सजा को भी लालू ने जंगलराज में तब्दील कर दिया लालू की जगह अस्पताल नही, जेल होनी चाहिए

राष्ट्र-चिंतन

आचार्य श्री विष्णुगुप्त

     जातिवादी पार्टी राजद के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को जंगलराज का प्रतीक कहा जाता है। लालू के कार्यकाल में बिहार में कानून नाम का कोई अस्तित्व नहीं रह गया था। हर जगह अराजकता कायम थी, भ्रष्टचार था, हिंसा थी, चोरी-डैकती सरेआम होती थी। चारा घोटाले के तौर पर लालू का भ्रष्टचार जब सामने आया था तब देश में हाहाकार मच गया था और यह प्रश्न खड़ा हुआ था कि अपने आप को गरीबों का मसीहा कहने वाले लालू प्रसाद यादव इतना बड़ा भ्रष्टचारी कैसे बन गया? लालू के भ्रष्टचार पर अब कोर्ट की मुहर लग चुकी है। लेकिन दुर्भाग्य इस बात का है कि लालू ने अपनी सजा को भी जंगलराज में तब्दील कर दिया है और सरेआम कानून का माखौल उड़ा रहे हैं।

     लालू को एक फिर चारे घोटाले में एक और सजा हुई है। इस बार उन्हें पांच साल की सजा हुई और इसके साथ ही साथ 60 लाख रूपये का जुर्माना भी हुआ। इसके पूर्व चार मामलांे में लालू को सजा हो चुकी है। अभी वे जमानत पर थे। आधी सजा काटने और स्वास्थ्य संबंधी कारणों से उन्हें जमानत मिली हुई थी। पाचवें मामले में सजा होने के साथ ही साथ लालू को जेल जाना चाहिए था। पर वे पहले की तरह बीमारी का आधार बना कर अस्पताल में भर्ती हो गये। झारखंड में लालू की गठबंधन सरकार है। लालू की पार्टी राजद गठबंधन सरकार का हिस्सा है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और कांग्रेस की कृपा से लालू कोई एक नहीं बल्कि कई भ्रष्टचार के आरोपों में हुई सजा के बावजूद स्वास्थ्य का आधार बना कर सरकारी अस्पताल की पंचसितारा सुविधाएं लेते रहे हैैं।  आगे भी वे जेल में रहने की जगह अस्पताल में भर्ती रहने के जुगाड़ में सफल होगें।

     विचारण का विषय यह है कि जब लालू जमानत पर होते हैं तब अपनी पार्टी का प्रचार करते हैं। जमानत के दौरान बिहार में हुए विधान सभा के उपचुनाव में उन्होंने प्र्रचार किया था और जन सभाओं को संबोधित किया था। हालांकि उपचुनाव में लालू की करिश्माई छवि का भी कोई चमत्कार नहीं हुआ था और लालू की पार्टी उपचुनाव की दोनों सीटें हार गयी थी। पार्टी संचालन में उनकी भूमिका भी कम नहीं होती है। लालू के दो बेटे हैं। एक का नाम है तेजस्वी यादव और दूसरा का नाम है तेजप्रताप यादव। लालू ने तेजस्वी यादव को अपना उत्तराधिकारी बनाया है, तेजप्रताप से तेजस्वी छोटे हैं। आमतौर पर उत्तराधिकारी बड़े पुत्र को बनाया जाता है। पर तेजप्रताप की राजनीतिक समझ जोकर जैसी है, उनकी हरकतें भी रंग-विरंगी होती हैं। इसलिए लालू ने तेजस्वी को ही उत्तराधिकारी बनाने की समझदारी दिखायी। लेकिन तेजप्रताप को लगा कि उनके साथ अन्याय हुआ है, उत्तराधिकार का परम्परागत अधिकार से उसे वंचित किया गया है तो फिर वे अपने भाई तेजस्वी के खिलाफ बगावत कर दिये। लालू के घर में राजनीतिक घमासान हुआ। जमानत के दौरान लालू अपने घर के राजनीतिक घमासान का प्रबंधन भी किया और अपने बेटे तेजप्रताप को हद में रहने का सीख भी दिया। पटना छोड़कर लालू ने दिल्ली में आसियाना जमाया। बिहार से लोग दिल्ली आकर लालू से राजनीतिक मुलाकातें करते रहे हैं। कहने का अर्थ है कि जमानत के दौरान लालू राजनीतिक तौर पर पूरी तरह से सक्रिय रहे हैं, असक्रिय बिलकुल भी नहीं रहे हैं। राजद के राजनीति प्रबंधन में लालू की ही सक्रियता चलती रहती है।

     लेकिन चारा घोटाले में नयी सजा का ऐलान के बाद से ही लालू प्रसाद यादव की बीमारी शुरू हो जाती है, उन्हें तरह-तरह की बीमारियां घेर लेती हैं। इस सजा के पहले लालू दिल्ली स्थित अपने आवास पर सक्रिय थे। लेकिन आरोप जैसे ही सही साबित होने की अदालती मोहर लगी वैसे ही लालू को जेल भेजने की जगह अस्पताल भेज दिया गया। जब लालू अपने आवास पर ठीक-ठाक थे तो फिर उन्हें जेल ही भेजा जाना चाहिए था। अस्पताल में कभी भी भर्ती नहीं करायी जानी चाहिए थी। अस्पताल में भर्ती कराने का खेल सरकार ही खेलती है। डॉक्टर तो मोहरे होते हैं। डॉक्टर जिस सरकार के कर्मचारी होते हैं उस सरकार के निर्देशों को गुलाम की तरह मानते हैं। बडे और प्रभावशाली लोगों को अस्पताल में भर्ती कराने के लिए डॉक्टरों की टीम खेल करती हैं, यह सर्वविदित तथ्य है।

