प्रेम व सद्भाव का प्रतीक बना होली का त्यौहार

    भारत की सांझी गंगा यमुनी तहज़ीब का दर्शन कराने वाला होली का त्यौहार न केवल शांन्ति  से गुज़र गया बल्कि इस बार की होली प्रेम व सद्भाव की ऐसी मिसाल पेश कर गयी जिसने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि यह देश सांझी संस्कृति व सांझे त्योहारों का देश है। यह देश अनेकता में एकता की मिसाल पेश करने वाला देश है। यह देश हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई आदि सभी धर्मों व समुदायों में परस्पर एकता की मिसाल पेश करने वाला देश है। दरअसल इस बार का होली का त्यौहार देश के अमन पसंद लोगों के लिये कई कारणों से चिंता का सबब बना हुआ था। सबसे पहली बात तो यह थी कि केंद्र से लेकर देश के कई महत्वपूर्ण व बड़े राज्यों में उस भारतीय जनता पार्टी की सरकारें हैं जिनके अनेक नेता समाज में बेरोकटोक ज़हर घोलते आ रहे हैं। कई नेता ऐसे भी हैं जिन्हें नफ़रत फैलाने के लिये 'पुरस्कार ' स्वरूप मुख्य मंत्री,मंत्री व उपमुख्य मंत्री जैसे पद नवाज़े गये हैं। इससे प्रेरित होकर कई आधारहीन नेता भी अपने 'सफल व उज्जवल ' राजनैतिक भविष्य की ख़ातिर साम्प्रदायिकता का खुला कार्ड खेल रहे हैं। और कोई भी ज़हरीला व विवादित बयान देकर रातों रात सुर्ख़ियों में छा जाते हैं।  दूसरी बात यह कि होली से ठीक पहले जिस तरह औरंगज़ेब व संभल की जुमा मस्जिद विवादित विषयों व उत्तर प्रदेश के एक पुलिस अधिकारी के आपत्तिजनक बयान को लेकर देश के आग लगाऊ दलाल मीडिया ने देश के वातावरण में नफ़रत का ज़हर घोलने की कोशिश की और साथ ही उत्तर प्रदेश के उस पुलिस अधिकारी के विवादित बयान को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का समर्थन भी मिला उन सब के मद्देनज़र शांतिप्रिय देशवासियों का चिंतित होना स्वाभाविक था।

               उधर गत 15 मार्च यानी होली के दिन ही मुसलमानों के पवित्र त्यौहार रमज़ान महीने में पड़ने वाले शुक्रवार यानी जुमा का दिन भी था। जुमे की नमाज़ को मुसलमानों में ख़ास अहमियत दी जाती है ख़ासकर रमज़ान माह के जुमे की तो और अधिक अहमियत होती है। यह दोनों यानी होली और जुमा (शुक्रवार ) एक साथ पड़ने से लोगों के दिलों में और भी डर बैठा था कि सत्ता से जुड़े नफ़रती चिंटुओं की बदज़ुबानी उनकी गंदी व ज़हरीली मंशा, नफ़रती मीडिया की जुगलबंदी के साथ कहीं देश के ख़ुशनुमा माहौल को साम्प्रदायिकता की भेंट न चढ़ा दे। लोगों में डर था की होली जैसे अबीर व गुलाल उड़ाने के रंग बिरंगे त्यौहार में कहीं रंग की जगह भंग न घुल जाये। और पूरा देश टकटकी लगाये सुबह से शाम तक होली और जुमे के संयुक्त आयोजन पर नज़रें जमाये बैठा रहा। और होली व जुमा जैसे आयोजनों के शांतिपूर्ण तरीक़े से संपन्न होने की दुआयें मांग रहा था।  

           बावजूद इसके कि शाहजहांपुर,संभल,बरेली,अलीगढ़ व अमरावती जैसी कुछ जगहों से उपद्रवी लोगों द्वारा उकसावे की कुछ कार्रवाई ज़रूर की गयी। मस्जिदों के सामने आपत्ति जनक गाने बजाये गये। परन्तु रोज़दारों ने सहनशीलता का परिचय दिया और शहर दंगों की आग में झुलसने से बच गया। परन्तु देशभर में कुल मिलाकर आख़िरकार देश की सांझी तहज़ीब का परचम लहराया। और जिस होली और जुमे को देश के कई संवेदनशील हिस्सों में हिंसा व दंगे फ़साद की संभावना जताई जा रही थी उसी होली ने इस बार प्रेम सद्भाव व भाईचारे की ऐसी मिसाल पेश की जो शायद पहले कभी नहीं देखी गयी। होली व जुमे के बाद दोपहर से ही सोशल मीडिया पर भाईचारे की मिसाल पेश करने वाले जो दृश्य सामने आने शुरू हुये उन दृश्यों ने एक बार फिर यह प्रमाणित कर दिया की नफ़रत के सौदागरों की लाख कोशिशों के बावजूद देश के आम लोग सिर्फ़ अमन शांति सद्भाव व भाईचारा चाहते हैं। बिहार व उत्तर प्रदेश सहित विभिन्न प्रदेशों के कई शहरों से लेकर गत वर्षों दंगों की शिकार हो चुकी दिल्ली के विभिन्न इलाक़ों के जो दृश्य सामने आये वह हमारी सांझी तहज़ीब व सांप्रदायिक सद्भाव के जीवंत दस्तावेज़ थे। 

