हरियाणा : स्वास्थ्य कर्मियों की हड़ताल-मरीज़ बेहाल

     राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन एनएचएम के लगभग 16 हज़ार कर्मचारी,गत 26 जुलाई से अपनी 11 सूत्रीय मांगों को लेकर प्रदेशव्यापी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं। स्वास्थ्यकर्मियों की इस राजयव्यपी हड़ताल के कारण हरियाणा के सरकारी अस्पतालों में मरीज़ों को इलाज में काफ़ी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। ख़ास तौर पर अस्पतालों में प्रसव,एनीमिया कार्यक्रम, टीकाकरण, एंबुलेंस सेवा, कैंसर मरीज़ों की जांच, गर्भवती पंजीकरण ,फ़िज़िओथ्रैफ़ी तथा ज़रूरी जांच सेवायें कुछ ज़्यादा ही प्रभावित हुई हैं । इस हड़ताल के चलते कई शहरों के अस्पतालों में तो लेबर रुम, नर्सरी, केएमसी यूनिट, रेफ़रल ट्रांसपोर्ट, मेंटल हेल्थ, स्कूल हेल्थ, टीबी व आयुष विभाग की सेवाओं को पूरी तरह से बंद ही कर दिया गया है। हरियाणा के एनएचएम कर्मचारी, स्टाफ़ नर्स, फ़ार्मासिस्ट से लेकर चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी तक अपनी मांगों को लेकर प्रदेशव्यापी धरने पर बैठे हैं। आंदोलनकारी एनएचएम स्वास्थ्य कर्मियों ने चेतावनी दी है कि यदि हरियाणा सरकार एनएचएम कर्मचारियों की समस्याओं के समाधान हेतु शीघ्र सार्थक पहल नहीं करती तो राज्य की स्वास्थ्य सेवाएं और भी बिगड़ सकती हैं।कर्मचारियों द्वारा भविष्य में इस आंदोलन को और भी अधिक तेज़ किये जाने की चेतावनी दी गयी है। यह वही स्वास्थ्य कर्मी हैं जिन्होंने कोरोना काल में अपनी जान की परवाह किये बिना दिन रात एक कर कोरोना मरीज़ों के बीच काम करने का साहस जुटाया था.उस समय सरकार ने उनके सम्मानार्थ दिल्ली व अन्य कई जगहों पर हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा कराकर उनकी मेहनत व हौसले को मान्यता प्रदान की थी। आज उन्हीं कर्मचारियों का अपने व अपने परिवार के भविष्य को लेकर अपनी जायज़ मांगों को लेकर संघर्ष करना पड़ रहा है।

      राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन  की स्थापना 12 अप्रैल, 2005 को विशेष रूप से महिलाओं, बच्चों और समाज के कमज़ोर वर्गों की स्वास्थ्य आवश्यकताओं को संबोधित करने और किफ़ायती, सुलभ और गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिए की गई थी। इसके बाद राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन, (एनयूएचएम) मई 2013 में शुरू किया गया था और एनआरएचएम के साथ ही अतिव्यापी राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के उप-मिशन के रूप में सम्मिलित था।इसका मक़सद भी स्वास्थ्य देखभाल वितरण प्रथाओं में नवाचारों, राज्यों के लिए बेहतर स्वास्थ्य परिणामों और स्वास्थ्य संकेतकों के लिए मज़बूत निगरानी और मूल्यांकन घटक के साथ राज्यों को लचीला वित्तपोषण जैसी कई अद्वितीय प्रथाओं को प्रोत्साहित करना था। वैसे तो इनकी सेवाओं की अनेक उपलब्धियां हैं। परन्तु कुछ उपलब्धियां उल्लेखनीय हैं। जैसे इनके परिश्रम के परिणामस्वरूप ही हरियाणा में जो लिंगानुपात 2013-14 में 668 था वह 2022-23 में 909 तक पहुंच गया। इसी तरह 2013 -14 में जो नवजात मृत्यु दर औसतन 26 थी वह 2022-23 तक 19 तक आ गयी। इसी प्रकार 2013 -14 में जो मातृ मृत्यु दर 127 थी वह 2022-23 में घटकर 110 तक पहुंचा दी। राज्य को पोलियो मुक्त बनाने में एनएचएम कर्मियों की अहम भूमिका रही। बाढ़ में दवा बांटना हो या भोजन, एनएचएम कर्मियों द्वारा हर जगह भरपूर सेवाएं प्रदान की गयीं। सरल पोर्टल पर जन्म मृत्यु का डेटा रखने में इनकी अहम भूमिका है। रक्दान शिविरों के आयोजन में भी एनएचएम कर्मियों द्वारा अपना भरपूर योगदान दिया जाता है।

