प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मेरी हार्दिक बधाई कि उन्होंने हमारी फौज को वह करने दिया, जो उसे करना ही चाहिए था। पिछले डेढ़ हफ्ते में मैं चार बार लिख चुका हूं और कई टीवी चैनलों पर कह चुका हूं कि भारत को आतंकवादियों के अड्डों पर तत्काल हमला करना चाहिए था, चाहे वे लाहौर में हों, बहावलपुर में हों, पेशावर में हों, या काबुल में हों या कंधार में हो। यह हमला किसी देश पर नहीं, सिर्फ उसके आतंकी अड्डों पर है। हमारे विदेश सचिव ने क्या खूब शब्दों का प्रयोग किया है। उन्होंने कहा कि यह हमला ‘गैर-फौजी’ हमला है ? वास्तव में यह न तो किसी फौजी निशाने पर था और न ही यह नागरिकों के विरुद्ध था। इसका लक्ष्य और चरित्र अत्यंत सीमित था। यह सिर्फ आतंकियों के खिलाफ किया गया ठेठ तक पीछा (हाॅट परस्यूट) था, जिसे अंतरराष्ट्रीय कानून भी मान्यता देता है। वास्तव में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को इसका मौन स्वागत करना चाहिए था, जैसे कि पाकिस्तान की फौज और सरकार ने उसामा बिन लादेन की हत्या का किया था। लेकिन यह भारत है। अमेरिका नहीं। पाकिस्तान की जनता इमरान को कच्चा चबा डालती। अब इमरान और पाकिस्तान क्या करे ?
परमाणु-शक्ति बनने के बाद यह पहली बार हुआ कि भारत ने आगे होकर कदम बढ़ाया है। दूसरे शब्दों में अब पाकिस्तानी परमाणु-ब्लेकमेल की धमकी भी बेअसर हो गई है। इसीलिए पाकिस्तान की प्रतिक्रिया बहुत ही दिग्भ्रमित लग रही है। यदि विदेश मंत्री कहते हैं कि भारतीय विमान नियंत्रण-रेखा के अंदर बस 2-3 किमी तक आए थे और सिर्फ तीन मिनिट में ही वे डरकर वापस भाग गए तो मैं पूछता हूं कि आपको इतने बौखलाने की क्या जरुरत थी ? पाकिस्तान में आपकी सरकार के लिए शर्म-शर्म के नारे क्यों लग रहे हैं ? संसद का विशेष सत्र क्यों बुलाया जा रहा है ? अपने मनपसंद समय और स्थान पर हमले की बात क्यों कही जा रही है ? जब कुछ हुआ ही नहीं तो बात का बतंगड़ क्यों बना रहे हैं ? जहां तक भारत का सवाल है, इस सीमित और संक्षिप्त हमले का असर भारत की जनता पर अत्यंत चमत्कारी हुआ है। सारे देश में उत्साह का संचार हो गया है।
विरोधी दल भी सरकार की आवाज में आवाज मिलाने को तैयार हो गए हैं। सरकार ने जिन तीन आतंकी केंद्रों पर हमला करके 300 आतंकियों को मार गिराने का दावा किया है, उसके प्रमाण देना वह उचित समझे या न समझे लेकिन यह सत्य है कि उसके हमले से कश्मीर के अंदरुनी और बाहरी आतंकवादियों की हड्डियों में कंपकंपी दौड़ जाएगी। यदि सरकार मेरे उन सुझावों पर भी अमल करे, जो मैंने कश्मीर के अंदरुनी आतंकवाद से निपटने के लिए दिए हैं तो यह निश्चित है कि पाकिस्तान की आतंकवादी ताकते अपने आप पस्त हो जाएंगी। यह मौका है जबकि इस्लामी सहयोग संगठन के सदस्यों से सुषमा स्वराज बात करें और उनसे कहें कि वे पाकिस्तान की सरकार, फौज और जनता से कहें कि इस मामले को तूल देकर युद्ध की शक्ल न दे दें।