इस लेख की शुरुवात सहिष्णुता,भाईचारा, सेकुलरिज्म के एक नारे के साथ जो 1989 में कश्मीर में लगाया गया….
असि गछि पाकिस्तान, बटव रोअस त बटनेव सान
अर्थात हमें पाकिस्तान चाहिए. हिंदुओं के बगैर, पर उनकी औरतों और बेटियों के साथ।।
कश्मीर पहले एक हिन्दू बहुल राज्य हुआ करता था कालान्तर में यहाँ के हिंदुओं को धरती निगल गई क्योंकि असली कारण आप हम सभी जानते हैं बस आंखों पर पट्टी बांधे रहते हैं। कश्मीर में आजादी के समय जो बलात्कार और हत्याए हिंदुओं की की गयी उसे लिखूं तो देश में असहिष्णुता की सुनामी आ जायेगी अतः सीधे मुद्दे पर आता हूँ।आजादी के बाद से ही जेहादियों द्वारा सन् 1981 तक कश्मीरी हिंदुओं पर अत्यचार किया जाता रहा और धीरे धीरे वहां 5% हिन्दू बच गए.. अब जेहादियों ने सन 1989 में ये फरमान जारी कर दिया की जो भी मुसलमान नहीं है वो "काफ़िर" है..या तो मुसलमान बनो या कश्मीर छोड़ दो..अपनी वर्षो की कमाई से बनाये मकान और पुरखो का धर्म और जमीन कौन छोड़ता है..वहां बचे हिंदुओं ने सन 1989 में मुसलमान बनने और कश्मीर छोड़ने दोनों से इनकार कर दिया..परिणामस्वरूप जेहादियों ने चुन चुन कर कश्मीरी हिंदुओं को मारना शुरू किया जिसकी कुछ झलकियों से रूह काँप उठेगी..जम्मू में बसे कुछ परिवारों से मैंने बात की जिसकी भयावहता की कहानी सुनकर आप की आत्मा काँप जायेगी.
● इस्लामिक जेहादियों ने लोगो को घर से निकाल कर चौराहे पर गोली मार दी..(1989)
●जिन हिंदुओं ने कश्मीर नहीं छोड़ा उनके स्कूल जा रहे बच्चों को कई हिस्सों में काट कर उनके टुकड़े कश्मीर घाँटी के चौराहे पर लटका दिए गए।।(1989)
● 4 जनवरी 1990 को उर्दू अखबार आफताब में बकायदा खबर छपवाई गई की कश्मीरी हिन्दू कश्मीर दें वरना उनकी हत्या और बच्चियों के बलात्कार किया जाएगा।
● फिर एकअखबार अल-सफा में इसे पुनः प्रकाशित करके धमकी दी गई।
●दो तीन साल की हिन्दू बच्चियों का सामूहिक बलात्कार किया गया और उनकी लाश बंदूक के नोक पर पूरे इलाके में इस्लामिक जेहादियों ने लहराया..(1989-90)
● चौराहों और मस्जिदों में लाउडस्पीकर से हिंदुओं(काफिरों) को कश्मीर छोड़ने के फरमान जारी होने लगे और फिर हत्याओं और बलात्कार का विभत्स दौर शुरू हुआ।
● उस समय कश्मीर में नारे लगते थे हिंदुओं कश्मीर से चले जाओ और अपनी बेटियां हमारे लिए छोड़ दो।
● गिरिजा टिक्कू नाम की अध्यापिका अपने एक मुसलमान मित्र के घर गई और वहाँ से जेहादियों ने उसे उठा लिया। सामूहिक बलात्कार किया और विभत्स यातनाएं दी फिर भी मन नही भरा तो जिंदा ही उसे बिजली से चलने वाली आरे कज मशीन से चीर दिया।
●बी के गंजू नाम के व्यक्ति ने अपने पड़ोसियों पर विश्वास कर लिया कि वो भाईचारा निभाएंगे मगर पड़ोसियों ने आतंकवादियों की सहायता से उनकी गोली मार के हत्या करा दी और उनकी पत्नी को उनके खून से सने चावल खिलाया।
● 14 सितंबर 1989 को स्थानीय हिन्दू नेता पंडित टीका लाल टपलू को भीड़ के सामने ही गोली मार दी गई।
● रिटायर्ड जज नीलकंठ गंजू की हत्या की गई. गंजू की पत्नी को किडनैप कर लिया गया. वो कभी नहीं मिलीं. स्वाभाविक है उनका बजी बलात्कार करके टुकड़े टुकड़े कर के फेक दिया गया होगा।
● 13 फरवरी 1990 को श्रीनगर के टेलीविजन केंद्र के निदेशक लासा कौल की जेहादियों हत्या कर दी गई।
●एक घटना के बारे में कश्मीरी पंडित और अभिनेता अनुपम खेर कहते हैं की उनकी मामी के घर मुस्लिम जेहादियों का नोटिस आया की मुसलमान तो तुम लोग बने नहीं अब या तो कश्मीर छोड़ दो या मरने को तैयार रहो..उन लोगो ने धमकियों पर ध्यान नहीं दिया और धमकी के तीसरे या चौथे दिन उनक एक हिन्दू पडोसी का कटा हुआ सर उनके आँगन में आ के गिरा..इस दृश्य से,उनके पूरे परिवार ने जो सामान उनकी फिएट कार में आ सका,भर के कश्मीर छोड़ दिया।इस घटना के सदमे से अनुपम खेर की मामी आज भी मानसिक रूप से थोड़ी विक्षिप्त हैं..