      ऐसे अनेक आंकड़े हैं जो इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिये काफ़ी है  कि देश को स्वस्थ रखने में एनएचएम कर्मियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। परन्तु अफ़सोस तो इस बात का है कि इनकी सेवाएं स्थाई न होने के चलते राज्य के स्वास्थ्य की चिंता करने वाले इन्हीं स्वास्थ्यकर्मियों का अपना व इनके परिवार का भविष्य असुरक्षित है। जबकि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) कर्मियों ने सरकार के स्वास्थ्य सम्बन्धी निर्धारित मिशन को पूरा करने में कोई कसर बाक़ी नहीं छोड़ी। और आज मजबूरन इन्हें राजयव्यपी हड़ताल पर जाना पड़ा है। आज क़रीब 16 हज़ार  एनएचएम कर्मचारी नियमितीकरण, 7वें वेतन आयोग, एलटीसी का भुगतान, मेडिकल लीव, कैशलेस बीमा, ईएल/सीएल, पुरानी तबादला नीति को लागू करने जैसी मांगों को लेकर हड़ताल पर हैं। गत 5 अगस्त को तो इन एनएचएम कर्मचारियों ने अन्नदान करते हुए एक दिवसीय भूख हड़ताल की तथा हाथों में मेहंदी लगाकर अपना अनूठा रोष व्यक्त किया। उधर ख़बर है कि हरियाणा सरकार सख्त रवैया अपनाने की तैयारी में है।ख़बरों के अनुसार सरकार द्वारा कर्मचारियों के सेवा नियमों को तुरंत प्रभाव से फ़्रीज़ करने के आदेश दिए गए हैं।  राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की ओर से कहा गया है कि अब नियमों के तहत सात दिनों तक ड्यूटी पर अनुपस्थित रहने वाले कर्मचारियों को बर्ख़ास्त किया जाएगा। इस आदेश के बाद एनएचएम के हड़ताल पर बैठे कर्मचारियों में और रोष पैदा हो गया है। एनएचएम आंदोलन के पदाधिकारियों ने इसके जवाब में कहा है कि अगर उनके हितों के साथ सरकार ने खिलवाड़ किया और सर्विस बायलॉज को फ़्रीज़ करने की एडवाइज़री को वापस नहीं लिया, तो वे अपने हितों की रक्षा के लिए इस लड़ाई को और तेज़ कर देंगे। एनएचएम सांझा मोर्चा के पदाधिकारियों ने कहा कि-'नियमावली हमने भी पढ़ी है और हम अपनी मांगों के पूरा होने तक ना हड़ताल ख़त्म करेंगे और ना कोई कर्मचारी ड्यूटी पर वापस जाएगा'।

     सवाल यह है कि जब 2022 में भाजपा शासित मणिपुर राज्य ने जहां 2600 एनएचएम कर्मचारियों को नियमित किया गया, जबकि हरियाणा में भी भाजपा की सरकार है।  परन्तु हरियाणा सरकार केंद्र के प्रस्ताव और मणिपुर सरकार द्वारा एनएचएम कर्मचारियों के सम्बन्ध में लिये गये फ़ैसले पर अमल करने को तैयार नहीं दिखाई दे रही है। शायद ऐसा इसलिए है क्योंकि यह कर्मचारी केंद्र सरकार के तहत आते हैं। और केंद्र सरकार द्वारा इनके नियमितीकरण के लिए कोई नीति निर्धारित नहीं की गई है? यही वजह है कि गत 24 वर्षों से ये कर्मचारी अनुबंध पर ही सेवाएं दे रहे हैं। और अभी तक इन कर्मचारियों के नियमितीकरण के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया है। दूसरी तरफ़ ख़बर है कि पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश द्वारा मणिपुर पॉलिसी पर अध्ययन करने के आदेश दे दिए गये हैं। हिमाचल की कांग्रेस सरकार द्वारा मणिपुर पॉलिसी लागू करने के लिए पूर्ण प्रयास किया जा रहा है जिसका लाभ जल्द ही एनएचएम कर्मचारियों को मिलने की उम्मीद है। अब चूँकि हरियाणा में शीघ्र ही चुनाव भी होने वाले हैं ऐसे में राज्य सरकार के सामने भी चुनौती है कि वह चुनाव पूर्व चल रहे इस आंदोलन को किस तरह अंजाम तक पहुंचाती है। फ़िलहाल सरकार और एनएचएम से जुड़े स्वास्थ्य कर्मियों की रस्साकशी के चलते राज्य में मरीज़ ज़रूर बेहाल हो रहे हैं।