संजय राय-
पड़ोसी देश पाकिस्तान अब अपनी ही लगायी आग में झुलसने लगा है। आईएसआई प्रमुख के पद से फैज हमीद को हटाये जाने के बाद प्रधानमंत्री इमरान खान और सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा के बीच तलवारें खिंच गयी हैं। सेना प्रमुख बाजवा इमरान को निबटाने के चक्कर में लग गये हैं। साफ संकेत मिल रहे हैं कि पाकिस्तान 22 साल पहले 12 अक्टूबर 1999 को घटित हुए उस इतिहास को दोहराने के कगार पर पहुंच गया है, जब जनरल परवेज मुशर्रफ ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का तख्तापलट करके सत्ता पर कब्जा जमा लिया था।
नये आईएसआई प्रमुख की नियुक्ति को लेकर बाजवा और इमरान के बीच गंभीर मतभेद पैदा हो गये हैं। 22 साल पहले जनरल मुशर्रफ ने जब नवाज शरीफ को सत्ता से बेदखल किया था तो उस समय भी आईएसआई चीफ को लेकर ही दोनों के बीच गंभीर मतभेद पैदा हुए थे। फिलहाल पाकिस्तान में इस बात की चर्चा तेज हो गयी है कि इमरान खान अब कुछ ही दिनों के मेहमान हैं। सेना प्रमुख बाजवा इमरान खान को प्रधानमंत्री पद से हटाने के लिये अपनी मुहिम में जुट गये हैं। इसके लिये अगर तख्ता पलट भी करना पड़े तो वह पीछे हटने के मूड में नहीं हैं।
बता दें कि इमरान के भारी विरोध के बावजूद सेना प्रमुख ने फैज को इस पद से हटाया गया है। बीते 6 अक्टूबर को सेना की 11वीं कोर का कमांडर बनाकर उनका तबादला पेशावर कर दिया गया है। फैज हमीद उस समय चर्चा में आये थे जब तालिबान के विभिन्न गुटों के बीच सत्ता में भागीदारी को लेकर मचे खूनी घमासान में बीच-बचाव करने के लिये पिछले सितंबर महीने के पहले सप्ताह में वह काबुल के गोपनीय दौरे पर गये थे। लेकिन इस दौरे की पोल-पट्टी खुल गयी और पूरी दुनिया में अफगानिस्तान के बेदखल किये गये राष्ट्रपति अशरफ गनी तथा उप राष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह के उन आरोपों पर मुहर लग गयी कि तालिबान की आड़ में पाकिस्तान उनके देश में सत्ता हथियाने की कोशिश कर रहा है।
नये आईएसआई चीफ की नियुक्ति को लेकर दोनों के बीच टकराव इस कदर बढ़ चुका है कि एक मंच पर दोनों एक साथ बैठकर एक दूसरे से नजर भी नहीं मिला पा रहे हैं। उनके बीच तनावपूर्ण संबंधों की इबारत को उनके चेहरों पर साफ पढ़ा जा सकता है। हाल ही में दोनों एक कार्यक्रम में शामिल हुए थे। उस दौरान उनकी फोटो पाकिस्तान के मीडिया में चर्चा का विषय बनी हुई है। दोनों अलग-अलग दिशाओं में देख रहे हैं। सोशल मीडिया में इसे लेकर बहुत कुछ कहा जा रहा है।
अब यह बात बिलकुल साफ हो गयी है कि अफगानिस्तान में तालिबान की आड़ में हक्कानी गुट को सत्ता पर बैठाने के बाद पाकिस्तान को अब अपनी गलती का एहसास हो रहा है। पाकिस्तान को उम्मीद थी कि अफगानिस्तान की सरकार में हक्कानी समूह के वर्चस्व से उसे तहरीके तालिबान पाकिस्तान यानी टीटीपी को काबू करने में सहायता मिलेगी। पाकिस्तान को यह भी उम्मीद थी कि हक्कानी नेटवर्क अफगानिस्तान में भारत के हितों को भी कम करने में मददगार साबित होगा। लेकिन उसकी उम्मीदों पर अब पानी फिर चुका है।
पाकिस्तान की तरफ से दिये गये पुराने जख्मों और उसकी ताजा हरकतों ने तालिबान और विशेष रूप से हक्कानी नेटवर्क को अब बदला चुकाने का अवसर दे दिया है। दोनों देशों के बीच चालू हुई विमान सेवा बंद हो चुकी है। सड़क मार्ग से होने वाला व्यापार भी ठप पड़ा हुआ है। तालिबान ने डूरंड रेखा को सीमा मानने से इनकार कर दिया है। सीमावर्ती इलाकों में पाक सेना पर तालिबान के हमले तेज हो गये हैं। पाकिस्तान इंतजार कर रहा है कि जब पूरी दुनिया तालिबान सरकार को मान्यता देगी, वह भी तब विचार करेगा।
जहां तक भारत के साथ रिश्तों का सवाल है तालिबान अब इस इंतजार में है कि भारत उसको मान्यता दे और सरकार चलाने में मदद दे। यही वजह रही है कि अभी तक वहां की सरकार की तरफ से भारत के खिलाफ कोई बात नहीं कही गयी है। अगर आने वाले तालिबान सरकार की तरफ से अफगानिस्तान में विकास कार्यों को जारी रखने के लिये भारत के सामने कोई प्रस्ताव आता है तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।
