बात 1998 की है। चंडीगढ़ में पी जी आई के मुख्य द्वार के बाहर एक अति वृद्ध बुज़ुर्ग फ़ुटपाथ पर कई दिनों से एक ही जगह पर बैठा रहा। लोगों ने जब उससे उसके बारे में जानना चाहा तो उसने बताया कि -'एक सप्ताह पहले पंजाब के किसी गांव से वह अपने बेटे के साथ इलाज कराने पी जी आई आया था। उसके बाद मेरा बेटा मुझे इसी जगह पर बिठा कर चला गया और आज तक मुड़ कर नहीं आया '। उस वृद्ध की हालत देखकर लोगों को यह समझने में देर नहीं लगी कि उसका बेटा अपने बुज़ुर्ग पिता की बीमारी और तीमारदारी से ऊब कर उसे पी जी आई में इलाज के बहाने लाकर यहां छोड़ कर चला गया। जब लोगों ने उस बुज़ुर्ग को वापस उसके घर पहुँचाने की बात की तो वह राज़ी नहीं हुआ। वह कहता कि 'जब मेरा बेटा ही मुझसे दुखी होकर मुझे छोड़ गया तो मैं फिर उसे दुखी करने के लिये घर जाकर क्या करूँगा' ? आख़िरकार कुछ समाजसेवियों की मदद से उसे किसी अनाथालय में शरण लेनी पड़ी। 25 वर्ष पूर्व की यह घटना देखकर यह अहसास होने लगा था कि शायद मानवीय संवेदनाओं ने कराहना शुरू कर दिया है। परन्तु यह एहसास क़तई नहीं था कि मानवीय संवेदनाओं के दरकने का यह सिलसिला तथाकथित संभ्रांत परिवारों यहां तक कि 'सेलेब्रिटी' स्तर के लोगों के परिवार में भी जा पहुंचेगा ?
तीन वर्ष पूर्व महाराष्ट्र से एक समाचार आया कि एक वृद्ध महिला अपने फ़्लैट में न जाने कितने दिनों से मरी पड़ी थी। उसके शरीर का कंकाल उसके बेड के पास पड़ा था। कई दिनों बाद पड़ोसियों को संदेह हुआ तो दरवाज़ा तोड़ा गया तो वृद्धा का कंकाल बरामद हुआ। वृद्धा का एक पुत्र था जो अमेरिका में रहता था । जब उसे उसकी मां की मौत की सूचना दी गयी तो वह आया और दो चार दिनों के भीतर ही फ़्लैट बेचकर चलता बना। वैसे भी आप यदि शहरों में वृद्धाश्रम में जाकर देखें तो तमाम कथित संभ्रांत परिवार के लोग वहां अपनी ज़िंदिगी की आख़िरी दिन अपने परिवार से दूर रहकर गुज़ारते दिखाई जायेंगे। संभव है कि कुछ बुज़ुर्गों को अपने अड़ियल व रूढ़िवादी सोच विचार के चलते यह दिन देखने पड़ते हों। परन्तु अधिकांश मामलों में यही देखा गया है कि बच्चों व उनके परिवार का स्वार्थपूर्ण रवैय्या और मां बाप के प्रति उनकी बेरुख़ी ही मां बाप जैसे पवित्र व मज़बूत रिश्तों में भी दरार पैदा कर देती है।
रेमंड ग्रुप के चेयरमैन पद्मभूषण विजयपत सिंघानिया को देश दुनिया में आख़िर कौन नहीं जानता। 37 मंज़िला जेके हाउस,प्राइवेट जेट,अंतराष्ट्रीय स्तर के हॉट बैलून फ़्लाइंग विशेषज्ञ,हज़ारों करोड़ की संपत्ति,देश के नामी ग्रामी उद्योग पतियों की सूची में नाम,इज़्ज़त-मान-सम्मान क्या नहीं था विजयपत सिंघानिया के पास। विजयपत सिंघानिया ने अपने बेटे गौतम सिंघानिया को लगभग 12000 करोड़ रूपये का व्यवसायिक साम्राज्य सौंप दिया था । रेमंड साम्राज्य पर क़ब्ज़ा होते ही गौतम सिंघानिया ने अपने मां बाप की तरफ़ से आँखें फेर लीं। इतनी बड़ी शख़्सियत के मालिक पिता को उसी के आलिशान घर से बेटे गौतम ने बाहर निकाल दिया। कंपनी के सारे अधिकार पिता के हाथों से छीन लिए।और उन्हें दर दर भटकने के लिये छोड़ दिया। ख़बर है कि अब यह बुज़ुर्ग दंपत्ति किसी किराये के मकान में अपना वक़्त गुज़ार रहा है।
