गाँधी जयंती (2 अक्टूबर )हेतु विशेष
भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की जन्मतिथि 2 अक्टूबर को उन्हें याद किया जाता है। पूरा विश्व गांधीवाद व गांधी दर्शन का इसीलिये क़ायल है कि उन्होंने दुनिया को सत्य व अहिंसा के साथ साथ सर्वधर्म समभाव के मार्ग पर चलते हुये विश्व की बड़ी से बड़ी शक्ति से संघर्ष करने की प्रेरणा दी थी । मार्टिन लूथर किंग से लेकर नेल्सन मंडेला और बराक ओबामा तक न जाने कितने नेता हैं जो गांधी जी को अपना आदर्श मानते रहे हैं। दुनिया के किसी भी देश में आज जब युद्ध विरोधी, शान्ति व अहिंसा की बातें होती हैं तो बड़े से बड़े नेता गांधी दर्शन को ही याद करते हैं। यही वजह है कि विश्व के 70 से भी अधिक देशों में शांति के इस महान पुजारी की एक या अनेक प्रतिमाएं स्थापित कर उन्हें सम्मान भी दिया गया है। उन देशों के लोग गांधी से प्रेरणा लेते हैं। यहाँ तक कि विश्व में जब कहीं कोई शांति मार्च निकलता है तो लोग गांधी की तस्वीरों व उनके सद्भावपूर्ण संदेशों से युक्त बैनर जुलूस के आगे लेकर चलते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि यह भारत का सौभाग्य है कि इतने महान विचारों वाला व्यक्ति हमारे देश में पैदा हुआ। सारी दुनिया भारत को गांधी के देश के रूप में ही जानती है।
आज जबकि विश्व का बड़ा हिस्सा युद्ध,हिंसा, परस्पर मतभेद, बेरोज़गारी, महंगाई,साम्प्रदायिकता जैसे तनावपूर्ण वातावरण के दौर से गुज़र रहा है। पूरा विश्व बाहरी व भीतरी तौर पर राजनैतिक वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहा है, ऐसे में ख़ास तौर पर गांधी जयंती के अवसर पर हर बार चिंतकों द्वारा यह सवाल उठाया जाता है कि गांधी के सत्य व अहिंसा के सिद्धांत पर आधारित उनके दर्शन और विचारों की आज कितनी प्रासंगिकता महसूस की जा रही है ? सितम्बर, 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित किया था। उस समय प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि -'यह अवसर इसलिये भी महत्वपूर्ण है कि इस वर्ष हम महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मना रहे हैं।' उस समय प्रधानमंत्री मोदी ने जहाँ और कई मुद्दे उठाये थे वहीं उन्होंने भारत का शांति-अहिंसा का संदेश प्रमुख रूप से विश्व को दिया था। संयुक्त राष्ट्र महासभा जैसे वैश्विक मंच से शांति का संदेश देते हुए उन्होंने कहा था कि -' हमने दुनिया को शांति का पैग़ाम दिया। संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में सबसे बड़ा बलिदान अगर किसी देश ने दिया है, तो वह देश भारत है। हम उस देश के वासी हैं जिसने दुनिया को युद्ध नहीं बुद्ध दिये हैं, शांति का संदेश दिया है'। गोया बुध और गांधी के शांति के संदेश ही ऐसे हैं जिनपर प्रत्येक भारतवासी गर्व करता है।
परन्तु इस दुर्भाग्यपूर्ण सत्य से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि भले ही पूरा विश्व इस 'महात्मा' के समक्ष नतमस्तक होता हो ,उन्हें अपना आदर्श व प्रेरणास्रोत मानता हो परन्तु गांधी व गांधीवाद का विरोध करने वालों में और किसी देश के लोग नहीं बल्कि अधिकांशतया: केवल भारतवासी ही शामिल हैं। संकीर्ण मानसिकता रखने वालों,साम्प्रदायिकता वादियों ने गांधी को व उनके के विचारों की प्रासंगिकता को तब भी महसूस नहीं किया था जबकि वे जीवित थे। गांधी से असहमति के इसी उन्माद ने उनकी हत्या तो कर दी परन्तु आज गांधी के विचारों से मतभेद रखने वाली उन्हीं शक्तियों को भली-भांति यह महसूस होने लगा है कि गांधी अपने संकीर्ण व साम्प्रदायिकतावादी विरोधियों के लिए दरअसल जीते जी उतने हानिकारक नहीं थे जितना कि अपनी हत्या के बाद साबित हो रहे हैं। और इसकी वजह केवल यही है कि जैसे-जैसे विश्व हिंसा, आर्थिक मंदी, भूख, बेरोंज़गारी और नफ़रत जैसी नकारात्मक परिस्थितियों का सामना करता जा रहा है व इनमें उलझता जा रहा है, वैसे-वैसे दुनिया को न केवल गांधी के दर्शन याद आ रहे हैं बल्कि विश्व को गांधी दर्शन को आत्मसात करने की आवश्यकता भी बड़ी शिद्दत से महसूस होने लगी है।
