फ़िलिस्तीन से लेकर लेबनान तक इज़राईली सैन्य आतंक निरंतर अपना क़हर बरपा कर रहा है। अपने हथियारों और ताक़त के नशे में चूर अमेरिका संरक्षित इज़राईली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू युद्धोन्माद में इतने अंधे हो चुके हैं कि उन्होंने न केवल युद्ध के सभी नियमों,नीतियों व सिद्धांतों को किनारे रख दिया है बल्कि वे दुनिया के उन देशों की भी परवाह नहीं कर रहे जो वर्तमान युद्ध में समय समय पर इस्राईल को आइना दिखाने की कोशिश करते हैं। इतना ही नहीं बल्कि नेतन्याहू किसी सलाह देने वाले देश या उसके नेता को भी बड़ी आसानी से अपने दुश्मनों की लाइन में खड़ा कर देते हैं। यहाँ तक कि किसी अंतर्राष्ट्रीय संस्था या संगठन की आलोचना या सलाह की भी परवाह नहीं करते। और नेतन्याहू के इसी ज़िद्दी स्वभाव ने हालात अब यहाँ तक पहुंचा दिए हैं कि अब इज़राईली सेना यानी आईडीएफ भी अब नेतन्याहू की मानवता विरोधी युद्ध नीति से ऊब चुकी है और ग़ज़ा व लेबनान में और अधिक ख़ून की होली खेलने के बजाये इन दोनों ही जगहों पर अब युद्ध विराम करने के लिये प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू पर दबाव बनाना शुरू कर चुकी है। ग़ौर तलब है कि ग़ज़ा व लेबनान में भारी नरसंहार का कलंक झेल रही आईडीएफ़ पहले भी युद्ध से बाहर निकलने व युद्ध विराम करने की पक्षधर रही है परन्तु हर बार प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के युद्धोन्माद व उनकी ज़िद व प्रतिशोधात्मक रवैय्ये के चलते अब तक युद्ध विराम संभव नहीं हो सका है।
ग़ौर तलब है कि वर्तमान इज़राईल-हमास युद्ध गत वर्ष यानी 7 अक्टूबर 2023 को उस समय शुरू हुआ था जब हमास के लड़ाकों ने इज़राइली नागरिक समुदायों और कई इज़राईली सैन्य ठिकानों पर अचानक एक बड़ा हमला कर दिया। इस हमले के दौरान 1,195 इज़रायली सहित अनेक विदेशी नागरिक भी मारे गए थे । इसके अलावा, 251 इज़रायली और विदेशियों को ग़ज़ा में बंदी बना लिया गया। हमास इस हमले से इज़राईल पर यह दबाव बनाना चाहता था कि इज़रायल की जेलों में बंद फ़िलिस्तीनी क़ैदियों व बंदियों को रिहा कराया जा सके। इज़राईल पर हमास द्वारा किया गया यह हमला फ़िलिस्तीन पर इज़रायल के निरंतर क़ब्ज़े , ग़ज़ा की नाकेबंदी, इज़राईली बस्तियों के अनाधिकृत विस्तार, इज़रायल द्वारा लगातार की जा रही अंतरराष्ट्रीय क़ानून के अवहेलना, साथ ही अल-अक़्सा मस्जिद और फ़िलिस्तीनियों की सामान्य दुर्दशा के जवाब में भी था। परन्तु इज़राईल ने 7 अक्टूबर 2023 के हमास के हमलों के जवाब में 27 अक्टूबर से हमास पर पहले हवाई फिर ज़मीनी हमले करना शुरू कर दिया। इस इज़राईली सैन्य कार्रवाई का मक़सद हमास का सफ़ाया करने के साथ साथ इज़राईली बंधकों को मुक्त कराना भी था। परन्तु 13 महीने से इज़राईल द्वारा किये जा रहे अब तक के सबसे बड़े नरसंहार के बावजूद इज़राईल अभी तक अपने दोनों में से किसी भी लक्ष्य को हासिल नहीं कर सका है। न ही हमास का ख़ात्मा हो सका न ही 251 में से शेष बचे 101 बंधकों को हमास के चंगुल से रिहा करवा सका। जबकि युद्धोन्माद में डूबे प्रधानमंत्री नेतन्याहू के इशारों पर की जा रही विनाशकारी बमबारी में अब तक ग़ज़ा में 40,000 से अधिक फ़िलिस्तीनी मारे जा चुके हैं, जिन में अधिकांश महिलाएं व बच्चे हैं। लाखों लोग बेघर हो चुके हैं। इसके अलावा इज़रायल की कड़ी नाकाबंदी ने ग़ज़ा में जारी बुनियादी ज़रूरी सामग्री की आपूर्ति चेन को भी काट दिया है। हद तो यह है कि इस्राएइली सेना ने ग़ज़ा के बुनियादी ढांचों पर हमले कर वहां की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली सहित सभी आवश्यक सेवाओं को भी नष्ट कर दिया है। स्कूल,शरणार्थी शिविर,मीडिया,अस्पताल,बाज़ार यहाँ तक कि युद्ध प्रभावित लोगों को सहायता पहुँचाने वाले अंतराष्ट्रीय संगठनों के लोगों को भी आई डी एफ़ द्वारा निशाना बनाया जा रहा है।