कश्मीर में हिंदुओं के लिए जो नारे लगते थे वो थे-
●जागो जागो, सुबह हुई, रूस ने बाजी हारी है, हिंद पर लर्जन तारे हैं, अब कश्मीर की बारी है.
●हम क्या चाहते, आजादी.
●आजादी का मतलब क्या, ला इलाहा इल्लाह.
●अगर कश्मीर में रहना होगा, अल्लाहु अकबर कहना होगा.
●ऐ जालिमों, ऐ काफिरों, कश्मीर हमारा है.
●यहां क्या चलेगा? निजाम-ए-मुस्तफा.
●रालिव, गालिव या चालिव. (हमारे साथ मिल जाओ, या मरो और भाग जाओ.)
यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि इसमें से कुछ नारे आजकल जेएनयू के छात्रों का एक वर्ग और कांग्रेसी कम्युनिष्ट भी लगाते हैं।
ऐसी हजारो विभत्स घटनाएं बलात्कार,हत्याएं हुई जिनके बारे में पढ़कर आप की रूह कांप जा रही है तो सोचिये उस पिता का दर्द जिसके सामने उसकी 2 साल की बच्ची का जेहादियों ने बलात्कार किया होगा और पूरे परिवार को मार डाला होगा.. सरकारी आंकड़ो के अनुसार 1990 में लगभग 4 लाख कश्मीरी हिंदुओं ने कश्मीर छोड़ दिया और उनके मकानों पर वहां के स्थानीय जेहादियों ने कब्ज़ा जमा लिया जो आज तक है.. आज वो सभी परिवार जिनका कभी अपना घर था व्यवसाय था आज दिल्ली और जम्मू में बने शरणार्थी कैंपो में 30 सालो से रह रहे हैं..और उनके घरो में जेहादी काबिज हैं…
अब जरा सोचिए आज बात बात पर असहिष्णुता का ढोल पीटने वाले, पुरस्कार वापस करने वाले हरामी, जी हाँ हरामी ही सही शब्द मुझे लगता है, इन्होंने कभी कश्मीरी हिंदुओं पर लिंचिंग, असहिष्णुता,न्याय आदि की बात की?? कभी किसी नीच ने पुरस्कार वापस करना तो दूर इस विभत्स नरसंहार,बलात्कार, पलायन पर दो शब्द विरोध में कहा?? नही ..मगर ये वर्णसंकर औलादें, आज NRC CAA NPR पर छाती कूटते जरूर आपको नजर आ जाएंगे।
इस लेख का आशय किसी समुदाय के खिलाफ किसी को भड़काना नही बल्कि हिन्दू समुदाय को यह बताना था कि आप के साथ पिछले दो तीन दशकों में क्या कहा हुआ और क्या क्या हो सकता है। गए कोई आजादी के पहले या आजादी के समय की बात नही यह आधुनिक भारत में आप के साथ हुआ है। आज भी वो साढ़े चार लाख हिन्दू अपने ही देश में शरणार्थी के रूप में जममज और दिल्ली के कैम्पों में रहते हैं। इंतजार है उन्हें अपने घर लौटने का…अपनी मातृभूमि की मिट्टी को सर से लगाने का……फिर से याद दिला दूं इन सबका अपराध था काफ़िर हिन्दू होना…..
जेहादियों द्वारा नोची गई हर एक बेटी और मारे गए हर एक कश्मीरी हिन्दू को श्रद्धांजलि।।
लेख में लिखी एक एक पंक्ति सत्य है, जिसे सत्यता में संशय हो गूगल या किसी और स्रोत से वेरिफाई कर सकता है।
पुष्पेन्द्र कुलेश्रेष्ठ के फेसबुक वाल से