हिन्दू पर्व-त्यौहार बन गये लव जिहाद के आधार

 हिन्दू महिलाएं की कृपा से चलती हैं मुस्लिमों की रोजी-रोटी
 

आचार्य विष्णु श्रीहरि 
 

     यह सच्चाई सिर्फ दिल्ली की नहीं है, यह सच्चाई बडे-बडे सभी जगहों की है। छोटे-छोटे कस्बों की है। करवा चौथ पर मैं दिल्ली घूमा और बाजार का आकलन कियां। हर जगह करवा चौथ करने वाली महिलाएं और लड़कियों की भीड लगी हुई थी। मेंहंदी लगाने की होड लगी हुई थी। पहले महिलाएं और लडकिया सिर्फ हाथों पर ही मेंहदी लगवाते थी, पर अब शरीर कोने-कोने में मेंहदी लगवाती हैं। हाथ के अलावा, पैर, गले के साथ ही साथ चेहरे पर भी मेंहदी लगवाती है। करवा चौथ ही नहीं बल्कि हिन्दुओं के हर पर्व-त्यौहार पर  महिलाएं और लड़कियां मेंहदी जरूर लगवाती हैं। गरीब से लेकर मध्यम वर्ग की महिलाएं मेंहदी पर नहीं बल्कि अन्य श्रृंगार पर एक मोटी रकम खर्च करती हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि पर्व-त्यौहार हिन्दुओं का और रोजीरोटी चलती है, थैली भरती है, बैरोजगारी दूर होती है, साजिशें कामयाब होती हैं, मजहबी जिहाद और काफिर मानसिकताएं मुसलमानों की पूरी होती हैं। यह कहना सही होगा कि मुस्लिमों के घरों में समृद्धि की जो रोशनी जलती हैं उसकी कृपा के पीछे हिन्दू महिलाओं का ही योगदान होता है। हिन्दू महिलाएं बिना भेदभाव के मुस्लिमों को रोजगार देती हैं।

       हिन्दू लडकियों और महिलाओं को मेंहदी कौन लगाता है? किससे चूड़ी पहनती हैं हिन्दू महिलाएं? अन्य श्रृंगार की वस्तुएं किससे खरीदती हैं हिन्दू महिलाएं? हिन्दू लडकियां और महिलाएं किसकी जेब गर्म करती हैं, किसकी वहशी इच्छाएं पूरी करती हैं? इस पर कभी विचार किया है आपने। कोई भी शोध कर देख ले। शोध का परिणाम सिर्फ और सिर्फ मेरे कथन के रूप में ही बाहर आयेंगे। मेंहदी लगाने वाले मुसलमान होते हैं। सिर्फ मुस्लिम लडकियां ही नहीं बल्कि मुस्लिम मर्द और मुस्लिम युवक भी होते हैं। खासकर बीस साल से लेकर 30 साल के उम्र समूह के मुस्लिम युवक होते हैं। इस उम्र वर्ग के मुस्लिम युवकों को इसके लिए खास तौर पर तैयार किया जाता है, उन्हें पैसे देकर प्रशिक्षित किया जाता है और गिरोहबंदी कर मेंहदी लगाने के लिए साजिश की जाती है, तैयार किया जाता है। आखिर क्यों? इसके पीछे बहुत बडी साजिश है, जिसे अधिकतर मूर्ख हिन्दू समझते नहीं है। इस साजिश के पीछे इस्लामिक जिहाद है, मुस्लिम आतंकवादी संगठनों की करतूतें हैं और भारत को एक इस्लामिक देश के रूप में तब्दील करने की नीति है।

     इससे मुस्लिम जिहादियों की दो इच्छाएं पूरी होती हैं और उनकी दो साजिशें भी कामयाब होती हैं। एक तो मुस्लिमों की झोली भरती हैं, उन्हें इतना पैसा मिल जाता है, जितना पैसा वे महीनों परिश्रम कर कमाई नहीं कर सकते हैं। आप इनकी कमाई का अंदाजा नहीं लगा सकते हैं। सिर्फ दिल्ली मे ही करवा चौथ के दिन दो हजार करोड़ की कमाई होती है। करवा चौथ के दिन मेंहदी लगवाने की सबसे कम रेट पांच सौ रूपये होता है, जो गरीबों का रेट है, थोडी धनी महिलाएं तो मेंहदी लगवाने पर पांच-पांच हजार रूपये तक खर्च करती हैं। सबसे धनी हिन्दू महिलाएं तो दस से पचास हजार रूपये तक खर्च करती हैं। करवा चौथ पर इस प्रकार से मुसलमान हजारों करोड़ रूपये प्रति साल कमाते हैं।

     आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि करवा चौथ और अन्य हिन्दू पर्व त्यौहार भी लव जिहाद का आधार है। करवा चौथ और अन्य पर्व त्यौहारों पर मेंहदी लगवाने के लिए मुसलमानो के पास जाने वाले अधिकतर कम उम्र की महिलाएं और लडकिया होती हैं। चूंकि मुस्लिम लडके कम उम्र के होते हैं और स्टाइलिस भी होते हैं। मुस्लिम युवक उल्टे-सीधे कपडे पहनेंगे, बाल का स्टाइल अजीब रखेंगे, चेहरे पर चमकीलें पदार्थो का रंगरोगन कर रखेंगे। मुस्लिम युवक अपनी ऐसी उल्टे-सीधे कपडे क्यों पहनते हैं, बाल का स्टाइल अजीब क्यों रखते हैं, अपने चेहरे पर चमकीले पदार्थों का रंगरोबन क्यों करते हैं? इसके पीछे भी उनका एक मकसद और एक लक्ष्य होता है, वह मकसद और लक्ष्य हिन्दू महिलाओं और हिन्दू लडकियो को अपनी ओर आकर्षित करना और उन्हें अपनी ओर खींचना। मुस्लिम युवकों की आपराधिक करतूतें भी स्पष्ट है। मुस्लिम युवक मेहदी लगाने के दौरान महिलाओं और लडकियों की शरीर को भी उतेजित करते हैं, उनकी कई क्रियाए ऐसी होती हैं जो लडकियो की प्राकृतिक सहजता को प्रभावित करती हैं और सेक्स उतेजना को भी जगा देती हैं। इस दौरान और इस परिस्थिति में मुस्लिम युवक हिन्दू लडकियों से संपर्क नंबर ले लेते हैं और अपने जाल में फंसा भी देते हैं। इस प्रकार बहुत सारी लडकियां ही नहीं बल्कि कम उम्र की महिलाएं भी मुस्लिम युवकों के जाल में फंस जाती हैं। इसके बाद का खेल तो आप जानते ही हैं।

     निश्चित तौर पर करवा चौथ सहित सभी पर्व त्यौहार मुस्लिमों के लिए लव जिहाद का आधार बन गये हैं। दशहरा पर्व का भी हाल जान लीजिये। दशहरा पर्व पर गरबा खेल का परिचलन बढा है। गरबा खेल लड़के-लडकियां मिलकर खेलते हैं। इस खेल में मुस्लिम युवक नाम बदल कर प्रवेश कर जाते हैं। जिन मुस्लिमों को जयश्रीराम के नारे से आक्रोश आता है, उनका जिहाद जाग उठता है, उनकी हिंसक मानसिकाएं उग्र और आक्रामक हो जाती है, वे मुस्लिम दशहरा के अवसर पर गरबा खेलने क्यों पहुंच जाते हैं? इसके पीछे उनका लव जिहाद ही लक्ष्य होता है। इस हरकत पर मुस्लिम युवकों को जगह-जगह पर सबक भी मिला है फिर भी उनकी ऐसी हरकतें बाज नहीं आती हैं। हेंयर किंग जावेद हबीब ने एक हिन्दू महिला के बालों पर बार-बार थूका था, उसका वीडीओ जब सामने आया तब स्पष्ट हुआ कि जावेद हबीब का गिरोह भी लवजिहाद का बदबूदार उदाहरण है। जब जावेद हबीब जैसा विख्यात मुस्लिम लव जिहाद के मामले में कुख्यात है तो फिर मेंहदी लगाने वाले, और चूडी पहनाने वाले मुस्लिम युवकों की बात ही अलग है।