इसी तरह पिछले दिनों सहारा ग्रुप के संस्थापक व स्वामी सुब्रत राय 'सहाराश्री' का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। देश के मीडिया में जितनी चर्चा उनके देहांत की हुई उतनी ही चर्चा इस बात की भी रही कि सहारा श्री के अंतिम संस्कार में न तो उनकी पत्नी शामिल हुई न ही उनके दोनों बेटे। बल्कि उनके एक पौत्र हिमांक ने मुखाग्नि देकर उनका अंतिम संस्कार किया। सहारा श्री की व्यावसायिक अनियमिततायें क्या थीं क्या नहीं इससे मेरा सरोकार नहीं परन्तु सहाराश्री के मानवीयता पूर्ण चरित्र का हर एक क़ायल था। 2004 में सहारा श्री ने जब अपने दोनों बेटों सीमांतो और सुशांतो की शादी लखनऊ स्थित सहारा शहर में की थी उस समय 500 करोड़ की यह शादी देश की सबसे मंहगी शादी के रूप में चर्चित हुई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी से लेकर सोनिया गांधी, शरद पवार, मुलायम सिंह यादव, अमर सिंह, राजनाथ सिंह, पूर्व पीएम चंद्रशेखर, लालू प्रसाद यादव, प्रमोद महाजन, मायावती, शिबू सोरेन, सुरेश कलमाड़ी जैसे राजनीति के अनेक दिग्गज व फ़िल्म व खेल जगत के तमाम नामी लोग शरीक हुये थे। मेहमानों की अगुआनी स्वयं सुपर स्टार अमिताभ बच्चन और उद्योगपति अनिल अंबानी जैसे लोग कर रहे थे।
परन्तु इसी शादी का सबसे बड़ा मानवीय पक्ष यह था कि अपने पुत्रों के इसी भव्य विवाह समारोह के साथ ही सहारा इण्डिया परिवार ने समाजोपयोगी कार्यक्रम के तहत एक ‘सामूहिक विवाह समारोह’ का भव्य आयोजन लखनऊ के इसी सहारा शहर में किया। इसमें समाज के ग़रीब तबक़े की 101 कन्याओं का विवाह कराया गया। एक ही जगह एक साथ हिन्दू, मुस्लिम, सिख व ईसाई धर्म से जुड़े लोगों का विवाह उनके धार्मिक रीति रिवाजों के अनुसार सम्पन्न कराकर सामाजिक सद्भाव व गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल पेश की गयी। इस ख़बर ने पूरे देश के लोगों में सहारा श्री के प्रति स्नेह व सम्मान का भाव पैदा किया। और सहारा श्री को सम्मान की नज़रों से देखने वाला वही वर्ग आज इस बात को लेकर चिंतित भी नज़र आया कि जिसने अपने बेटे की शादी में न केवल भव्यता में कीर्तिमान बनाया बल्कि साथ ही 101 ग़रीब जोड़ों की भी शादी कराकर हज़ारों लाखों लोगों के दिलों की दुआयें भी लीं,वही महान व्यक्ति आख़िर किन परिस्थितियों में अपने जीवन के अंतिम समय में अपने उन्हीं बेटों और जीवन संगिनी पत्नी तक को न देख सका ?
शायद समाज में मरती संवेदनाओं की इसी नब्ज़ को पहचानते हुए अब इसे व्यवसायिक रूप देने के भी प्रयास शुरू हो गए हैं। अब कुछ कंपनियां अंतिम संस्कार का व्यवसाय करने जा रही हैं। हमारे देश के मानवीय मूल्यों को शर्मसार करने वाली ऐसी ही एक कंपनी का सदस्यता शुल्क रु. 37500/- है। इन पैसों में पुजारी, नाई, कन्धा देने वाले , साथ चलने वाले , राम के नाम पर सत्य बोलने वाले , सब शामिल होंगे। ऐसी ही एक एक नई स्टार्टअप कंपनी ने 50 लाख रुपये का मुनाफ़ा कमा भी लिया है। संचालकों को उम्मीद है कि भविष्य में उनकी कंपनी 2000 करोड़ रुपये तक के कारोबार तक पहुंच सकती है। क्योंकि कंपनी संचालकों को भी मालूम है कि हमारे देश में किसी के पास रिश्ते निभाने का समय नहीं है। क्योंकि अब रिश्ते भी दम तोड़ रहे हैं और मानवीय संवेदनायें भी मरती जा रही हैं।