श्रीनगर NIT और पठानकोट हमले पर मोदी का मास्टर स्ट्रोक, पाक की उड़ी नींद, विदेशनीति का ऐतिहासिक कदम..!
नरेंद्र मोदी ने जीवन में कई ऐसे मौके पाए होंगे, जब लोगों ने हर तरफ तारीफ ही की होगी, लेकिन इस समय एक मौका ऐसा आया है, जब उनके कई चाहने वाले भी या तो उनकी बुराई कर रहे हैं या फिर आलोचना कर रहे हैं। लेकिन मेरा मानना जरा अलग है। आप सहमत हो सकते हैं या विरोध कर सकते हैं, लेकिन तर्क जरूरी है।
- पहला मुद्दा जिस पर मोदी की सबसे ज्यादा आलोचना हो रही है, वो है कि उनकी ही पार्टी के राज में श्रीनगर में NIT में देशभक्तों पर लाठी बरस रही है, या बरसी है और सरकार ने कुछ नहीं किया।
- आलोचना का दूसरा बड़ा मुद्दा ये बनाया जा रहा है कि मोदी जी के राज में पाकिस्तान ने सबसे ज्यादा इस देश की किरकिरी की है। पहले अपने अधिकारियों के साथ हमारे देश में खोजबीन के बहाने घुस आए और अब अपने देश में पहुंचते ही फिर से भारत को आंख दिखा रहे हैं, इसे विदेश नीति में अब तक की सबसे बड़ी विफलता बताने की कोशिश की जा रही है।
दोनों मुद्दों पर मेरी सोच जरा अलग है। सबसे पहले आपको श्रीनगर में NIT के बारे में बताता हूं। अब तक मैंने कई स्टूडेंट्स या फिर यहां कवरेज से जुड़े लोगों से बात की है। इस बातचीत से कुछ बातें बहुत ही साफ हैं। NIT श्रीनगर में छात्र-छात्राओं के बीच दहशत का माहौल है औऱ ये 1-2 हफ्ते से है, ऐसा नहीं है। बल्कि ये सालों से है। खुद वहां के छात्र बता रहे हैं कि पहले के सीनियर के साथ औऱ भी ज्यादती की गई है।
दूसरा NIT श्रीनगर में सुरक्षा की जिम्मेदारी जम्मू-कश्मीर पुलिस की है, जिस पर भी राज्य के बाहर के लोग भेदभाव के आरोप लगा रहे हैं। तीसरा जम्मू-कश्मीर में हमेशा या तो क्षेत्रीय दलों या फिर मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति अपनाने वाली कांग्रेस का कब्जा रहा है। जाहिर तौर पर स्टूडेंट्स के साथ ज्यादती तो पहले भी हुई हैं, लेकिन खबरें कभी बाहर ही नहीं आईं। लेकिन ये पहला मौका है कि NIT श्रीनगर की तस्वीर अब पूरी दुनिया देख रही है। ये सब अगर संभव हो पाया है, तो मेरे ख्याल में इसकी वजह सिर्फ ये है कि इस बार सरकार कुछ छिपाना नहीं चाहती, बल्कि सच को सबके सामने उजागर होने देना चाहती है, ताकि लोगों को हकीकत पता चल सके।
हैरानी तो इस बात की है कि इतना सब कुछ होने के बाद भी स्टूडेंट्स में इतनी दहशत है कि वो बात तो कर रहे हैं, लेकिन कोई चेहरा या नाम उजागर नहीं करना चाहता। हालात को देखते हुए पहली बार NIT श्रीनगर को सीआरपीएफ ने कब्जे में लिया है, यानी की सेंट्रल फोर्सेस को अंदर भेजा गया है। क्या कभी दूसरी सरकारों ने ऐसी हिम्मत दिखाई है।
यकीनन ऐसे में आप मोदी सरकार या फिर जम्मू-कश्मीर में सत्ता में साझेदार बीजेपी की सरकार की आलोचना करने के बजाए दाद देनी चाहिए कि उन्होंने न सिर्फ छात्रों के बीच हिम्मत पैदा की, बल्कि कश्मीर में मौजूद इस संस्थान की असलियत से लोगों का वाकिफ कराया। अब जब परेशानी सामने दिख रही है, तो जाहिर है उनको इसका समाधान भी ढूंढना पड़ेगा।
