साल 1947 के बंटवारे के दरमियान हमारे पूरे देश खासकर पंजाब के लोगों ने हैवानियत की एक विराट झांकी देखी थी| पंजाबियत इससे पहले कभी भी इतने बड़े पैमाने पर बर्बाद और शर्मसार नहीं हुई थी| लाखों मज़लूमों के कत्ल, रेप, अपहरण, लूटपाट, विश्वासघात और जबरदस्ती धर्मांतरण| उस वक्त आखिर हैवानियत का वो कौन सा ऐसा रूप था, जिसको पंजाब के लोगों ने नहीं सहा| पंजाब के अल्पसंख्यकों का दोष सिर्फ इतना था कि वो रेडक्लिफ लाइन की उस दिशा में मौजूद थे जहां पर उन्हें होना नहीं चाहिए था| इन सभी जगहों पर उनका नस्ली सफाया कर दिया गया और इसके नतीजे दहलाने वाले थे| पश्चिमी पंजाब में हिंदू-सिक्खों की गिनती 30 फीसद से कम होकर 1 फीसद हो गई| 5 से 7 लाख लोग पंजाब के दोनों तरफ मारे गए|
बंटवारे की हैवानियत का सबसे बड़ा शिकार पंजाब की अपनी महिलाओं को होना पड़ा| ऐसी हैवानियत कि लिखते हुए हाथ कांप जाए और बोलते हुए ज़बान लरज़ जाए| इस दौरान बिना कपड़ों की औरतों के जुलुस निकालने और कइयों के स्तन काट देने जैसी अमानवीय घटनाएं हुईं| यह सब कुछ पंजाब की सरज़मी पर हुआ, जहां पर सदियों से सिक्ख गुरुओं और सूफी संतों ने मज़हबी सहनशीलता, इंसानियत और दोस्ती की शिक्षा दी थी|
औरतों पर ऐसी हैवानियत की शुरुआत मार्च 1947 के रावलपिंडी के दंगों से शुरू हो गई थी| थोहा खालसा के गांव में हिंदू सिक्ख औरतें दंगाइंयों से अपनी इज़्जत बचाने के लिए कुएं में छलांग लगाकर मर गई थीं| इसके बाद पंडित नेहरू ने खुद इस इलाके का दौरा किया और संत गुलाब सिंह की हवेली में लाशों से भरे इस कुएं को भी देखा| अगस्त, सितंबर और अक्टूबर में पंजाब के हर गांव, हर शहर में अल्पसंख्यक औरतों पर यह कहर बरपाया गया| औरतों के साथ यह सुलूक मध्यकालीन समय के विदेशी हमलावरों जैसा था, लेकिन इसबार ज़ुल्म करने वाले पंजाब की सरजमीं के अपने बाशिदें थे|
जितना जुल्म इन औरतों ने अपने जिस्म पर बर्दाश्त किया, उससे ज्यादा मानसिक तौर पर इन्होंने जुल्म सहा| बंटवारे के दौरान यह अनुमान लगाया जाता है कि करीब 25,000 से 29,000 हिन्दू और सिख महिलाएं अपहरण, बलात्कार, ज़बरदस्ती धर्मांतरण और हत्या का शिकार हुई|
उस वक़्त हैवानियत इतनी हुई कि उसे एक साधारण प्रवृत्ति मान लिया गया. इंसानियत की गुहार को तो एक समझ न आने वाली चीज़ मानकर दरकिनार कर दिया गया था. ऐसे हालात में भी कुछ ऐसे लोग थे जिनके दिल रहम की भावना से बिल्कुल खाली नहीं हुए थे।
पुष्पेन्द्र कुलश्रेष्ठ के फेसबुक वाल से