अर्थात इज़राईल द्वारा हमास के ख़ात्मे और उसके क़ब्ज़े में मौजूद बंधकों की रिहाई के नाम पर हर वह अत्याचार किया जा रहा है जोकि अंतर्राष्ट्रीय युद्ध मानकों का सरासर उल्लंघन है। और जब कोई इज़राईल या अमेरिका का सहयोगी देश नेतन्याहू को आईना दिखने की कोशिश करता है तो नेतन्याहू उसे अपमानित करने या खरी खोटी सुनाने में भी देर नहीं लगाते। उदाहरण के तौर पर फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन ने ग़ज़ा में इज़राईल द्वारा किये जा रहे जनसंहार से ऊब कर जब गत 7 अक्टूबर को हमास द्वारा इज़राईल पर किए गए हमले की पहली वर्षगांठ से पूर्व यह कहा है कि -'युद्धरत पक्षों के बीच "राजनीतिक समाधान" तक पहुंचने के लिए इज़रायल को हथियार देना बंद करना ज़रूरी है। उन्होंने जब यह कहा कि -"मुझे लगता है कि आज प्राथमिकता यह है कि हम एक राजनीतिक समाधान पर लौटें। हम ग़ज़ा में लड़ने के लिए हथियार देना बंद करें।" तो नेतन्याहू को राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन की यह सलाह इतनी नागवार गुज़री कि वे मैक्रोन से ख़फ़ा हो गए। और उन्होंने मैक्रोन को उल्टी सीधी सुना डाली। नेतन्याहू ने मैक्रोन के बयान को अपमानजनक बताते हुये कहा कि- " राष्ट्रपति मैक्रोन और अन्य पश्चिमी नेता अब इज़राईल के ख़िलाफ़ हथियार प्रतिबंध लगाने का आह्वान कर रहे हैं। उन पर शर्म आनी चाहिए।" यहूदी राष्ट्र उनके समर्थन के साथ या बिना जंग जीतेगा। युद्ध जीतने के बाद उनकी शर्मिंदगी लंबे समय तक जारी रहेगी।" यही नहीं बल्कि इज़राईली मीडिया ने अपने एक कार्टून में राष्ट्रपति मैक्रोन को हसन नसरुल्लाह का अगला उत्तराधिकारी तक बता दिया।
इसी तरह कभी संयुक्त राष्ट्र संघ की शीर्ष अदालत, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय इज़राइल को लेकर यह कहती है कि फ़िलिस्तीनी क़ब्ज़े वाले क्षेत्रों में इज़राइल की मौजूदगी ग़ैर क़ानूनी है, इसे समाप्त किया जाना चाहिए। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय कहता है कि “इज़राइल द्वारा पश्चिमी तट और यरुशलम में बसने वालों का स्थानांतरण तथा इज़राइल द्वारा उनकी उपस्थिति बनाए रखना, चौथी जिनेवा संधि के अनुच्छेद 49 के विपरीत है।” इतना ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय अदालत इस बात के लिये भी “गंभीर रूप से चिंतित है कि इज़राइल द्वारा इस क्षेत्र में अपनी नई बस्ती बसाने की नीति का विस्तार किया जा रहा है। इसी अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में दक्षिण अफ़्रीक़ा ने यह दावा भी किया है कि ग़ज़ा में इज़राइल का अभियान 'नरसंहार' के बराबर है। इसी तरह संयुक्त राष्ट्र संघ भी इज़राइल के युद्ध अभियान की आलोचना कर चुका है। परन्तु हमास सहित अपने सभी प्रतिद्वंदियों को आतंकवाद की धुरी बताकर प्रतिशोध की आग में जलता इज़राइल अपने हथियारों व अमेरिकी सरपरस्ती के बल पर आख़िर ख़ुद कितना आतंक फैला रहा है ? पूरा विश्व इस बात को लेकर आश्चर्यचकित है कि बड़े अंतराष्ट्रीय विरोध का सामना करने के बावजूद आख़िर इस्राईल, इस क़द्र बेलगाम क्यों है ?