालों की सख्या करीब 60 लाख है। दुनिया के नियामकों, दुनिया के मानवाधिकार संगठनों को आगे आकर बहाई संस्कृति की रक्षा में भूमिका निभानी चाहिए और बहाई संस्कृति को हिंसक मजहबी समूहों से रक्षा करनी चाहिए।

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