
आचार्य श्रीहरि
बद्र खान सुरी प्रकरण को लेकर भारतीय कूटनीति की नींद हराम हुई की नही? नरेन्द्र मोदी को भारत की विदेशों में छवि खराब होने केी चिंता हुई की नहीं? बद्र खान प्रकरण पर भारत की कूटनीति और नरेन्द्र मोदी की नींद जरूर हराम होनी चाहिए। आखिर क्यों? इसलिए कि यह प्रकरण कोई छोटा या फिर खारिज करने वाला नहीं है। यह प्रकरण बहुत ही लोमहर्षक है, विभत्स है और आतंक का प्रतीक ही नहीं है बल्कि भारत की छवि भंजक भी है। हालांकि भारतीय मीडिया ने भी इस पर कोई संज्ञान लेने की जरूरत नहीं समझी। निश्चित तौर पर बद्र खान सुरी प्रकरण पर गंभीरता से विचार नहीं किया गया। अगर इस पर गंभीरता से कार्रवाई नहीं हुई, इस पर सख्त दिशानिर्देश जारी नहीं हुआ तो फिर भारत की छवि विदेशों में खराब होगी, भारत को भी आतंकी देश के रूप में पहचान होगी, भारत को भी आतंकी देश समझ कर विदेशों में घृणा का प्रचार-प्रसार होगा, भारत की भी गिनती भस्मासुरों में होगी, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, सीरिया और लेबनान-सूडान जैसे आतंकी देशों की श्रेणी में भी भारत को रखा जा सकता है। अगर ऐसा हुआ तो इसका दुष्प्रभाव भारत के उन करोडों लोगों पर पडेगा जो अमेरिका और यूरोप में शांतिपूर्ण ढंग से रह रहे हैं और अपना जीवन सुंदर बना चुके हैं, जिनकी अभी तक गिनती सभ्य और शांतिपूर्ण नागरिक के तौर पर होती है और जिनके कंधों पर अमेरिका-यूरोप के विकास और प्रगति का भार है, जिन्होंने अमेरिका और यूरोप के ज्ञान-विज्ञान को एक नया आयाम दिया है। इसके अलावा उन भारतीय छात्रों के लिए भी परेशानियां होगी जो अमेरिका और यूरोप के विश्वविद्यालयों में पढने जाने के इच्छुक है और जहां पर उन्हें रोजगार मिलने की आकंाक्षा होती है। कोई अपने यहां आतंकी और आतंकी समर्थक को संरक्षण देकर अपना आत्मघात क्यों कराना चाहेगा, अपनी खुद की कब्र क्यों खोदवाना चाहेगा?
बद्र खान सुरी प्रकरण क्या है? बद्र खान सुरी है कौन? उसकी पहचान है क्या? बद्र खान सुरी का प्रकरण आतंक से जुडा हुआ है, हमास से जुडा हुआ है, यहूदियों के खिलाफ घृणा से जुडा हुआ है। इस्लाम की काफिर मानसिकता से जुडा हुआ है। कहने का सीधा अर्थ यह है कि वह हिंसक है, वह आतंकी है, वह हमास का समर्थक है, हमास का गुर्गा है, इस्राइल का विरोधी है, फिलिस्तीन का समर्थक है। पर वह न तो फिलिस्तीन का नागरिक है, वह न तो पाकिस्तान का नागरिक है, न तो अफगानिस्तान का नागरिक है, न तो सुडान और लेबनान का नागरिक है, फिर भी उसकी मानसिकता वैसी ही है जो मानसिकता पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, लेबनान, सूडान और सीरिया जैसे आतंकी देशों की होती है। बद्र खान सुरी भारतीय मुस्लिम है और वह अमेरिका के एक विश्वविद्यालय में रिसर्चर है। उसने भारत मे जामिया मिलिया में पढाई की थी। जामिया मिलिया के छात्रो कां आतंकी रूझान सीएए कानून पर कैसा था? यह भी उल्लेखनीय है। शाहीनबाग जिहाद मे जामिया मिलिया के छात्रें की हिंसक भूमिका थी, शाहीनबाग घरने पर बैठने वाले, सडक जाम कर भारत विखंडन की धमकी देने की भूमिका निभाने वाले अन्य छात्रों के साथ ही साथ जामिया मिलिया के छात्र भी थे। जामिया मिलिया के छात्र इस्लामिक नजरिये से ही सीएए कानून देखा था और हिंसक विरोध मे शामिल हुए थे। अगर इस्लामिक नजरिये से हिंसक और कट्टरपंथी कोई छात्र अमेरिका और यूरोप में जायेगा तो फिर क्या करेगा? वही करेगा जो अमेरिका में बद्र खान सुरी ने किया। वह सीधे तौर पर हमास का समर्थक ही नहीं बल्कि हमास का गुर्गा बन गया।
अमेरिका की सुरक्षा एजेंसिंयों की सक्रियता से ही बद्र खान सुरी प्रकरण सामने आया है। अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियां काफी समय से उन सभी विदेशी और देशी छात्रों पर नजर लगाये बैठी थी और जिन पर टैक्नोलॉजी पहरा बैठायी जो विभिन्न अमेरिकी विश्वविद्यालयों में कथित पढाई के आड में हमास, तालिबान और आईएस के लिए ही नहीं बल्कि खूद आश्रय दाता अमेरिका के हितों की कब्र खोदते है। जो बाईडन के कार्यकाल मे तो उदासीनता अपनायी जाती थी और ऐसे मामलों को दरकिनार कर दिया जाता था। लेकिन डोनाल्ड ट्रम्प के आने के बाद अमेरिका की उदासीनता की नीति बदल गयी और भस्मासुरों के प्रति सख्त नीति बन गयी, भस्मासुरों को उनके मूल देश में भेजने और अमेरिकी जेलों में डालने की नीति बन गयी। अब अमेरिका सुरक्षा एजेंसियां दबाव रहित होकर काम कर रही हैं और भस्मासुर विदेशी छात्रों की गर्दन भी नाप रही हैं? इसी का सुखद परिणाम है कि बद्र खान सुरी की गिरफ्तारी और उसका हिंसक तथा आतंकी रूझान का रहस्योघाटन।