दूसरी तरफ़ पिछले एक दशक से गाँधी के देश भारत में ही उन्हें अपमानित करने यहाँ तक कि सार्वजनिक रूप से खुलकर गालियां देने वालों की संख्या भी दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है । भारतीय संसद में ऐसे लोगों का प्रवेश हो चुका है जो गाँधी को अपमानित करते हैं और उनके हत्यारे नाथू राम गोडसे व उसके वैचारिक सहयोगियों का महिमामंडन करते हैं। ऐसा इसीलिये है कि वर्तमान सत्ता उन्हें प्रश्रय देती है। ये लोग प्रायः सत्तारूढ़ दल के ही सदस्य या समर्थक हैं। आजतक गाँधी को अपमानित करने व गोडसे का महिमामंडन करने यहां तक कि उसे राष्ट्रवादी बताने वालों के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की गयी। और तो और भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अधयक्ष और देश के वर्तमान गृह मंत्री अमितशाह ने भी जून 2017 में रायपुर(छत्तीसगढ़ ) के मेडिकल कॉलेज में आयोजित बुद्धिजीवियों की एक सभा में जब गाँधी जी को याद किया तो उनके शब्द यह थे – "महात्मा गांधी बहुत चतुर बनिया था, 'उसको' मालूम था कि आगे क्या होने वाला है। उसने आज़ादी के बाद तुरंत कहा था, कांग्रेस को बिखेर देना चाहिए।" इस तरह की शब्दावली का प्रयोग करने वाले नेता की पार्टी के ही एक सांसद ने पिछले दिनों लोकसभा में जब एक मुस्लिम सांसद को घोर आपत्तिजनक बातें कहीं और उस पर साम्प्रदायिक व आपराधिक टिप्पणियां कीं तो उसी कांग्रेस पार्टी के सांसद राहुल गांधी उस पीड़ित सांसद के आंसू पोछने उनके निवास पर गये। यह कांग्रेस व गांधीवादी सोच ही थी जिसने राहुल गांधी को भेजकर सांत्वना देने को विवश किया। और वह गोडसेवादी विचार थे जो उस सांसद के मुंह से निकलते दुनिया को सुनाई दिये।
बहरहाल,पिछले दिनों महात्मा गांधी की वैश्विक स्वीकार्यता एक बार फिर पूरे विश्व ने देखी और महसूस की जबकि जी 20 देशों के शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए दिल्ली आए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक,ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज़,कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो,संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस, विश्व बैंक के अध्यक्ष अजय बंगा, विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेड्रोस एडनॉम, एशियाई विकास बैंक के अध्यक्ष मासात्सुगु असाकावा, आईएमएफ़ की प्रबंध निदेशक क्रिस्टालिना जॉर्जीवा सहित लगभग सभी राष्ट्राध्यक्ष महात्मा गाँधी को श्रद्धांजलि देने के लिए उनकी समाधि स्थल राजघाट पहुंचे। इन सभी राष्ट्राध्यक्षों,सरकार के प्रमुखों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रमुखों ने वहां एक मिनट का मौन रखा और राष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि व पुष्पांजलि अर्पित की। महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देने के बाद जी 20 नेताओं ने ‘लीडर्स लाउंज’ में 'शांति दीवार' पर हस्ताक्षर भी किए। जी 20 के अगले मेज़बान ब्राज़ील के राष्ट्रपति लुइज़ इनासियो ने इस अवसर पर कहा कि – 'जब हम महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देने के लिए गए उस समय मैं बहुत भावुक हो उठा था। मेरे राजनीतिक जीवन में महात्मा गांधी का बहुत महत्व है क्योंकि अहिंसा का मैंने कई दशकों तक अनुसरण किया है, जब मैं श्रमिक आंदोलन के लिए लड़ा था। यही कारण है कि जब मैंने महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित की तो मैं भावुक हो उठा।' ऐसे तमाम उदाहरण हैं जिनसे यह प्रमाणित होता है कि सत्य-अहिंसा व सर्वधर्म समभाव को अपने आप में समाहित करने वाला गांधी दर्शन कल भी प्रासंगिक था और रहती दुनिया तक प्रासंगिक रहेगा।