             प्रयागराज/इलाहाबाद जहाँ पिछले दिनों कुंभ आयोजन के दौरान मची भगदड़ के बाद स्थानीय मुसलमानों ने अपनी मस्जिदें,मुस्लिम शिक्षण संस्थान,दरगाहों ,इमामबाड़ों व अपने घरों के दरवाज़े परेशानहाल परदेसी कुंभ श्रद्धालुओं के लिये खोल दिए थे। उसी शहर के होली मनाने वाले हिन्दू भाई नमाज़ के दौरान अपना डी जे व व हर्षोल्लास को न केवल विराम देते नज़र आये बल्कि मुस्लिम नमाज़ियों के साथ उनका सुरक्षा कवच बनकर खड़े रहे। जबकि अन्य कई शहरों से मुसलमानों द्वारा होली खेलने वालों रंग बरसाने की ख़बरें आईं। अनेक जगहों पर नमाज़ियों पर हिन्दू भाइयों द्वारा फूलों की वर्षा कर उन्हें होली से जोड़ने व जुमे की बधाई देने का प्रदर्शन किया गया। और कई जगहों से तो हिन्दू मुसलमानों के एक साथ होली के रंग में सराबोर होने के भी समाचार प्राप्त हुये। इस तरह के चित्र व विडिओ पहले भी आते रहे हैं परन्तु इसबार तो कुछ ज़्यादा ही भाई चारा नज़र आया। इसकी वजह यही थी कि आम लोग नफ़रती सत्ताधीशों के एजेंडे को क़तई स्वीकार नहीं करते। इसमें भी कोई शक नहीं कि देश की जनता के इस अमनपसंद रुख़ को भांप चुकी पुलिस व स्थानीय प्रशासन ने भी शांति व्यवस्था बनाये रखने में अपनी निष्पक्ष व सद्भाव पूर्ण भूमिका निभाई।

               दरअसल यह वह देश है जहां अनेक हिन्दू रमज़ान में रोज़े व मुहर्रम में ताज़िया रखते व मातमदारी करते दिखाई देते हैं,जबकि तमाम मुसलमान गणेशोत्सव मनाते व होली खेलते दिखाई देते हैं। आज देश में अनेक दरगाहें,पीरों फ़क़ीरों की मज़ारें व इमामबाड़े पूरी आस्था के साथ हिन्दुओं की देखरेख में चलाये जा रहे हैं। इसी देश की सांझी तहज़ीब की झलक नज़ीर अकबराबादी की उस शायरी में नज़र आती है जिसमें वह लिखते हैं -गुलज़ार खिले हों परियों के और मजलिस की तैयारी हो। कपड़ों पर रंग के छींटों से ख़ुश-रंग अजब गुल-कारी हो।। मुंह लाल,गुलाबी आँखें हों,और हाथों में पिचकारी हो। उस रंग-भरी पिचकारी को अंगिया पर तक कर मारी हो।। सीनों से रंग ढलकते हों तब देख बहारें होली की।। और नज़ीर अकबराबादी ही यह भी लिखते हैं कि – 'मियां तू हमसे न रख कुछ ग़ुबार होली में। कि रूठे मिलते हैं आपस में यार होली में। मची है रंग की कैसी बहार होली में। हुआ है ज़ोर-ए-चमन आश्कार होली में। अजब यह हिन्द की देखी बहार होली में॥ इसी तरह हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के मुरीद और शायर अमीर ख़ुसरो ने सूफ़ियाना परंपरा से बसंत और होली मनाने की शुरूआत की। ख़ुसरो का यह कलाम आज भी  होली के दिन निज़ामुद्दीन औलिया की मज़ार पर पढ़ा जाता है।  आज रंग है, ऐ मा रंग है री, मोरे महबूब के घर रंग है री। मोहे पीर पायो निज़ामुद्दीन औलिया, जब देखो मोरे संग है री।।

                       इसतरह के दस्तावेज़ इस बात के प्रमाण हैं कि भारतीय त्यौहार दरअसल धार्मिक कम सामाजिक व भारतीय त्यौहार अधिक हैं। यही वजह है कि इस बार का होली का त्यौहार देश व दुनिया के लिये प्रेम व सद्भाव का प्रतीक बन गया। आशा की जानी चाहिये कि ऐसी ही शांति व सद्भाव हमारे देश में हमेशा बना रहेगा और ज़हरीले बोल बोलने वाले राजनेताओं के मंसूबों पर हमेशा पानी फिरता रहेगा।

                                                          
                   

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