आलोचना का दूसरा विषय है पाकिस्तान को लेकर मोदी सरकार की नीति। जिस तरीके से पाकिस्तान की JIT ने भारत में आकर जांच की और पाकिस्तान लौटते ही भारत पर सवाल उठाने लगे, उसके बाद मोदी के समर्थक ही सरकार पर सवाल उठाने लगे हैं। लेकिन सच तो ये है कि इस जांच के बाद मोदी सरकार को शाबाशी देनी चाहिए।
दरअसल, अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति का कई सिरा होता है, आपकी एक कार्रवाई के कई आयाम होते हैं और कई नजरिए से आप इसे पेश कर सकते हैं। भारत-पाकिस्तान का संबंध भले ही अब तक भारत चीख-चीखकर कहता रहा कि ये द्विपक्षीय है, लेकिन पाकिस्तान इसे बहुपक्षीय बनाने में ही लगा रहा।
इस बार मोदी ने मास्टर स्ट्रोक खेला है। जांच तो द्विपक्षीय बनाई, लेकिन मामले को बहुपक्षीय बना दिया। पूरी दुनिया ने देखा कि किस तरीके से आतंक के मामले में भारत ने पाकिस्तान को सबूत दिया, उसकी टीम को यहां आने की इजाजत दी, लेकिन बदले में पाकिस्तान ने कोई सहयोग नहीं किया। अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की दरअसल कलई खुल गई है।
दूसरा पाकिस्तान की टीम ने अगर भारत में जांच ही कर ली, तो इससे सामरिक दृष्टि से भारत को क्या नुकसान हो गया। क्या पाकिस्तान ने आकर कोई ऐसा गुप्त ठिकाना देख लिया, जिससे सुरक्षा को लेकर खतरा है, क्या उसने हमें आंख दिखाकर हमें हरा दिया या फिर हमारी जमीन छीन ली।
सच तो ये है कि खुद ये टीम बता रही है कि इन्होंने सेना के लोगों से न तो मिलाया और न ही ठिकाने में कुछ खास दिखाया, बल्कि जो भारत की सुरक्षा एजेंसी को जरूरत लगी, वहीं तक उन्हें भेजा। लेकिन दुनिया भर में ये मैसेज गया कि कैसे पाकिस्तान की नीयत आतंक को लेकर सही नहीं है।
तीसरी बात ये है कि मोदी हमेशा आउट ऑफ द बॉक्स सोचने वाले नेता हैं। अब तक हम यही सोचते आए हैं कि पाकिस्तान बदलने वाला नहीं है, लेकिन अगर हम पारंपरिक तरीके से ही चीजों को सोचेंगे तो कुछ नया और खास नहीं होगा। जिस तरीके से मोदी ने पाकिस्तानी टीम को आने की इजाजत दी और बदले में अगर पाकिस्तान में जरा सी भी समझ पैदा हुई होती कि आतंक के मामले में उसे भी भारत का सहयोग करना है, तो जरा सोचिए कितना बड़ा बदलाव आ जाता। मोदी की हिम्मत की दाद देनी चाहिए कि उन्होंने पाकिस्तान टीम को आने देने के लए कितना बड़ा फैसला किया।
साफ है इन दोनों मुद्दों पर जो भी मोदी की आलोचना कर रहे हैं, अगर वो चीजों को अलग ढंग और नजरिए से देखने की कोशिश करेंगे, तो ये एक बड़ा फैसला नजर आएगा। ऐसे में मोदी की आलोचना करने की बजाए इस सरकार को इस बात की शाबाशी देनी चाहिए कि उनका एप्रोच पॉजिटिव है और वो अपनी कमियों को लेकर घबराते या बचने की कोशिश नहीं करते हैं, बल्कि उनको सामने रखकर उसका सामना करने की कोशिश करते हैं। कमियों को छिपाना आसान है, लेकिन कमियों को उजागर कर उसका सामना करने की हिम्मत मोदी सरकार दिखा रही है।