जो सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाएं भारत में चलने वाली घूसखोरी पर नजर रखती हैं, उनके ताजा आकलन चौंकाने वाले हैं। उनका मानना है कि घूसखोरी कम या खत्म होने की बजाय लगातार बढ़ती चली जा रही है। देश के 62 प्रतिशत लोगों ने स्वीकार किया है कि उन्हें किसी न किसी रुप में घूस देनी पड़ी है। हमारे शहरी परिवार हर साल 2 लाख 12 हजार करोड़ रु. घूस देते हैं और ग्रामीण परिवार 2 लाख 25 हजार करोड़ रु. देते हैं। बड़ी सड़कों पर चलने वाले ट्रक ड्राइवर ही 22 हजार करोड़ रु. घूस खिलाते हैं। सबसे ज्यादा घूस पुलिस वालों को देनी पड़ती है। यह भी आप मानेंगे कि हर घूस देने वाले की इतनी हिम्मत नहीं होती कि वह यह कुबूल करे कि उसने घूस दी है या वह देता है, क्योंकि घूस देने वाले ज्यादातर लोग वे ही होते हैं, जो या तो अपने गलत काम करवाते हैं या कानून की गिरफ्त में आने से बचना चाहते हैं। सही काम करवाने के लिए भी घूस देनी पड़ती है लेकिन ऐसा कम ही होता है।
यह ठीक है कि जबसे भाजपा सरकार केंद्र में आई है, बोफर्स-जैसी घूसों की एक भी खबर नहीं फूटी है लेकिन नेताओं के द्वारा खाई जाने वाली घूसों से आम जनता का कोई सीधा संबंध नहीं होता। जो घूस अफसर, बाबू, पुलिस, आयकर, बिक्रीकर अधिकारी खाते हैं, उसमें जरा भी कमी नहीं हुई है। बल्कि वह बढ़ गई है। जनता बेहद परेशान है। उसे समझ में नहीं आता कि इस मामले में मोदी सरकार बिल्कुल भी आगे क्यों नहीं बढ़ पाई? उसे कोई सफलता क्यों नहीं मिल रही है? उस वादे का क्या हुआ कि ‘न तो खाऊंगा और न ही खाने दूंगा’?
घूसखोरी में शत प्रतिशत काले धन का इस्तेमाल होता है। इसके अलावा शायद ही कोई ऐसा धंधा है, जिसमें सौ फीसदी लेन-देन इतने भरोसे और पूर्ण विश्वास के साथ होता है। इस ‘अति पवित्र’ धंधे में सजा भी बहुत कम लोगों को मिलती है। सीबीआई ने पिछले पांच साल में घूस के 3296 मामले पकड़े लेकिन सिर्फ 169 को सजा हुई। शेष लोग प्रमाण के अभाव में छूट गए। कुछ घूसखोर घूस खिलाकर छूट गए। जब तक जनता खुद गलत काम करवाने से परहेज नहीं करेगी, घूसघोरी चलती रहेगी। लोगों को प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि वे न तो घूस देंगे, न लेंगे। इसके अलावा घूस को संगीनतरीन जुर्म घोषित किया जाना चाहिए और कुछ घूसखोरों को मौत की सजा भी दी जानी चाहिए। फिर देखिए कि कौन बंदा घूस लेता है?