     इसके लिए दोषी कौन है? क्या सिर्फ मुस्लिम जिहादी ही दोषी हैं? मुस्लिम जिहादी तो अपनी काफिर मानसिकताओं का पोषण करते हैं, अपनी काफिर मानसिकताओं के कर्तव्य का निर्वाह्न करते हैं। कुरान में काफिर महिलाओ को अपनी दूसरी, तीसरी, चौथी बीबी बनाने, रखैल बनाने का आदेश है, ऐसा प्रयोग आईएस नामक मुस्लिम आतंकवादी संगठन ने इराक और सीरिया जैसे मुस्लिम देशों में कर चुके हैं। लेकिन सर्वाधिक दोषी हिन्दू पति और हिन्दू बाप ही हैं जो अपने पत्नियों और बेटियों को ऐसे मुस्लिम जिहादियों से मेंहदी लगवाने, हेयर कटवाने या फिर चेहरे के रंगरोबन कराने से रोकते नहीं हैं, उन्हें दुष्परिणामो से अवगत नहीं कराते हैं। हिन्दू इस प्रकार का आत्मघाती उदासीनता जान बुझ कर ढोता है।  किस महिला के पति और किस लडकी के बाप को यह ज्ञान नहीं है कि मेरी पत्नी और मेरी बेटी अगर मुसलमान से महेंदी लगाने जायेगी तोे क्या होगा, वह कैसे नहीं मुसलमान के दूसरी, तीसरी और चौथी बीबी बनेगी, कैसे नहीं लव जिहाद की शिकार बनेगी, आधार बनेगी। सभी जानकारी होने के होने के बाद भी हिन्दू अपने पत्नियों और बेटियेां को मुसलमानों से मेंहदी लगवाने भेजते हैं, उन्हें इसका दुष्परिणाम तो तब सामने नजर आता है जब पत्नियां और बेटिया किसी मेहदी वाले या फिर किसी कबाडी वाले, किसी हेयर कटिंग वाले, किसी चूडी वाले के साथ भाग जाती हैं और लव जिहाद की शिकार बन जाती हैं।

      हिन्दू महिलाओं और हिन्दू लडकियों ने सनातन को कितना शर्मसार किया है इसका अंदाजा शायद आप लोगों को नहीं होगा। हिन्दू लडकियों को मुसलमानों की दूसरी, तीसरी और चौथी बीबी बनने में शर्म नहीं आती हैं, उन्हें टुकडे टुकडे होकर बोरा में डलने का डर भी नहीं होता है। मां-बाप के साथ ही साथ सनातन को भी शर्मसार करती हैं। हजारों ऐसी घटनाएं सामने आ चुकी हैं जिसमें पढी-लिखी हिन्दू लडकियां मेंहदी वाले, चूडी वाले, हेंयर कटिंग वाले और दरगाह वाले मुसलमानों के चक्कर में फंस कर अपना जीवन बर्बाद कर देती हैं और एक दिन ऐसा भी आता है जब वैसी लडकियों के टुकडे-टुकडे शरीर बोरे में मिलती हैं।

     मुसलमानों को भी रोजीरोटी कमाने का अधिकार है, इस अधिकार से उन्हें वंचित नहीं किया जा सकता है। लेकिन रोजीरोटी के आड में मुसलमानों को लव जिहाद करने, उन्हें काफिर मानसिकता को पुष्ट करने आदि की छूट क्यों मिलनी चाहिए? जिससे आपकी रोजी रोटी चलती है उसके प्रति सत्यनिष्ठा तो दिखानी ही चाहिए। पर मुस्लिम जिहादी इस अवधारणा को आत्मसात करने से तो रहें। मुस्लिम जिहादियों के ऐसे सिद्धांत बेअर्थ ही होंगे।

     अपने पर्व त्यौहारों को मुस्लिमों की तिजोरी भरने के लिए लडकियों और महिलाओं को प्रेरित मत कीजये, लव जिहाद का आधार बनने के लिए छूट मत दीजिये। हिन्दू धर्म से जुडे लोगों का चुनाव कीजिये। इस संबंध में हिन्दू संगठनो के भी हाथ बंधे हुए हैं। क्योंकि सेक्युलर सिद्धांत से ग्रसित हिन्दू ही हिन्दू एक्टिविस्टों के खिलाफ खडे हो जाते हैं। जिस प्रकार से खानपान को लेकर मालिक का नाम लिखने का कानून बन रहा है उसी प्रकार से मेंहंदी लगाने वाले, चूंडी पहनाने वाले और अन्य श्रृंगार बेचने वाले का नाम भी लिखा होना आवश्यक किया जाना चाहिए। फिर हम ऐसी स्थिति में करवा चौथ और अन्य हिन्दू त्यौहारो को मुस्लिमो की तिजोरी भरने और उनके लव जिहाद को कैसे रोक पायेंगे?

                                        (लेखक वरिष्ठ पत्रकार है और ये लेखक के अपने विचार हैं)