यह स्पष्ट रूप से दिख रहा है कि अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज होने के बाद हक्कानी समूह पाक्रिस्तान की आकांक्षाओं को लेकर न सिर्फ अपने हाथ खडे़ कर चुका है, बल्कि टीटीपी को पाकिस्तान की सेना पर हमला तेज करने के लिये पूरी तरह सहायता भी कर रहा है। इतना ही नहीं, अब तहरीके तालिबान के विभिन्न धड़े एकजुट हो चुके हैं और पाकिस्तान में शरिया कानून लागू करने के लिये सेना पर हमला तेज कर दिया है।
खबर तो यह भी है कि बलूचिस्तान के दो जिलों को पाकिस्तान ने तहरीके तालिबान के हवाले कर दिया है और अब वहां पर शरिया कानून लागू हो चुका है। इसे पाकिस्तान के विखंडन की शुरुआत माना जा रहा है। तहरीके तालिबान के बढ़ते वर्चस्व को रोकने की कोशिश के तहत ही हाल ही में इमरान खान ने बातचीत और हथियार रखने पर आम माफी की बात कही थी। तहरीके तालिबान की तरफ से उनकी इस पेशकश का अब तक कोई जवाब नहीं आया है और न ही आने वाले समय में इसके आने की कोई उम्मीद है। ऐसी खबरें आ रही हैं कि पाकिस्तान के सबसे बड़े राज्य बलूचिस्तान पर कब्जा करने के लिये तहरीके तालिबान को न सिर्फ हक्कानी नेटवर्क का, बल्कि आईएसआईएस का भी भरपूर सहयोग मिल रहा है। पूरा खेल बेहद पेचीदा हो गया है। इस खेल में शामिल खिलाड़ियों को ही पता नहीं चल पा रहा है कि कौन किसके साथ है और कौन विरोध में है। हाथों में बंदूक लिये सब एक दूसरे का शक की नजर से देख रहे हैं।
मिली जानकारी के मुताबिक, बदले हालात को देखते हुए पाकिस्तान ने भी अपनी रणनीति बदल ली है। पाकिस्तान की सेना ने तालिबान में अपने बचे-खुचे समर्थकों और हक्कानी समूह के दुश्मन संगठन आईएसआईएस से हाथ मिला लिया है। अफगानिस्तान की शिया मस्जिदों में पिछले दो शुक्रवार को हुए आत्मघाती बम विस्फोटों की जिम्मेदारी भले ही आईएसआईएस ने अपने ऊपर ली हो, लेकिन जानकारों का कहना है कि इसके पीछे पाकिस्तान का हाथ है। पाकिस्तान इस तरह के हमले करवाकर वहां की सरकार पर दबाव बनाना चाहता है जिससे कि उसके ऊपर टीटीपी की तरफ से बनाया जा रहा दबाव कम हो सके। लेकिन ऐसा होने वाला नहीं है। पाकिस्तान के कट्टरपंथी मौलाना भी तहरीके तालिबान के समर्थन में आ गये हैं। वे खुलेआम शरिया शासन की वकालत कर रहे हैं। आने वाले समय में तालिबान पाकिस्तान में घोर उथल-पुथल करता दिखे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिये।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि पाकिस्तान अब गृह युद्ध के कगार पर खड़ा है। सेना और प्रधानमंत्री के बीच बगावत का बिगुल बज चुका है। इतिहास गवाह है कि इस तरह के विवाद में पाकिस्तान की सेना का पलड़ा हमेशा भारी रहा है। पाकिस्तान में इस समय इमरान खान की सरकार कई सहयोगी दलों के समर्थन से चल रही है। सेना का प्रयास है कि सहयोगी दलों के साथ-साथ इमरान की तहरीके इंसाफ पार्टी के कुछ असंतुष्टों को तोड़कर बगावत की शुरुआत की जाय। इन दिनों महंगाई को लेकर पाकिस्तान की राजनीति में इमरान का विरोध तेज हुआ है। विरोधी दल गोलबंदी कर चुके हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की बेटी मरियम नवाज इस विरोध का केंद्र बिंदु बनी हुई हैं। इमरान से नाराज कुछ करीबी नेताओं ने मरियम नवाज से मुलाकात भी की है। पाकिस्तान में अमेरिका की राजदूत एंजेला अगेलर ने भी पाकिस्तान मुस्लिम लीग के अध्यक्ष शहबाज शरीफ और उपाध्यक्ष मरियम नवाज के साथ हाल ही में अलग-अलग मुलाकात की है। उस समय दोनों नेता लाहौर में ही थे। ये सभी घटनाक्रम यही इशारा कर रहे हैं कि पाकिस्तान में इमरान की कुर्सी को चारों तरफ से खतरा पैदा हो चुका है और सेना किसी भी समय उनको सत्ता से बेदखल कर सकती है। यह देखना रोचक होगा कि इस नये खेल में इमरान अपनी भूमिका कैसे अदा करते हैं।