बद्र खान सुरी पर आरोप क्या-क्या है? आरोप कितने गंभीर है? यह भी देख लीजिये। अमेरिका की न्याय शाखाएं बहुत ही मजबूत होती हैं और चाकचौबंद होती है। सतही आरोपों पर सजा दिलाना मुश्किल होती है। इसलिए अमेरिकी जांच एजेसियां किसी की गर्दन तभी नापती हैं जब सबूत पुख्ता होता है। बद्र खान सूरी पर आरोप है कि वह हमास के संपर्क में हैं, हमास के लिए काम करता है, हमास के लिए वातावरण फैलाता है, हमास के लिए अफवाह फैलाता है, हमास के लिए धन संग्रह करता है। अगर यह आरोप सही है तो फिर आरोप बहुत ही गंभीर है। क्योकि बद्र खान सुरी जैसों को अमेरिका में पढाई करने के लिए वीजा मिला था न कि अमेरिकी हितों को बलि चढाने के लिए और हमास जैसे आतंकी संगठन के लिए वातावरण बनाने के लिए। सीधे तौर ऐसी श्रेणी के छात्र वीजा नियमों को ही नहीं तोडते हैं बल्कि आश्रयदाता देश के हितों को भी बलि चढाते हैं। अमेरिकी हित क्या है? अमेरिकी हित इस्राइल की सुरक्षा और समृद्धि है। अमेरिका के लिए इस्राइल की दोस्ती बहुत ही जरूरी है क्योंकि इस्राइल एक मजबूत इच्छा शक्ति वाला देश है और जिसकी टैक्नोलॉजी शक्ति भी अमेरिका के लिए जरूरी है। भविष्य के खतरे को भी देखते हुए अमेरिका और इस्राइल दोस्ती जरूरी है।
प्रतिहिंसा को लेकर अमेरिका के विश्वविद्यालयों में महीनों प्रदर्शन हुए थे और हमास-हिजबुल्लाह की हिंसक गीत गाये थे। अमेरिका और इस्राइल के संहार करने का संकल्प लिया गया था। इस्राइल के साथ ही साथ अमेरिका को हिंसक और मानवता विरोधी करार दिया गया था। इन्ही प्रदर्शनों में बद्र खान सुरी ने बढ-चढ कर हिस्सा लिया था, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि हिसंक विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व किया था। ऐसी श्रेणी के हिंसक लोग इस्राइल का विरोध तो करते हैं पर हमास जैसे आतंकी संगठन की हिंसा का विरोध नही करते हैं। हमास ने इस्राइल पर हमला कर दो हजार से ज्यादा लोगों को गाजर-मूली की तरह काट दिया था, यहां तक की बच्चों का खून करने से भी पीछे नहीं हटे थे, गर्भवती महिलाओं के पेट फाड कर बच्चे निकाल कर खुशियां मनायी थी। ऐसी विभत्स दृश्य मानवता के इतिहास को कलंकित करते हैं फिर भी बद्र खान सुरी जैसों को हमास आईकॉन लगता है? मुस्लिम छात्र गैर मुस्लिमों को झांसे में रहकर फिलिस्तीन और हमास समर्थक बना कर अपनी जिहादी मानसिकता को संतुष्ट करते हैं। उदाहरण रंजनी श्रीनिवासन है। रंजनी श्रीनिवासन गैर मुस्लिम है फिर भी इस्राइल विरोधी प्रदर्शनों में शामिल रही और फिर सेल्फ डिपोर्ट की सजा भी पायी। फिलिस्तीन पर मुसलमानो का एकाधिकार भी एक हिंसक प्रश्न है? क्योंकि इस्लाम के आने के पूर्व यहूदियों का धर्म आया था। इस्लाम ने यहूदियों को आक्रमण में पराजित कर फिलिस्तीन पर कब्जा किया था। इस्लाम और यहूदियों के बीच कई लडाइयां हुई थी, यह इस्लामिक इहिासम में दर्ज है।
बद्र खान सुरी जैसों छात्रों पर कोई दया की जरूरत नहीं है। जैसी करनी वैसी भरनी। सख्त सजा मिलनी ही चाहिए। भारत सरकार को अब कार्रवाई करनी ही चाहिए। ऐसे छात्रों पर निगरानी रखनी चाहिए। उनके लिए दिशा-निर्देश की अनिवार्य शर्त लागू होनी चाहिए। अनिवार्य शर्त क्या होनी चाहिए? अनिवार्य शर्त यह होनी चाहिए कि विदेशों में पढाई के दौरान किसी आतंकी के पक्षधर हिंसक प्रदर्शनों में शामिल रहें पढाई करने वाले देश की राष्ट्रीय सुरक्षा और हित के खिलाफ किये या फिर नुकसान पहुंचाये तो फिर पासपोर्ट तो रद्र किया जायेगा, उसके बाद भारतीय विश्वविद्यालयों या फिर भारत की सरकारी नौकरियों में भी जगह नहीं मिलेगी। ऐसी शर्त पर विदेशों में भारतीय हितों और भारत के ज्ञान-विज्ञान की शक्ति की छवि की रक्षा हो सकती है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं, लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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