वामपंथी इतिहासकारों नें इतिहास की सच्चाइयों को हमसे बहुत छुपाया ? कुछ लोग गोडसे को महात्मा गांधी की हत्या करने के कारण उन्हें देशद्रोही बताते हैं । जबकि कुछ अन्य उसे देश के टुकड़े करने वाले गांधी को गोली मारने वाला देशभक्त मानते हैं । कभी देश के लोगों नें सोचा की क्या थी परदे के पीछे की सच्चाई जिसने महात्मा गांधी के ही एक देशभक्त क्रांतिकारी अनुयाई को अपने ही आराध्य पर गोली चलाने को मजबूर कर दिया ?
आइये जानते हैं कुछ राज़ की बातें । क्रांतिकारियों की अंतिम पीढ़ी ने, गाँधी को मार कर(उस समय लगभग 7-8 क्रन्तिकरी दल इस काम में लगे थे) … और सफलता मिली थी “नाथूराम गोडसे” को । वो आज़ाद देश का क्रन्तिकारी जिसने समझा और समझाया की आज़ादी की लड़ाई अभी समाप्त नहीं हुई बस शत्रु बदले हैं।
इसलिए ये नेता क्रांतिकारियों से डरते हैं और उन्हें आतंकवादी घोषित करवाने में लगे हुए हैं। कांग्रेस को इसमे काफी सफलता मिल चुकी है जब उस ने बाकायदा पाठ्यक्रम में ये छपवा दिया की नाथूराम गोडसे ने गांधी को मारा । पर क्यों ?
ये कभी किसी ने नहीं बताया आपको । नाथूराम गोडसे की अस्थियाँ आज भी विसर्जित नहीं की गयी हैं उनकी देशभक्ति भरी अंतिम इच्छा के कारण …..?
नाथूराम गोडसे जयंती पर पढ़िए … मैंने गाँधी को क्यों मारा ” ? नाथूराम गोडसे का अंतिम बयान {इसे सुनकर अदालत में उपस्थित सभी लोगो की आँखे गीली हो गई थी और कई तो रोने लगे थे एक जज महोदय ने अपनी टिपणी में लिखा था की यदि उस समय अदालत में उपस्तित लोगो को जूरी बनाया जाता और उनसे फेसला देने को कहा जाता तो निसंदेह वे प्रचंड बहुमत से नाथूराम के निर्दोष होने का निर्देश देते } नाथूराम जी ने कोर्ट में कहा –सम्मान ,कर्तव्य और अपने देश वासियों के प्रति प्यार कभी कभी भी हमे अहिंसा के सिद्धांत से हटने के लिए बाध्य कर देता है. मैं कभी यह नहीं मान सकता की किसी आक्रामक का शसस्त्र प्रतिरोध करना कभी गलत या अन्याय पूर्ण भी हो सकता है।
प्रतिरोध करने और यदि संभव हो तो ऐसे शत्रु को बलपूर्वक वश में करने, में एक धार्मिक और नैतिक कर्तव्य मानता हूँ। तत्कालीन नेता सत्ता के लोभ में अपनी मनमानी कर रहे थे। या तो कांग्रेस, धर्म के आधार पर देश का बँटवारा कर पकिस्तान बनाने की मांग करने वालों की इच्छा के सामने आत्मसर्पण कर दे और उनकी सनक, मनमानी और आदिम रवैये के स्वर में स्वर मिलाये अथवा उनके बिना काम चलाये .वे अकेले ही प्रत्येक वस्तु और व्यक्ति के निर्णायक थे. महात्मा गाँधी अपने लिए जूरी और जज दोनों थे। गाँधी ने नेहरू और जिन्नाह जैसे देश बांटने वाले सत्ता के लोभियों की लालसा को तृप्त करने के लिए अपनी मातृभूमि के साथ विश्वासघात किया.
तत्कालीन नेता अपनी देश भक्ति और समाज वाद का दम भरा करते थे। जिन्नाह और नेहरू ने गुप्त रूप से बन्दुक की नोक पर धर्म के आधार पर मातृभूमी का बंटवारा कर अलग पकिस्तान बनाने की मांग को स्वीकार कर लिया । और इस प्रकार महात्मा ने अपनी देशभक्ति का नेहरू और जिन्नाह के सामने नीचता से आत्मसमर्पण कर दिया .
धार्मिक तुष्टिकरण की निति के कारण भारत माता के टुकड़े कर दिए गए और 15 अगस्त 1947 के बाद देश का एक तिहाई भाग हमारे लिए ही विदेशी भूमि बन गई.
नेहरू तथा उनकी भीड़ की स्वीकृति के साथ ही एक धर्म के आधार पर राज्य बना दिया गया .इसी को वे बलिदानों द्वारा जीती गई सवंत्रता कहते है परंतु किसका बलिदान ? जब कांग्रेस के शीर्ष नेताओ ने गाँधी के सहमती से इस देश को काट डाला, जिसे हम पूजा की वस्तु मानते है, और गांधी जी ने इस देशद्रोह पर शांत रहकर, विरोध नहीं किया तो मेरा मस्तिष्क भयंकर क्रोध से भर गया।
मैं साहस पूर्वक कहता हु की गाँधी अपने कर्तव्य में पूरी तरह असफल हो गए ।
मैं कहता हूँ की मेरी गोलियां एक ऐसे व्यक्ति पर चलाई गई थी ,जिसकी नीतियों और कार्यो से करोड़ों देशवासियों को केवल बर्बादी और विनाश ही मिला । इस वक्त देश में ऐसी कोई क़ानूनी प्रक्रिया नहीं थी जिसके द्वारा मातृभूमी के इस अपराधी को सजा दिलाई जा सके इसलिये मैंने इस घातक रास्ते का अनुसरण किया…………..मैं अपने लिए माफ़ी की गुजारिश नहीं करूँगा ,जो मेने किया उस पर मुझे गर्व है . मुझे कोई संदेह नहीं है की इतिहास के ईमानदार लेखक मेरे कार्य का वजन तोल कर भविष्य में किसी दिन इसका सही मूल्याकन करेंगे।
जब तक सिन्धु नदी भारत के ध्वज के नीछे से ना बहे तब तक मेरी अस्थियों को विसर्जित मत करना- गोडसे नें
गांधी हो, नेहरू हो, या जिन्नाह हो…. या कोई भी बड़ा नेता हो परंतु मातृभूमि के बंटवारे कराने का हक़ किसी महात्मा को नहीं है । इसलिए गोडसे से यह दर्द नहीं सहा गया कि उनके आराध्य गांधी ने चुप रहकर इस कुकर्म का विरोध क्यों नहीं किया । और इसलिए आज तक नाथूराम गोडसे की अस्थियां विसर्जित नहीं की गयी ।
निःसंदेह महात्मा गांधी ने देश के लिए बहुत कुछ किया है । परंतु देश का बँटवारा भी वो रोक सकते थे ।
पर उनकी चुप्पी ने बटवारे की आग में घी डालने का काम किया । गोडसे सही थे या गलत ये फैसला हम आपके विवेक पर छोड़ते हैं । किन्तु एक बात आप भी मानेंगी की अन्याय पर आँख मूंदकर गलत काम को बढ़ावा देना भी एक गुनाह है, जो उस वक्त महात्मा गांधी ने किया व कांग्रेस के अधिवेशन में वे भारत विभाजन का प्रस्ताव पारित करवाया।