     लालू को जेल की जगह अस्पताल की पंचसितारा सुविधाएं क्यों मिलती हैं? अस्पताल के वार्ड को भी लालू जैसे भ्रष्ट राजनीतिज्ञ और प्रभावशाली लोग पार्टी कार्यालय क्यो और कैसे बना देते हैं? अस्पताल वार्ड को भी पार्टी दफ्तर में तब्दील करने की अघोषित स्वीकृति क्यों मिलती हैं, इस तथ्य पर उदासीनता क्यो बरती जाती है? अस्पताल से ही लालू ने भाजपा व जद यू के विधायकों को तोड़ने की कोशिश की थी, लालू के फोन कॉल उजागर होने पर हाहाकार मचा था। क्या यह सजा को भी प्रहसन में तब्दील करने का खेल नहीं है? क्या इस तरह के विशेषाधिकार की सुविधा से सजा के खौंफ का ह्रास नहीं होगा? क्या अपराधी और भ्रष्टचारी अपनी करतूतों का बेखौफ अंजाम नहीं देंगे? पर इन सभी प्रश्नों की चिंता किसे है? चिंता जिन नियामको को करनी चाहिए उन नियामकों में ऐसे प्रश्न गौण हो जाते हैं। किंतु-परंतु में ऐसे प्रश्नों पर कोई सबककारी निर्णय और फैसला ही नहीं आता है।

     अगर लालू की जगह किसी आम आदमी को इतनी बड़ी सजा मिलती तो क्या होता? क्या उसे बीमारी का बहाना बना कर अस्पताल में भर्ती होने का अवसर मिलता? क्या उसे अस्पताल में भर्ती करा कर पंच सितारा सुविधाएं देने की करतूत सरकार करती? कदापि नहीं। आम आदमी अगर छोटे से छोटे गुनाह में सजा याफ्ता होता है और वह गंभीर रूप से बीमार होता है तो भी लालू की तरह सुविधाएं नहीं मिलती हैं। जब तक सजा याफ्ता मरनासन्न की स्थिति में नहीं पहुंच जाता है तब तक उसे बड़े अस्पताल को क्या बल्कि जिलास्तरीय अस्पतालों की सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं होती हैं। देश में हर साल कोई एक-दो नहीं बल्कि हजारों सजा याफ्ता कैदी जेल की सलाखों के अंदर अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में मौत को प्राप्त करते हैं।

     सीबीआई बार-बार कहती है कि लालू सिर्फ अपनी सजा का माखौल नहीं उठाते हैं बल्कि जमानत के मान्य परमपरा का भी घोर और शर्मनाक उल्लंघन करते हैं। लालू को जब-जब जमानत देने की बारी आयी थी तब-तब सीबीआई ने जमानत का विरोध किया था। हाईकोर्ट में लालू और झारखंड सरकार के खिलाफ याचिका भी दायर हुई थी। हाईकोर्ट की टिप्पणियां भी आयी। फिर भी लालू की पार्टी की गठबंधन सरकार अपनी पैंतरेबाजी नहीं छोड़ी। लालू को राज्य के सबसे बड़े अस्पताल में पंचसितारा सुविधाएं उपलब्ध कराने का खेल आगे भी जारी रहेगा।

    सीबीआई ने अथक मेहनत की है। अपनी छवि के विपरीत जाकर सीबीआई ने चारा घोटाले की अभियुक्तों की गर्दन नापी है। लालू ने सीबीआई जांच रूकवाने की पूरी कोशिश की थी। सीबीआई जांच के खिलाफ बिहार में लालू की पार्टी ने बडे पैमाने पर अभियान चलाया था और आंदोलन किया था। लालू के लोगों ने तब कहा था कि पिछड़े होने के कारण लालू को फंसाया गया है, सीबीआई आरोप मढ़ रही है। लेकिन सीबीआई ने कड़ी मेहनत कर लालू सहित सभी अभियुक्तों को सजा दिलायी है। कोर्ट के फैसलें में व्यक्त बातें यह प्रमाणित करती हैं कि चारा घोटाले की साजिश कितनी गहरी थी, भ्रष्ट लोगों की गिरोह बाजी कितनी करतूत वाली थी। स्कूटर पर गाय, साढ़ लाद कर लाते हुए दिखाये गये थे और चारे स्कूटर से भी धोये गये थे।

      लालू एक विचाराधीन कैदी नहीं है, लालू एक सजा याफ्ता कैदी है। कारा संहिता के अनुसार सजा याफ्ता कैदी को परिश्रम भी करना होता है। क्षमता और प्रतिभा के अनुसार परिश्रम तय होते हैं। लालू की उम्र अधिक है, इसलिए सश्रम कारावास की सजा में कारा अधीक्षक अपने अधिकार का प्रयोग कर छूट दे सकते हैं। पर जेल की जगह अस्पताल की पंच सितारा सुविधाएं लालू को दी जायें, यह अस्वीकार होनी जाहिए। अगर इसी तरह की सुविधाएं मिलती रही तो फिर अपराधियों और भ्रष्टचारियों के बीच सजा का कोई खौंफ नहीं होगा। अपराधी और भ्रष्टचारी यही समझेंगे कि सजा होगी भी तो वे पंचसितारा सुविधाओं का लाभ लेकर सजा को माखौल बना डालेंगे। लालू ने निश्चित तौर पर अपनी सजा को भी जंगलराज में तब्दील कर दिया है।

 

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