राजनीति 2024 : अंत में यूपी बीजेपी की डूबती नैया को उबार ले गये योगी

         अखिलेश ने पाया-खोया दोनों, माया फिर खाली हाथ रह गईं

 

    2024 भी इतिहास के पन्नों में सिमट रहा है। यूपी के लिये बीता साल काफी यादगार रहा। सबसे खास बात यही थी कि पांच सौ साल के वनवास के बाद अयोध्या में रामलला अपने मंदिर में विराजमान हो गये। जिसका श्रेय मोदी सरकार को दिया जाता है, लेकिन इस बात से भी  इंकार नहीं किया जा सकता है कि  अयोध्या में रामलाल का भव्य मंदिर बनने के कुछ माह बाद हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी को बुरी तरह से हार का सामना भी करना पड़ा। यहां तक की अयोध्या की लोकसभा सीट भी बीजेपी हार गई,जिसका गम उसे आज भी सताता है। अयोध्या की हार को लेकर विपक्ष बीजेपी को अक्सर तानें मारता रहता है। इस साल हुए आम चुनाव के बाद प्रदेश में भाजपा के सासंदों की संख्या 62 से घटकर 33 पर आ गई इसमें उसके सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल की दो एवं अपना दल एक सीट को भी मिला दिया जाये तो भी यह आकड़ा 36 पर ही पहुंच पाता है, जबकि इंडिया गठबंधन 43 सीटों पर जीत हासिल करने में सफल रहा। इसमें से सपा की 37 और कांग्रेस की 6 सीटें  थी।सपा और कांग्रेस दोनों की जीत का ग्राफ बढ़ा था,लेकिन सबसे बुरा हाल बहुजन समाज पार्टी का रहा जो एक भी सीट नहीं जीत पाई थी।

    खैर,यूपी के दम पर दिल्ली में मजबूती के साथ पैर जमाये बीजेपी का 2024 के आम चुनाव के नतीजों के बाद वर्चस्व कमजोर पड़ गया तो यूपी बीजेपी का भी राष्ट्रीय राजनीति में ओहदा कम हो गया। यही नहीं वाराणसी से दो बार रिकार्ड मतों से जीत कर सांसद बनने वाले पीएम नरेंद्र मोदी का तीसरी बार के चुनाव में जीत का अंतर भी काफी कम हो गया। मोदी को केन्द्र में पहली बार ऐसे गठबंधन की सरकार बनानी पड़ी, जिसमें भाजपा के पास पूर्ण बहुमत नहीं है।यही वजह थी कि लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद महीनों तक समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव और कांग्रेस के नेता बीजेपी और मोदी-योगी सरकार पर हमलावर रहे। साल 2024 को भाजपा के विजय रथ पर ब्रेक और सांसदों की दृष्टि से प्रदेश में 10 साल के बाद भाजपा को दूसरे नंबर की पार्टी बना देने वाले साल के तौर याद किया जाएगा। वैसे इस हार की वजह को कुछ लोग बीजेपी की भीतरी कहल से भी जोड़कर देख रहे हैं।

   हालांकि, साल खत्म होते-होते वोटरों ने कुछ हद तक बीजेपी के आंसू जरूर पोछ दिये। भाजपा गठबंधन ने विधानसभा उपचुनाव की नौ में से सात सीटें जीतकर लोकसभा चुनाव के बुरे अनुभव को काफी हद तक कम कर लिया। भाजपा के लिए 2024 की शुरुआत उम्मीदों के साथ हुई थी। लोकसभा चुनाव की गूंज के बीच रामलला की जन्मस्थान पर प्राण-प्रतिष्ठा हुई। इसके मुख्य यजमान देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बने। स्वतंत्र भारत में पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने देश के बहुसंख्यकों की भावनाओं के सम्मान का सार्वजनिक शंखनाद किया। रामलला के मंदिर निर्माण में मोदी के साथ-साथ योगी आदित्यनाथ ने भी काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

   प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कदम अभूतपूर्व था,इसलिए इसे सोमनाथ की पुनर्प्रतिष्ठा पर पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की आपत्तियों को याद करके समझा जा सकता है। तब पंडित नेहरू ने कार्यक्रम में जाने से मना कर दिया था। साथ ही राष्ट्रपति को भी रोकने की कोशिश की थी। हालांकि, राष्ट्रपति कार्यक्रम में गए,लेकिन वह वहां राष्ट्रपति की हैसियत से नहीं एक भक्त की हैसियत से पहुंचे थे ऐसे में मोदी का पीएम के तौर पर रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में मुख्य यजमान बनना युगांतकारी कदम था।मोदी के इस कदम से ऐसा माहौल बना, जिससे लगा कि मोदी का लोकसभा चुनाव में 400 पार का नारा हकीकत में बदलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। प्रदेश में भाजपा की सीटें ही नहीं घटीं, बल्कि फैजाबाद (अयोध्या) सीट भी भाजपा हार गई। यह भाजपा के लिए बड़ा झटका था। उपचुनाव में विधानसभा की नी सीटों में से सात जीतकर भाजपा ने इसी साल उस झटके के दर्द को कम जरूर कर लिया।

  बहरहाल, यूपी की नौ विधान सभा सीटों पर हुए उपचुनाव में बीजेपी को मिली बड़ी जीत का श्रेय प्रदेश सरकार के मुखिया योगी आदित्यनाथ और कार्यकर्ताओं के साथ उनके सीधे संवाद को दिया। सीएम ने उपचुनावों को चुनौती के रूप रूप में लिया। सारी सीटों के लिए खुद व्यूह रचना की। अगर कहा जाए कि 2024 में जाते-जाते उपचुनाव के नतीजों के जरिये योगी के प्रशासनिक कौशल के साथ संगठनात्मक कौशल का भी प्रमाण दे दिया है ती अतिश्योक्ति नहीं होगी। वैसे खास बात यह भी थी कि लोकसभा चुनाव से इत्तर उप चुनाव में आरएसएस भी पूरी तरह से सक्रिय रहा था। संगठनात्मक दृष्टि से भाजपा के 2024 का लेखा-जोखा रखा जाए तो कोई बड़ा उल्लेखनीय पक्ष नहीं दिखता। हॉ, उप चुनाव के नतीजे आने के बाद योगी का कद जरूर बढ़ गया है।वहीं सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव में जो पाया था उसे उप चुनाव में खो दिया। वहीं बसपा पूरे साल उतार की ओर ही नजर आती रही।

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